चर्चा प्लस | कहीं सचमुच SIR ‘सिरदर्द’ तो नहीं बन रहा है? | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर
चर्चा प्लस
कहीं सचमुच SIR ‘सिरदर्द’ तो नहीं बन रहा है?
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
SIR यानी स्पेशल इंसेंटिव रिवीजन अर्थात विशेष गहन पुनरीक्षण। अगर आम भाषा में बोला जाए तो मतदाताओं की शुद्धता की जांच। निःसंदेह यह जरूरी है क्योंकि नागरिकता संबंधी धोखाधड़ी या घुसपैठियों की पहचान इससे आसानी से हो सकती है किन्तु व्यावहारिक स्तर पर इसकी कठिनाइयां सामने आती जा रही हैं। यह उन क्षेत्रों के लिए तो जरूरी है जहां रोहिंग्या जैसे घुसपैठियों की संभावना अधिक है लेकिन जहां के नागरिक जन्म से उसी राज्य में हैं उन्हें भी अपने पुराने कागजात खंगालने पड़ रहे हैं। इस कार्य में लगीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एक-एक घर के दरवाजे बार-बार चक्कर लगाने को मजबूर हैं। कुलमिला कर मजाक में लोग कहने लगे हैं ‘‘एसआईआर माने सिरदर्द’’।
मैं अपने स्वयं के अनुभव से चर्चा की शुरुआत करूंगी। एक दिन दो आंगनबाड़ी कार्याकर्ता महिलाएं मेरे दरवाजे पर आईं। उन्होंने अपने आने का उद्देश्य बताया। फिर एक फार्म दे गईं कि ‘‘इसे भर कर रखिएगा। कल आकर हम ले जाएंगी।’’ मैंने देखा फार्म पर मेरी तस्वीर थी और मेरा नाम भी। स्पष्ट था कि मैं वोटर लिस्ट में मौजूद हूं। यूं भी बालिग होने के बाद से अब तक बड़े-छोटे यानी संसदीय चुनावों से नगरीय निकाय के चुनावों तक वोट डाल चुकी हूं। मध्यप्रदेश की ही पैदाइश हूं और सौभाग्य से आज तक इसी राज्य में रह रही हूं। खैर, मैंने फार्म ध्यान ये पढ़ा। कुछ समझ में आया, कुछ नहीं। जितना समझ में आया उतना मैंने भर दिया। सोचा कि बाकी पूछ कर भर दूंगी। किन्तु दूसरे दिन वे लोग नहीं आईं। शायद उनके आधीन बड़ा क्षेत्र होगा इसलिए वे किसी दूसरी काॅलोनी में चली गई होंगी। दो दिन बाद एक अन्य महिला आई। उसके साथ पुरुष कर्मचारी भी था। वह भी मेरी फोटो वाला फार्म लिए हुए थी। मैंने उसे बताया कि यह फार्म मुझे आपकी फलां साथी दे गई है और मैंने उसे भर लिया है। कृपया उसे चैक कर लीजिए और जमा कर लीजिए। इस पर उसने कहा कि नहीं मैं इस फार्म पर आपसे जानकरी ले कर अभी भर लेती हूं। कृपया अपना आधार नंबर, वेटर आईडी आदि बता दीजिए। मैंने उस दूसरे फार्म में अपना आधार नंबर भरा। उसे वोटर आईडी दिखाया। तो उसका कहना था कि ‘‘यह तो सन 2010 का है, मुझे सन 2003 की चाहिए।’’ मैंने कहा कि वह तो ढूंढनी पड़ेगी। फिर मैंने उससे पूछा कि यदि सन 2003 का वोटर आईडी नहीं मिली तो क्या होगा? इस पर उसने कहा कि वह जरूरी है। वह नहीं मिली तो मुश्किल होगी। यह सुन कर मेरा सिर चकरा गया। मैंने उससे पूछा कि यदि 2003 का वोटर आईडी नहीं मिली तो क्या मैं यहां की नागरिक नहीं मानी जाऊंगी? उसने कहा कि पता नहीं?
