चर्चा प्लस | इंडिगो संकट ने याद दिला दिया वह सुनामी-सा सैलाब | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर
चर्चा प्लस
इंडिगो संकट ने याद दिला दिया वह सुनामी-सा सैलाब
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
हवाई यात्राएं ललचाती हैं समय की बचत के प्रलोभन के रूप में। जहां 9 से 12 घंटे लगते हैं वहां चैक-इन और चैक-आउट मिला कर चार घंटे में यात्रा पूरी हो जाती है। आज के भागमभाग के जीवन में समय की बचत की यह खरीद मंहगी नहीं लगती है बशर्ते उड़ानें रद्द न हो। इंडिगो की हाल की रद्द उड़ानों से उत्पन्न हुई परेशानियों ने मुझे दिल्ली एयरपोर्ट टी-थ्री के सैलाब की यादें ताज़ा कर दीं। मुझे आज भी याद हैं वे परेशान, बदहवास चेहरे जबकि उस समय मात्र दो-तीन उड़ाने ही रद्द हुई थीं।
2019 में आजतक टीवी चैनल के साहित्य महाकुंभ में मुझे चर्चा सत्र में आमंत्रित किया गया था। चर्चा का विषय था ‘‘साहित्य की चुनौतियां’’। शानदार चकाचक व्यवस्था। बेहतरीन लक्जरी होटल में ठहराव। तत्कालीन इंदिरा कला केन्द्र परिसर में सारा आयोजन। होटल के विलासितापूर्ण सुविधाओं के आनन्द के साथ जब आयोजन स्थल पहुंची तो कुछ ही देर में मेरी आंखों में जलन होने लगी। मामला समझ में नहीं आया। नहाते समय साबुन का झाग भी आंखों में नहीं गया था। सच कहूं तो पलकों पर आई लाईनर लगा कर होटल से निकली थी। फिर भी आंखों में जलन। आयोजन स्थल पर कुछ नए-पुराने परिचित मिले। बातों ही बातों में पता चला कि यह जलन पराली के धुंए से उत्पन्न प्रदूषण की देन है। तब मुझे पहली बार पराली के धुंए के दुष्प्रभाव का स्वयं अनुभव हुआ। तीन दिन के प्रवास में उसी धुंए वाली हवा में सांसे लीं और आंखों से आंसू बहने दिए। यह साहित्य के लिए पैदा हुई चुनौतियों से भी बड़ी चुनौती थी। तीन दिनों में न जाने कितनी बार खांसी के ठसके लगे, अब तो उनकी गिनती भी याद नहीं है। चिंता थी कि चर्चा के दौरान खांसी न आने लगे। किन्तु दिल्ली की हवाएं चर्चापसंद हैं, सो उन्होंने मुझे मोहलत दे दी। सब कुछ ठीक-ठाक रहा। पहले दिन पहुंची थी, दूसरे दिन चर्चा-संवाद था और तीसरे दिन दोपहर बाद की रेल से लौटना था। पर मुझे क्या पता था कि एक बड़ी चुनौती मेरी प्रतीक्षा कर रही है।
मेरे आने-जाने की टिकट आजतक चैनल वालों ने ही बुक की थी। कंफर्म टिकट पर दिल्ली पहुंच गई थी किन्तु वापसी की टिकट वेटिंग पर थी। मुझे और मेरे परिचितों को लगा कि आजतक जैसे टीवी चैलन का मामला है तो वापसी तक टिकट कंफर्म हो ही जाएगी। शायद आजतक वालों को भी यही उम्मींद रही होगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वेटिंग क्लियर नहीं हुई। वापसी वाले दिन जब मैं वापसी के लिए अपना सामान पैक कर रही थी मुझे फोन पर सूचना दी गई कि मेरा टिकट कंफर्म नहीं हुआ है। मेरे तो पांवों तले जमीन खिसक गई। अब क्या होगा? मैंने उस कोआर्डिनेटर महिला से पूछा। उसने मुझे सांत्वना दी कि ‘‘हम कुछ न कुछ प्रबंध करते हैं, आप चिंता न करें। मैं थोड़ी देर में आपको बताती हूं।’’
