पुस्तक समीक्षा | संघ के विचार एवं स्वरूप को बताने वाली एक जरूरी पुस्तक | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण
पुस्तक समीक्षा | संघ के विचार एवं स्वरूप को बताने वाली एक जरूरी पुस्तक
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक - 100 वर्ष की संघ-यात्रा नए क्षितिज
व्याख्यान - डाॅ. मोहन भागवत
प्रकाशक - सुरुचि प्रकाशन, केशव कुंज, झण्डेवाला, नई दिल्ली - 110055
मूल्य - 50/-
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संघ अर्थात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के सौ वर्ष मना रहा है। इस लम्बी यात्रा में उसने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं किन्तु संघ की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि वह एवं उसके कार्यकर्ता अपने विचारों से डिगे नहीं। यही मूल कारण था कि संघ आज अपने पूरे गौरव एवं विचारों के साथ अपने अस्तित्व का झंडा फहरा रहा है। संघ के सौ वर्ष मनाने के लिए कई आयोजन हुए जिनमें व्याख्यान भी थे। डाॅ. मोहन भागवत जो संघ के एक सक्रिय एवं सुदृढ़ स्तम्भ हैं उनके तीन व्यख्यानों की एक ऐसी पुस्तक प्रकाशित हुई है जिसमें संघ के अस्तित्व में आने, उसके संघर्ष तथा अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहने का विस्तृत विवरण है। इस पुस्तक का नाम है ‘‘100 वर्ष की संघ-यात्रा नए क्षितिज’’।
डाॅ. मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सरसंघचालक (प्रमुख) हैं, जिन्हें 2009 में इस पद पर चुना गया था, और वे संघ के एक व्यावहारिक, दूरदर्शी और आधुनिक विचारों वाले नेता माने जाते हैं। उन्होंने सदा हिन्दू एकता और राष्ट्रवाद पर जोर दिया। मोहन भागवत का जन्म 11 सितंबर, 1950 को चंद्रपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। उन्होंने पशु चिकित्सा का अध्ययन किया तथा वे एक पशु चिकित्सक भी हैं। यद्यपि आपातकाल के दौरान अपनी पशु चिकित्सा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। सन 2009 से संघ का नेतृत्व कर रहे हैं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सबसे प्रमुख नेतृत्वकर्ताओं में से एक हैं तथा अपने विचारों की स्पष्टता के लिए जाने जाते हैं। डाॅ. मोहन भागवत का परिवार तीन पीढ़ियों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा है। उनके पिता मधुकर राव भागवत भी एक प्रमुख संघ कार्यकर्ता थे।
विगत विजयादशमी को अर्थात 2 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को 100 वर्ष पूर्ण हुए। अतः शताब्दी वर्ष मनाया जाना स्वाभाविक था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिनांक 26, 27 और 28 अगस्त को, दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘‘100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज’’ इस शीर्षक से एक व्याख्यानमाला आयोजित की थी। इस व्याख्यानमाला को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने संबोधित किया। इस कार्यक्रम में देश-विदेश के गिने-चुने लोग आमंत्रित थे। कुल 1500 लोगों ने इस त्री-दिवसीय व्याख्यानमाला को सुना। इनमें, कुछ देशों के राजनयिक भी सम्मिलित थे। विशेष बात यह कि सरसंघचालक जब हिंदी में बोल रहे थे, तभी उसे अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश और जर्मन भाषा में भी सुनने की व्यवस्था थी।
पहले दिन सरसंघचालक जी ने 100 वर्ष की संघ की यात्रा का वर्णन किया। संघ की स्थापना की आवश्यकता का विवेचन किया। दूसरे दिन, संघ कार्य की आगामी दिशा क्या रहेगी, संघ का लक्ष्य क्या होगा, आने वाले समय की संघ की सोच क्या रहेगी, इन विषयों पर चर्चा की। अंतिम दिन, श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए। इस व्याख्यानमाला को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किए जाने की आवश्यकता का अनुभव हुआ और परिणाम स्वरूप ‘‘100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज’’ पुस्तक प्रकाशित हुई।