‘‘ये क्या मजाक है?’’ मेरे मुंह से निकला। मैंने उससे कहा कि ‘‘मैं जन्म से यहां की नागरिक हूं। मेरा आधारकार्ड, ड्राईविंग लाईसेंस यहीं का है, फिर मैं 2010 का वोटर आईडी भी दे रही हूं। कोई मुझे कैसे रोक सकता है वोट देने के अधिकार से?’’
‘‘मैडम, हमें तो जो आदेश मिला है, हम तो उसी के अनुसार काम कर रहे हैं।’’ वह महिला सहमती हुई बोली। उसकी बात सुन कर मुझे भी अपने गुस्से पर शर्मिन्दगी हुई कि मैं उस पर क्यों बिगड़ रही हूं? इसमें उसका क्या दोष? वह तो आदेश का पालन कर रही है।
फिर उसने अपनी समस्याएं गिनाईं कि कई घरों में लोग दरवाज़ा नहीं खोलते हैं, बात नहीं करते हैं। बात कर लें तो आधारकार्ड दिखाने से मना कर देते हैं क्यों कि आधार नंबर को ले कर बहुत धोखे होते रहते हैं। इन सबके कारण उन्हें बार-बार उन्हीं घरों में चक्कर लगाने पड़ते हैं। बहरहाल, मैंने उसकी उपस्थिति में ही अपनी पुरानी वोटर आईडी की ढूंढ-खोज की। दुर्भाग्य से मुझे 2003 की अपनी वोटर आईडी नहीं मिली लेकिन 1995 की अवश्य मिल गई। यानी सन 2003 से भी पहले की। मैंने उसकी प्रति उसे दे दी। जो उसने स्वीकार कर ली। अब परिणाम क्या होगा यह तो लिस्ट जारी होने पर पता चलेगा।
विचारणीय है कि जब फार्म में छपी फोटो और जानकारी से वोटर का मिलान हो रहा है, वह आधारकार्ड भी प्रस्तुत कर रहा है तो 2003 के वोटर आईडी का होना ही क्यों जरूरी है? फिर नौकरीपेशा घरों में लोग घर पर कम ही मिल पाते हैं। कुछ लोग छुट्टी के दिन अपने पैतृक घर अथवा आउटिंग में निकल पड़ते हैं। ऐसे लोगों का लिस्ट चैक करने वालों से संपर्क ही नहीं हो पाता है। कई लोगों को तो यह भी जानकारी नहीं रहती है कि ऐसा कुछ हो भी रहा है।
मैंने एक घर की कामवाली बाई से पूछा तो उसने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि न तो उसे इस बारे में पता है और न उसे यह पता है कि उसके पुराने कागज कहां रखे हैं। उसने बताया कि उसके पति सारे कागज अपने पास सम्हाल कर रखते थे मगर कोरोना में उनकी मृत्यु हो गई। अब उसे पता नहीं है और न याद है कि वे पुराने कागज कहां है। हां, आधारकार्ड, आयुष्मान कार्ड और लाड़ली लक्ष्मी के कागज उसने सम्हाल कर रखे हैं। सोचिए कि क्या ये पर्याप्त नहीं हैं वोटर लिस्ट में बने रहने के लिए?