उसकी बात सुन कर कुछ तसल्ली हुई। मैंने तत्काल वर्षा दीदी को फोन लगाया और उन्हें सारी वस्तुस्थिति बताई। उन्होंने भी मुझे समझाया कि मैं चिंता न करूं, वे लोग कुछ न कुछ प्रबंध अवश्य करेंगे। खैर, मैंने अपना सामान पैक करना छोड़ दिया और उस महिला के फोन की प्रतीक्षा में बैठ गई। लगभग आधे घंटे बाद उसने मुझे बताया कि किसी भी रेल में ‘‘तत्काल’’ में भी सागर के लिए कोई कंफर्म टिकट नहीं है, सो उन्होंने दिल्ली से भोपाल तक के लिए मेरा टिकट स्पाईस जेट में बुक कर दिया है। उसकी बात सुन कर मैंने उससे पूछा कि उससे मैं भोपाल कितने बजे पहुंचूंगी? पता चला कि रात्रि साढ़े आठ या पौने नौ तक। मैंने उससे पूछा और फिर भोपाल से सागर कैसे पहुंचूंगी? उसने कहा मैं थोड़ी देर में बताती हूं। फिर प्रतीक्षा के पल। लेकिन जब उस महिला का फोन आया तो मुझे अहसास हुआ कि बड़ेे टीवी चैनल वाले कई मामलों में वाकई जिम्मेदार होते हैं। उस महिला ने मुझे बताया कि भोपाल एयरपोर्ट पर मुझे आजतक चैनल की टैक्सी मिलेगी जो मुझे सागर में मेरे घर के दरवाजे तक छोड़ कर आएगी। उनकी इस व्यवस्था ने मेरा दिल छू लिया। मैंने अपने सामन में से वे सारी चीजें अलग कीं और डस्टबिन में डाल दीं जो मैं रेल से तो ले जा सकती थी लेकिन प्लेन में नहीं। यानी मुझे अपने नए-नवेले हेयर स्प्रे और सेंट स्प्रे को डस्टबिन में डालने का घाटा सहना पड़ा।
खैर, इसके बाद मुझे नियत समय पर होटल की ओर से सूचना दी गई कि एयरपोर्ट के लिए टैक्सी प्रतीक्षा कर रही है। मैंने होटल से खुशी-खुशी चैक आउट किया। टैक्सी वाले को बताया कि टी-थ्री एयरपोर्ट चलना है। टैक्सी वाले ने मुझे एयरपोर्ट पर पहुंचाया। मैं स्पाईस जेट के काउंटर पर पहुंची। कामर्शियल लोग बड़े प्यारे ढंग से स्वागत करते हैं। स्पाईस जेट वालों ने भी मेरा गर्मजोशी से वैलकम किया। मेरे सामनों पर टैगिंग की। मैंने उन्हें बताया कि मैं आपकी सर्विस पर पहली बार जा रही हूं। इस पर उन्होंने मेरा विशेष ध्यान रखते हुए मुझे अपने एक बंदे के साथ उस जगह को दिखाया जहां से मुझे अपनी फ्लाईट के लिए नीचे फ्लोर में जाना था। उस समय प्रवेश बंद था। लेकिन मैं समझ गई। उस बंदे ने भी मुझे आश्वस्त किया कि यदि कोई परेशानी महसूस करुं तो उन्हें संपर्क कर सकती हूं। एक लंबी प्रतीक्षा के बाद प्रवेश द्वार खोला गया। मैंने चैक-इन की औपचारिकताएं निपटा कर जैसे ही नीचे की ओर देखा तो मेरे हाथ-पांव फूल गए। नीचे परिसर में इंसानों का सैलाब हिलोरें ले रहा था। नीचे पहुंच कर मैंने एक स्टाल पर पानी की एक बोतल खरीदी और उससे ही पूछा कि इतनी भीड़ क्यों है? तो उसने बताया इंडिगो, गो एयर आदि की दो-तीन फ्लाईट्स रद्द हो गई हैं जिसके कारण यहां भीड़ का यह मंज़र है। किसी एयरपोर्ट पर वैसी बदहवास अपार भीड़ मैंने उसके पहले कभी नहीं देखी थी। लोग अनिश्चितता में भरे हुए, बहसें करते घूम रहे थे। अब उनका क्या होगा, उन्हें चिंता थी। इस तरह की चिंता से मैं कुछ घंटों पहले गुजर चुकी थी अतः उनकी व्याकुलता का मैं अनुमान लगा सकती थी। यद्यपि मैं एक बड़े आयोजक की व्यवस्था में थी अतः फिर भी उतनी चिंता नहीं हुई थी जितनी चिंता उन यात्रियों को हो रही थी। किसी का इन्टरव्यू छूट रहा था तो किसी की ज्वाइनिंग खतरे में पड़ रही थी। कोई बच्चों से मिलने के लिए व्याकुल थी तो कोई अपने प्रिय से। सबके बीच बाधा बनी हुई थी उड़ानों के रद्द होने की सूचना। बताया जा रहा था कि पराली के धुंए की सघनता तथा मौसम की खराबी के कारण ऐसा हुआ है। वैसे इस कारण पर विश्वास करना कठिन था क्योंकि स्पाईस जेट के विमान उड़ान भर रहे थे। जिस विमान से मुझे आना था वह भी तैयार हो रहा था। कुछ देर बाद मैं एंट््री गेट के निकट वेटिंग चेयर पर बैठ चुकी थी। मेरे सहयात्री भी वहां आ चुके थे। वहां जितनी शांति एवं संतोष था, उससे कुछ कदम आगे अजीब घबराहट, गुस्से और भीड़ का समुन्दर ऊंची लहरों के थपेड़े ले रहा था। अपार जनसमूह, मानो एक पूरी बस्ती ही वहां आ खड़ी हुई हो।
