पुस्तक समीक्षा | संवाद-पुरुष मुन्ना शुक्ला : सम्पूर्ण व्यक्तित्व का होलोग्राम प्रस्तुत करता एक स्मृति-ग्रंथ | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण
पुस्तक समीक्षा
संवाद-पुरुष मुन्ना शुक्ला : सम्पूर्ण व्यक्तित्व का होलोग्राम प्रस्तुत करता एक स्मृति-ग्रंथ
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक - संवाद-पुरुष मुन्ना शुक्ला
संपादक - डाॅ. कविता शुक्ला
प्रकाशक - प्रज्ञा भारती 1/11314, गली नं.4 सुभाष पार्क, शाहदरा दिल्ली-110032
मूल्य - 821/-
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कुछ व्यक्तियों का व्यक्तित्व परिवार के लिए होता है, कुछ का समाज एक हिससे के लिए और कुछ का सकल समाज के लिए। जो सकल समाज के व्यक्तित्व होते हैं वे भौतिक रूप से पंचतत्वों में विलीन हो कर भी संस्मरणों के रूप में स्मृतियों में सदा बने रहते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के संबंध में उनसे परिचित हर व्यक्ति अपने उद्गार व्यक्त करना चाहता है, वह बताना चाहता है जो व्यक्ति कल था और आज नहीं है, वह उसके लिए आज भी कितना महत्व रखता है। इन उद्गारों को जब एक पुस्तक के रूप में ढाल दिया जाता है तो एक ऐसा भावनात्मक स्मृति ग्रंथ बनता है जिससे उस दिवंगत व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यक्तित्व किसी ‘‘होलोग्राम’’ की भांति हमारे सामने आ खड़ा होता है। ऐसा ही एक संस्मरणात्मक ग्रंथ है ‘‘संवाद-पुरुष मुन्ना शुक्ला’’।
सागर शहर में कला और संस्कृति से जुड़ा कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो मुन्ना शुक्ला से परिचित नहीं होगा। यहां तक कि प्रापर्टी के क्षेत्र के लोग भी मुन्ना शुक्ला यानी मुन्ना भैया को भलीभांति जानते हैं। वे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे। साहित्य और कला, पशु एवं वनस्पति, मौसम विज्ञान तथा लगभग प्रत्येक विषय पर गहरी पकड़ उनकी खूबी थी। ऐसे व्यक्तित्व पर जब स्मृति ग्रंथ प्रकाशित करने का उनकी अद्र्धांगिनी डाॅ कविता शुक्ला ने निर्णय लिया तो 109 लेख इस ग्रंथ के लिए निर्धारित समय सीमा में आ गए। इसके बाद भी अनेक लोगों को मलाल रहा कि वे समय पर अपने संस्मरण साझा नहीं कर सके। यह मुन्ना शुक्ला के चुंबकीय व्यक्तित्व का प्रतिफलन रहा। इस ग्रंथ के प्रधान सम्पादक हैं डॉ. छबिल कुमार मेहेर, प्रबन्ध सम्पादक श्री उमाकान्त मिश्र तथा सम्पादक हैं डॉ. कविता शुक्ला।
यह वृहद कार्य बिना संपादक मंडल के संभव नहीं था अतः इस कार्य में सम्पादकीय सहयोग रहा डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय, डॉ. शाम्भवी शुक्ला मिश्रा, डॉ. सिद्धार्थ शंकर शुक्ला एवं श्री अभिषेक ‘‘ऋषि’’ का। परामर्श मण्डल में प्रो. दिनेश अत्रि, श्री गुंजन शुक्ला, श्री बृजेश मिश्र एवं डॉ. अलका सिद्धार्थ ने अपना परामर्श दे कर ग्रंथ को एक सुचारु रूप दिया।
‘प्रधान सम्पादक की कलम से’ में छबिल कुमार मेहेर ने ‘‘संवाद-पुरुष मुन्ना शुक्ला’’ शीर्षक से अपने विचार कुछ इस प्रकार व्यक्त किए है कि ‘‘दरअसल, एक भरी-पूरी संस्कृति और आदर्श जीवन-शैली का दूसरा नाम था ‘मुन्ना शुक्ला’ कला, साहित्य और संस्कृति के संगम का पर्याय। आज के इस कठिन समय में उन जैसे सहृदय का साथ छूट जाना मेरा व्यक्तिगत नुकसान है। ‘क्या टूटा है अन्दर अन्दर क्यों चेहरा कुम्हलाया है’ शब्दों में बयान नहीं कर सकता। पुस्तक में सम्मिलित 109 आलेख इस बात का प्रमाण हैं कि वे कितने लोगों को श्संवाद-रसश् चखा गये हैं और आज भी उनके चाहनेवाले खोए हुए हैं उनकी याद में। ‘‘स्मृति-ग्रन्थ’’ प्रकाशन के अवसर पर इस कालजयी बातूनी-आत्मा को शत-शत नमन, इस संवाद-पुरुष की स्मृति को सलाम।’’