इस पुस्तक में डाॅ. मोहन भागवत के कुल तीन व्याख्यान हैं। अपने प्रथम व्याख्यान में डाॅ भागवत ने संघ की निर्मिति का प्रयोजन बताने के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन की चार धाराओं पर प्रकाश डाला है। इसके साथ ही उन्होंने संघ के संस्थापक डाॅ हेडगेवार के जीवन का विस्तृत परिचय दिया है कि किस प्रकार के वातारण में वे जन्में, कैसे उनके विचारों का विकास हुआ तथा उन्हें संघ की स्थापना की आवश्यकता क्यों महसूस हुई। संघ ने अपनी औपचारिक शुरुआत नागपुर में डॉक्टर हेडगेवार के नेतृत्व में की। उस समय का औपनिवेशिक समाज स्वतंत्रता की लड़ाई में संघर्षरत था और इसी बीच संघ ने समरसता और समाज की एकजुटता का संदेश दिया। संघ का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त कुरीतियों का निराकरण करते हुए राष्ट्र प्रथम की भावना को बढ़ावा देना था। संघ ने स्वतंत्रता के बाद भी समाज में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए भारतीय नागरिकों में राष्ट्रप्रेम और समर्पण का भाव जगाया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दैनिक शाखाओं ने स्वयंसेवकों में न केवल सौहार्द और प्रेम का भाव जगाया, बल्कि मजबूत नेतृत्व और कौशल क्षमता जैसे गुणों का भी विकास किया। संघ की शाखाओं से निकले कई स्वयंसेवक आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण नेतृत्व कर रहे हैं। संघ समय-समय पर समाज में बंधुत्व और सामाजिक सौहार्द बढ़ाने हेतु साल भर चलने वाले कार्यक्रमों का आयोजन करता है। इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करना और उन्हें राष्ट्र की सेवा में योगदान देने के लिए प्रेरित करना है। स्वतंत्रता के बाद संघ ने पर्दे के पीछे एक मजबूत स्तंभ के रूप में काम करते हुए भारतीय समाज के विभिन्न अवयवों को एकत्रित किया। संघ ने नागरिकों में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना को प्रबल किया और समाज में वैमनस्य को खत्म करने का प्रयास किया। संघ ने अपने मूल वैचारिक अधिष्ठान से कभी समझौता नहीं किया और सदैव सामाजिक सौहार्द की दिशा में कार्य किया। आज, संघ अपनी अनवरत यात्रा में 100 वर्षों का मील का पत्थर पार कर एक नई ऊंचाई पर पहुंच रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा तमाम चुनौतियों और झंझावातों से भरी रही है, लेकिन संघ ने हमेशा अपने मूल्यों और लक्ष्यों को कायम रखा। संघ का यह अनवरत प्रयास समाज को एकजुट करने और राष्ट्र के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करता रहा है।
अपने प्रथम व्याख्यान में ही डाॅ भागवत ने सम्पूर्ण हिन्दू समाज संगठन के बारे में भी गहराई से चर्चा की है। ऐसा करते हुए उन्होंने हिन्दू का वास्तविक अर्थ तथा राष्ट्र प्रेम के स्वरूप पर भी समुचित प्रकाश डाला है।
अपने दूसरे व्याख्यान में डाॅ मोहन भागवत ने ‘‘संघ कार्य, हिम्मत वालों का काम’’ कहते हुए संघ के नए क्षितिज की चर्चा की है। उनका कहना है कि सब अपने हैं। सारी विविधता, एकता का ही आविष्कार है। धर्म की उपादेयता पर उनका मानना है कि धर्म की रक्षा सबकी रक्षा है अतः धर्म को सकारात्मक दृष्टि से समझते हुए उसके प्रति अनुराग रखना चाहिए। अपने इस दूसरे व्याख्यान में डाॅ मोहन भागवत ने ‘‘भारतवर्ष के लाइफ मिशन’’ पर भी प्रकाश डाला है तथा संघ के नए क्षितिज के रूप में संघ में किए गए नूतन परिवर्तनों की चर्चा की है। ‘‘दुनिया देखो, अपना देश, पड़ोस भी देखो" का आह्वान करते हुए डाॅ भागवत ने पर्यावरण संरक्षण स्वभूषा, स्वखानपान, स्वदेशी के महत्व को विस्तार से समझाया है।
तीसरे व्याख्यान का स्वरूप जिज्ञासा समाधान का है जिसमें शिक्षा संस्कार, भारतीय ज्ञान परंपरा, संघ एवं भाजपा, राजनीति, अखंड भारत, सामाजिक समरसता, आरक्षण तथा अनय समसामयिक विषयों को व्याख्यात्मक ढंग से समझाया है।
वस्तुतः डाॅ. मोहन भागवत की यह पुस्तक राष्ट्रीय सेवक संघ के स्वरूप को समझने में अत्यंत सहायक है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद संघ से जुड़े कई भ्रम भी दूर होते हैं तथा संघ के उद्देश्यों की जानकारी मिलती है। जो पाठक राष्ट्रीय सेवक संघ के बारे में गहराई से जानना चाहते हैं उनके लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी है।
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