बतकाव बिन्ना की | बिटियन के मामले में अब हल्के से काम ने चलहे | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम
बतकाव बिन्ना की
बिटियन के मामले में अब हल्के से काम ने चलहे
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘हमाओ समाज कां से कां जा रओ आए? भैयाजी तनक गुस्से में दिखाने।
ं‘‘काए का हो गओ भैयाजी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘होने का? बिटियन की कोनऊं खों तनकऊं फिकर नइयां।’’ भैयाजी ऊंसईं गुस्से में बोले।
‘‘अब ऐसो बी नइयां। सरकार कित्तो खयाल रखत आए लाड़ली बिटियन को।’’ मैंने कई।
‘‘जो ऐसो आए तो लोहरी-लोहरी बिटियन के संगे ऐसो भयानक काम काए हो रओ?’’ भैयाजी बोले।
‘‘का हो गओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘काए तुमने सुनी-पढ़ी नईं का के एक छै साल की बिटिया के संगे निरभया घांईं कांड करो गओ। भला छै साल कोनऊं उम्मर होत आए?’’ भैयाजी गुस्सा में भर के बोले।
‘‘हऔ, बात तो आप सई कै रएं बा कांड के बारे में तो मैंने सोई पढ़ी रई। सई में ई टाईप के लोग इंसान कहे जाने जोग नोंईं। बे तो राकस आएं राकस। इत्ती लोरी बच्ची खों कोऊ इंसान तो इत्तो जुलम नईं ढा सकत।’’ मैंने कई। अब मोए भैयाजी के गुस्से को कारन समझ में आओ। उनको गुस्सा सई हतो। जो बी बा कांड के बारे में पढ़े चाए सुने, ऊको खून खौले बिगर नईं रै सकत।
‘‘जेई सो हम कै रए के अपने ई समाज को का होत जा रओ?’’ जे सब ठीक नइयां।’’ भैयाजी बोले।
‘‘पर भैयाजी, ईमें पूरो समाज को का दोस? पांचों उंगरियां बरोबर तो होत नइयां। ऊंसई सबई जने एक से तो होत नइयां। चार अच्छे हुइएं, सो एक बुरौ बी निकर सकत आए।’’ मैंने कई।
‘‘जा कोन सी बात भई? पांचों उंगरियां छोटी-बड़ी भले होएं मनो बे कोनऊं खों अपने मन से अलग से नईं नोंचत आएं। सो ई समाज में कोनऊं खों जो अधिकार नईयां के बे ऐसो घिनां अपराध करे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आपको कैबो सई आए, मनो जे बताओ के ईके लाने करो का जा सकत आए?’’मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बई करो चाइए जो हैदराबाद में पुलिस वारन ने करो रओ।’ भैयाजी बोले।
‘‘पर उते तो बाद में कओ गओ के बा फर्जी इनकाउंअर रओ।’’ मैंने कई।
‘‘सो इते असली वारो कर देवें न! कोन ने रोकी आए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘जी तो जोई करत आए मानो ऐसो हो नईं सकत। काए से के कानून ऐसो करबे की इजाजत नईं देत आए।’’ मैंने कई।
‘‘औ कानून ऐसे राकसों को सब कुछ करबे की छूट देत आए?’’ भैयाजी औ गरम हो गए।
‘‘मेरे मतलब जो नइयां। कानून सजा देत आए अपराधियन को।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ! मनो अपराध करबे के बाद न! ऐसो डर काए नइयां के कोऊ ऐसो अपराधई ने करे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बो का आए के कानून को चक्कर बड़ो लंबो परत आए। बा ई लाने के चाए सौ अपराधी छूट जाएं मनो एक निरदोस खों सजा ने हो पाए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, जेई लाने तो रोजीना के सौ अपराधी बढ़त जा रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो सई आए आपकी, मनो अब करो बी का जा सकत आए?’’ मैंने पूछी।
‘‘भौत कछू करो जा सकत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जैसे?’’ मैंने पूछी।