उमाकान्त मिश्र ने “स्मृतियों का संगम” शीर्षक से लिखा है कि ‘‘आज हम एक ऐसे व्यक्तित्व को याद करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी उपस्थिति से हमारे जीवन को समृद्ध बनाया। मुन्ना भैया जिनके साथ हमने अनगिनत पल बिताए, वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं। शिवचंद्र उर्फ ‘मुन्ना भैया’ एक ऐसा नाम था, जो हमारे जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक था। उनकी मुस्कान, उनकी बातचीत, और उनके साथ बिताए गए पल हमें हमेशा याद रहेंगे। उन्होंने हमें जीवन के हर पहलू में प्रेरित किया और हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस पुस्तक के माध्यम से, हम उन्हें श्रद्धांजलि के साथ उनके साथ बिताए गए पलों को याद करना चाहते हैं। हमें उम्मीद है कि यह पुस्तक उनके जीवन और कार्यों को एक नए तरीके से पेश करेगी व परिजनों और मित्रों को सांत्वना प्रदान करेगी। इस पुस्तक में, उनके मित्र, परिवार के सदस्यों और सहयोगियों ने मुन्ना भैया के साथ बिताए गए पलों को संजोया है, अपने अनुभव और संस्मरण साझा किए हैं, जो मुन्नाजी के व्यक्तित्व और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दशति हैं। जिसके लिए हम आपका आभार व्यक्त करना चाहेंगे।’’
सत्य है! मुन्ना शुक्ला प्रतीक थे आकांक्षाओं के, कर्तव्यों के, कर्तव्यनिष्ठा के तथा संभावनाओं के। वे स्वप्नद्रष्टा थे। मेरी तो उनसे जब भी बात होती थी वे कला, साहित्य, व्यक्ति आदि पर लम्बी चर्चाएं करते हुए अंत में यही आकांक्षा प्रकट करते थे कि उनका सागर शहर साहित्य एवं संस्कृति का केन्द्र बने। वे ‘‘भारत भवन’’ जैसा कुछ सागर के लिए चाहते थे।
सबसे गहन भावनात्मक स्थिति होती है उस अद्र्धांगिनी की जो अपने दिवंगत पति पर केन्द्रित संस्मरणों का संपादन हेतु पठन करती है। डाॅ. कविता शुक्ला ने सचमुच एक दृढ़निश्चयी स्त्री होने का प्रमाण देते हुए इस स्मृति ग्रंथ का कुशल संपादन किया है। ‘‘संपादक की कलम से’’ के अंतर्गत “प्रणाम” शीर्षक से डाॅ कविता शुक्ला ने लिखा है कि ‘‘शुक्ला जी हमेशा लोकप्रियता और सम्मानों से दूर रहे। अनुशासित व्यक्तिव के धनी शुक्ला जी ने कभी मूल्य व सिद्धान्तों के साथ समझौता नहीं किया। वे सदैव खरा और स्पष्ट बोलते थे। गलत या व्यक्ति विशेष के आगे कभी झुके नहीं। लोकप्रियता, सम्मान और प्रसिद्धि की राह से सर्वथा स्वयं को दूर रखा। गंभीर और कर्तव्यनिष्ठ शुक्ला जी सदैव अपनों के संपर्क में रहते थे और अपनी सूझ-बूझ और दूरदर्शिता से जीवन के हर अनुभव को यथायोग्य व्यक्ति से साझा भी करते थे। परिवार और प्रियजनों के लिये यह सम्मान, गर्व और संतुष्टि का विषय है कि हम इस पुस्तक के मार्फत ऐसे संवेदनशील और विलक्षण व्यक्तित्व के बारे में और भी जान पा रहे हैं और नव पीढ़ी से अप्रतिहत संवाद का रास्ता खोल रहे हैं ताकि हमारी तरह वे भी ऐसे संवेदनशील और विलक्षण व्यक्तित्व का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।’’
सम्पादक मण्डल की ओर से दो वक्तव्य हैं जिनमें एक मुन्ना शुक्ला जी की पुत्री शाम्भवी शुक्ला मिश्रा का है जो स्वयं कथक की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना हैं। उन्होंने लिखा है कि ‘‘पापा का व्यक्तित्व जितना विशाल, उतना ही मृदु हृदयय ऐसी आत्माएँ बहुत कम होती हैं जो दूसरों के दुख में दुखी हों जिसके साक्षी हम स्वयं हैं। पापा ने संगीत, कला और अन्य विषयों के क्षेत्र में गूढ़ ज्ञान अर्जित किया जिसका शायद दस प्रतिशत ही हम और सिद्धार्थ सीख पाए होंगें...हम सौभाग्यशाली हैं कि ऐसे माता-पिता के घर, ईश्वर ने हमें जन्म दिया और सतत प्रयत्नशील भी कि जो विरासत में मिला है उसे संजोकर, सँभालकर उसमें ईश कृपा, मातृ-पितृ व गुरु कृपा द्वारा और विस्तार कर सकें... उनके बारे में लिखना सूरज को दीपक दिखाने की तरह है...।.