‘‘इन लोगों का क्या होगा? यदि मेरी उड़ान भी रद्द हो गई तो?’’ यह विचार आते ही मैंने अपने सिर पर एक चपत लगाई और खुद से कहा कि शुभ-शुभ बोलो। लेकिन कहते हैं न कि बुरे विचार सिर चढ़ कर बैठ जाएं तो एक पल भी चैन नहीं लेने देते हैं। जब तक जहाज पर सवार होने का संकेत नहीं मिला तब तक मन ही मन मैं यही प्रार्थना करती रही कि मेरी उड़ान रद्द न हो, अन्यथा मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाऊंगी। अंततः मैं अपने जहाज पर सवार हो गई। एयर होस्टेस की मुस्कान कुछ ज्यादा ही प्यारी लगी। मेरी सहयात्री एक स्टूडेंट थी। उसने मुझे अपनी कमर पेटी बांधने में मदद की। चूंकि मेरी कमरपेटी का बक्सुआ कहीं फंस रहा था। फिर ‘वेज या नानवेज?’ पूछ कर डिनर भी उसी ने आर्डर कर दिया। लेकिन वह चिपकू नहीं थी। पूरे रास्ते हमारे बीच कोई बात नहीं हुई। बस, एक बार उसने इतना ही कहा कि ‘‘थैंक्स गाॅड, हमारी फ्लाईट कैंसिल नहीं हुई।’’ मैंने भी समर्थन करते हुए कहा,‘‘थैंक्स गाॅड!’’
फिर मैं भोपाल से सागर आते समय टैक्सी में बैठी-बैठी यही सोचती रही कि हमारे देश की फ्लाईट्स भी भगवान भरोसे क्यों चलती हैॅं? माना कि भगवान सब कुछ संचालित करते हैं लेकिन इंसान? उसके भी तो अपने कुछ दायित्व हैं।
इंडिगो के हाल के मामले ने एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है कि इतनी सारी उड़ानें रद्द होने से पहले क्या सचेत हो कर व्यवस्थाएं नहीं सुधारी जा सकती थीं? फिर एक कंपनी की चंद उड़ानें यदि रद्द होती हैं तो बाकी कंपनियां अपनी चांदी पीटने और यात्रियों की मजबूरी का फायदा उठाने में जुट जाती हैं। अनाप-शनाप किराया वसूला जाने लगता है। यहां तक कि उड़ाने रद्द न भी हों फिर भी त्योहार के करीब आते ही यात्रा दरें आसमान छूने लगती हैं। हवाई कंपनियां यह जानती हैं कि आज लोग अपने घरों से, अपनो से दूर रह रहे हैं, उनके पास मिलने का समय भी कम होता है अतः वे कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हो जाएंगे। लेकिन हर कीमत की कोई तो सीमा होनी चाहिए। अतः सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कुछ दरें तय कीं। दरअसल, इंडिगो संकट के दौरान कुछ शहरों के लिए हवाई किराया 50,000 रुपये या इससे अधिक तक पहुंच गया था, जिसके चलते सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। नियम 6 दिसंबर 2025 से तुरंत लागू किया गया जिसके अनुसार 500 किलोमीटर की दूरी के लिए हवाई किराये की सीमा 7500 रुपये, 501 से 1000 किलोमीटर के लिए 12 हजार रुपये, 1001 से 1500 किलोमीटर दूरी के लिए 15 हजार और 1500 किलोमीटर से ज्यादा दूरी के लिए उड्डयन कंपनियां 18 हजार रुपये से ज्यादा किराया नहीं चार्ज कर सकती। लेकिन 500 किलोमीटर की दूरी के लिए हवाई किराये की सीमा 7500 रुपये कुछ अधिक नहीं हैं? सरकार को इस पर एक बार फिर विचार करना चाहिए। है न!
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(दैनिक, सागर दिनकर में 10.12.2025 को प्रकाशित)
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