‘‘जैसे के कानून जल्दी रिजल्ट देवे औ कर्री से कर्री सजा सुनाए। ऐसी सजा के जोन की सुन के दूसरों की हिम्मत ने होए ऐसो गंदो अपराध करबे की।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जा बात सई आए आपकी। कछू टेरर तो होने चाइए ऐसे लोग के लाने। तभई बे कछू करबे के पैले हजार बार सोंसे।’’ मैंने कई।
‘‘जा तो बात आए कानून की, मनो हम तो जा कै रए के अपराधी समाज से औ अपने परिवार से डराए। उनें लगो चाइए के जो हमने कछू खराब काम करो सो हमें भरी बजार में जूताई जूता परहें। तब कऊं जा के बे तनक डरहें। औ कैसे बे मताई-बाप आएं जो अपने मोड़ा खों कई से संस्कार नईं दे पा रए? अरे मोड़ा की सौ गलतियां माफ करो, मनो ऊ गलती में ने बख्सो। पैले तो समझा के रखो के सबई मोड़ियां इंसान होत आएं। छेड़ा-छाड़ी से उने बी दुख पौंचत आए। मोड़ियन की इज्जत करो। फेर बी ने माने सो पैलई सिकायत पे तबीयत से जूताई जूता मारो, जीसें ऊको समझ में आ जाए के मोड़ियन से कछु बी गलत नईं करो चाइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कई भैयाजी! पैले तो सबरे बिगरे मोड़ा के बाप-मताई जेई कैत आएं के हमाओ मोड़ा गऊ सो सीदो आए, बा ऐसो कछु करई नईं सकत। फेर जो पकरा जाए सो दौरत फिरत आएं के बा को फंसाओ जा रओ आए। जे सई आए के सबई खों अपनो मोड़ा साजो लगत आए। मनो साजो को साजो बना के राखो सो कोनऊं सल्ल काए बींधे?’’ मैंने कई।
‘‘औ का! आजकाल सो जे दसा होत जा रई के कोऊ चलत रोड पे मोड़ी खों काट छारे मनो कोऊ आगे बढ़ के ऊको रोकबे की कोसिस लौं ने करहे। औ कल्ल खो कओ ऊकी मोड़ी को नंबर आ जाए सो किलबिलात फिरहे। रामधई! पैले घर के मोड़ा नजर से डरात्ते। जो बब्बा ने घरे आंखें तरेर के देख लओ तो कओ पजामो गीलो हो जाए। पर अब मोड़ा अपने बब्बा खों ई कुचर डारे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात सो सई कै रए आप। सबसे पैले तो घरई में सिखाओ जाओ चाइए के अच्छो का आए औ बुरौ का आए? मोड़ियन खों तो बरहमेस टोंको जात आए, तनक मोड़ों खों सोई टोंको जाए सो ऐसो कछू ने घटे। फेर मनो एक घरे के मताई-बाप खुदई लापरवा आएं सो ऐसे में परवार, समाज औ सहर के लोगन खों उने टोकने चाइए। अभईं कोनऊं मोड़ा-मोड़ी अपनी मरजी से ब्याओ करबे खों निकर पड़ें तो सबरी खाप-पंचात बैठ जात आए, ऊंसई मोड़ा खों सुदारबे के लाने बी तो समै रैत में समाज की पंचात खों बैठो चाइए।’’मैंने कई।
‘‘जेई सो हम कै रए के समाज खों जात-पांत की सल्ल छोड़ के पैले बिटियन खों ऐसे अपराध से बचाबे की फिकर करनी चाइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई बात आए भैयाजी! जरूरी जे आए के कानून औ समाज दोई मिल के ई खिलाफ मोर्चाबंदी करे तभई ऐसे अपराध रुकहें ने तो लोहरी-लोहरी मोड़ियन के लाने डर बनो रैहे।’’ मैंने कई। फेर हम दोई कछू देर तक जेई पे मूंड़ खपात रए।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़िया हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के ई टाईप के अपराध से मोड़ियन खों कैसे बचाओ जा सकत आए?
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बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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