दूसरा वक्तव्य काव्यात्मक है, मुन्ना शुक्ला जी के पुत्र सिद्धार्थ शंकर शुक्ला का। उनकी पंक्तियां हैं-
एक पिता की विडंबना यह होती है,
कि पिता अपने वारिसों को यह सिखाता है,
कि वारिस,
पिता के बगैर कैसे इस संसार को बरतेंगे।
आपने वह सिखाया।
आपके सपनों को साकार होते हुए,
आपको,
मैं अपनी आँखों से दिखाऊँगा।
आपका पुत्र ही नहीं, धरोहर हूँ मैं।
जैसाकि मैंने आरम्भ में ही लिखा कि इस भावनात्मक स्मृति ग्रंथ में कुल 109 लेख हैं जो विविध आयामों से मुन्ना शुक्ला जी के व्यक्तित्व पर समुचित प्रकाश डालते हैं। इनमें मेरा एक लेख है- ‘‘भाई मुन्ना शुक्ला ईंट-गारे से जुड़े रह कर भी साहित्यिक घर बनाना जानते थे’’। ग्रंथ में सहेजा गया हर लेख अपने शीर्षक से ही मुन्ना शुक्ला जी के व्यक्तिव का स्पष्ट खाका खींचना शुरू कर देता है क्योंकि उनका व्यक्तित्व सरल, सहज एवं लोक को समर्पित था। जो उनसे मिलता वे उन्हें अपने जैसे प्रतीत होते। सभी लेखों का शीर्षक यहां दे पाना संभव नहीं है। अतः बानगी के तौर पर कुछ शीर्षक देखिए-‘‘मुन्ना शुक्ला एक सितारा - श्री आर.के. तिवारी, मेरे दोस्त मुन्ना शुक्ला-जनाब अब्दुल रफीक गुनी, दोस्त, भाई और मित्र-मुन्नाजी-डॉ. लता सिंह मुंशी, कला और संस्कृति के समर्पित साधक-शिवचंद शुक्ला ‘‘मुन्ना’’-डॉ. सतीश चैबे, आदरणीय जीजाजी- डॉ. संगीता चैबे, बेबाक और निष्पक्ष-मुन्ना शुक्ला- डॉ. हर्ष मिश्रा, कला, साहित्य मर्म विभूति मुन्ना भैया- डॉ. मनीष झा, मेरे जीवन स्तंभ-मुन्ना भैया- डॉ. दिलीप जैन, एक अलहदा व्यक्तित्व: मुन्ना शुक्ला-डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय, डी.लिट., मुन्ना भाई साहब!-डॉ. शशिप्रभा तिवारी भाई, मुन्ना शुक्ला, संगीतमय व्यक्तित्व मुन्ना शुक्ला जी - श्रीमती अलका श्रीवास्तव, स्मृति जो सदैव साथ रहेगी- श्रीमती राजलक्ष्मी शुक्ला, महान व्यक्तित्व के धनी-मुन्ना शुक्ला जी - श्री दामोदर अग्निहोत्री, इनसाइक्लोपीडिया मुन्ना भैया- डॉ. रजनीश जैन आदि।
इस ग्रंथ के प्रत्येक लेख को पढ़ने के बाद पाठक को यही लगेगा कि उसने न केवल एक व्यक्त्वि के बारे में अपितु उस व्यक्तित्व के समय के बारे में भी समग्रता से जान लिया है। इस दृष्टि से इस ग्रंथ की उपादेयता द्विगुणित हो जाती है। इस हेतु संपादक डाॅ कविता शुक्ला एवं ग्रंथ का सम्पूर्ण संपादक मंडल साधुवाद के पात्र हैं।
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