वैसे निर्वाचन आयोग के अनुसार 4 नवम्बर से शुरू मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण- एसआईआर अभियान के दूसरे चरण में अब तक 46 करोड़ से अधिक गणना फॉर्म वितरित किए जा चुके हैं। निर्वाचन आयोग ने दूसरे चरण में नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में यह अभियान शुरू किया है जो 4 दिसम्बर तक जारी रहेगी।
निर्वाचन आयोग के अनुसार एसआईआर फॉर्म स्टेटस चेक करना उन सभी लोगों के लिए जरूरी है जिन्होंने अपना फार्म जमा किया है। अगर आप चाहते हैं कि आपका नाम वोटर लिस्ट में जुड़ा रहे तो ऐसी स्थिति में आपको एसआईआर फॉर्म भरना जरूरी होता है। एसआईआर की जब प्रक्रिया पूरी हो जाएगी तो फिर अंतिम मतदाता सूची को 7 फरवरी 2026 वाले दिन जारी किया जाएगा। अगर आप एसआईआर फॉर्म को भरकर जमा नहीं करेंगे तो ऐसी स्थिति में आपका नाम मतदाता लिस्ट से बिल्कुल काट दिया जाएगा।
फार्म भरने का विकल्प भी दिया गया है। वोटर अपने घर से ही अपने आवेदन की स्थिति को चेक कर सकते हैं और अगर कोई गलती है तो आप ऑनलाइन इसे ठीक भी कर सकते हैं। निर्वाचन आयोग के अनुसार मात्र कुछ ही मिनट के अंदर अपने फार्म की स्थिति को आसानी के साथ चेक किया जा सकता है। 1. इसके लिए फार्म के स्टेटस को चेक करने के लिए आपको मतदाता सेवा पोर्टल की वेबसाइट पर जाना होगा।
2. फिर आगे आपको मुख्य पृष्ठ पर स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन एसआईआर 2026 के विकल्प पर जाना है।
3. अब आपको फिल एन्यूमरेशन फार्म का विकल्प दबाना है।
4. इस तरह से आगे आपको अपना मोबाइल नंबर अथवा एपिक नंबर एवं कैप्चा कोड लिखकर ओटीपी वाले बटन को क्लिक करना है। 5. इस तरह से आपके मोबाइल पर आपको जो ओटीपी मिलेगा इसे दर्ज करके आपको सत्यापन करना है।
6. सत्यापन के पश्चात आप वेबसाइट पर लॉगिन हो जाएंगे और अब आपको अपना राज्य का चयन करना है।
7. इस प्रकार से आपको एपिक नंबर दर्ज करके सर्च वाला बटन क्लिक करना होगा।
8. यहां पर अब आपके सामने आपके फॉर्म का स्टेटस खुल कर आएगा।
9. आपको यहां यह लिखा हुआ दिखाई देगा कि आपका फॉर्म ऑलरेडी दिए गए मोबाइल नंबर के साथ में जमा कर दिया गया है।
10. यदि आपका फॉर्म जमा नहीं होगा तो फिर आपको मतदाता लिस्ट का विवरण दिखाई देगा और आपको आखिरी तारीख से पहले बीएलओ के मोबाइल नंबर पर संपर्क करना होगा।
प्रश्न यह है कि यह सरल प्रक्रिया क्या उनके लिए सरल है जिन्हें मोबाईल एवं कम्प्यूटर का पर्याप्त ज्ञान नहीं है? क्या उन्हें इस जानकारी के लिए अथवा इस प्रक्रिया से जुड़ने के लिए निजी केन्द्रों में पैसे खर्च करने होंगे? इस स्थिति में वोटर की जानकारी की सुरक्षा की क्या गारंटी रह जाएगी?
फिर इस काम की समय संक्षिप्तता के दबाव को बीएलओ झेल नहीं पा रहे हैं। विगत दिनों कुछ अप्रिय घटनाएं भी घटित हुईं। संभवतः इसीलिए एसआईआर को ‘‘सिरदर्द’’ कहा जा रहा है, वोटर्स के लिए भी और कर्मचारियों के लिए भी। अतः राष्ट्रीय महत्व के ऐसे कार्यों के लिए जमीनी कठिनाइयों से जुड़ कर क्रियान्वयन संरचना जरूरी हो जाती है। बहरहाल, असली परिणाम आगामी वोटरलिस्ट में सामने आएगा।
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(दैनिक, सागर दिनकर में 03.12.2025 को प्रकाशित)
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