Tuesday, December 2, 2025

पुस्तक समीक्षा | अनुभवों के गलियारे से गुजर कर निकली ग़ज़लें | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

पुस्तक समीक्षा | अनुभवों के गलियारे से गुजर कर निकली ग़ज़लें | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


पुस्तक समीक्षा
अनुभवों के गलियारे से गुजर कर निकली ग़ज़लें
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह  - सिसकती यादें
कवि        - रंजीत सिंह लोधी ‘संदेश’
प्रकाशक     - उत्कर्ष प्रकाशन, 142, शाक्यपुरी, कंकरखेड़ा, मेरठ कैण्ट, उ.प्र.- 250001
मूल्य       - 200/-
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ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसने हिंदी में प्रवेश पाने के बाद ही अपनी सत्ता स्थापित कर ली। यह विधा रचनाकारों को अपने भाव प्रकट करने के लिए एक सशक्त माध्यम के रूप में लुभाती है। दुष्यंत कुमार ने हिंदी ग़ज़ल को नवीन सरोकारों के साथ स्थापना दी। नए प्रयोग, नए बिम्ब, नए संदर्भ ने हिंदी ग़ज़ल में अभिव्यक्ति को अनंत विस्तार दिया। अब तो हिंदी ग़ज़ल अपने आप में एक साहित्यिक संस्कार का रूप ले चुकी है। इस संस्कार के प्रकाश में रणजीत सिंह लोधी “संदेश” का प्रथम ग़ज़ल संग्रह  “सिसकती यादें” पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत हुआ है।
रंजीत सिंह की ग़ज़लों पर चर्चा करने से पूर्व एक बात पर ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं जो उन्होंने अपने आत्मकथन में लिखी है कि “मुझे दिव्यांग होते हुए भी आगे बढ़ाने एवं मंच देने में मेरे सभी कुटुंब जनों का भरपूर सहयोग व असीम स्नेह प्राप्त हुआ।” तो इस संदर्भ में मैं यही कहूंगी कि शारीरिक दिव्यांगता किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में या जीवन में सफलताएं प्राप्त करने में कभी रुकावट नहीं बन सकती है, रुकावट बनती है तो व्यक्ति की मानसिक दिव्यांगता। ग्राम सेसई साजी, तहसील बंडा जिला सागर में 15 सितम्बर 1981 को जन्मे रंजीत सिंह लोधी में भरपूर संवेदनशीलता है और जो व्यक्ति दूसरों के दुखों को महसूस कर सकता है और अपने दुख की भांति उसे आत्मसात करके व्यक्त कर सकता है वह जीवन में किसी भी मोर्चे पर कभी हार नहीं मान सकता, जोकि उनकी ग़ज़लों से भी प्रकट होता है। उनकी जीवटता इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि वे दिव्यांग होने के बावजूद यमुनौत्री, केदारनाथ तथा चंदनबाडी से केदारनाथ की साहसिक पैदल यात्रा कर चुके हैं, जैसा कि उनके परिचय में लिखा है। वर्तमान में ग्राम्य अंचल पथरिया गौड़ के शासकीय हाई स्कूल में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं। हिंदी साहित्य में स्नातक रंजीत सिंह लोधी जीवन में आदर्श एवं नैतिक मूल्यों को महत्व देते हैं। इसीलिए अन्याय, असंतुलन आदि देख कर उन्हें पीड़ा होती है।
अब बात संग्रह की ग़ज़लों की तो रंजीत सिंह लोधी ‘संदेश’ की ग़ज़लों में नवीन प्रयोग हैं जो सहसा ध्यान आकर्षित करते हैं तथा विषय की परिपक्वता को रेखांकित करते हैं। जैसे संग्रह की प्रथम ग़ज़ल के ये तीन शेर देखिए जिसमें ‘ग्रेट निकोबार’, “आशिकी” में होने वाले ‘संहार’ जैसे बिम्ब और संदर्भ रखे गए हैं-
अपनी संगत को सुधारो, बढ़ोगे तब आगे
तला  के  टापू  कभी  ग्रेट निकोबार  हुए।
आशिकी चीज है महंगी कठिन खर्चीली
कई  परवान  चढ़े  और कई संहार हुए।
हमें तो ठीक से आता नहीं पहाड़ तक
गए उसूल अब तो, तीन व दो-चार हुए।
जब बात प्रेम की हो तो संयोग एवं वियोग दोनों स्थितियां सामने आती हैं। स्वाभाविक है कि संयोग सुखद लगता है और वियोग कष्टप्रद। उस पर, यदि इस बात का अंदाजा हो कि कहीं कोई छल कपट किया गया है तो स्थिति और अधिक पीड़ादायी हो जाती है। इस बात को रंजीत सिंह ने अपनी ग़ज़ल में बड़ी साफ बयानी से कहा है, जिसमें उलाहना भी है, प्रेम की गरिमा भी है और पीड़ा भी। शेर देखिए-
तेरी गुस्ताखियों का भी तुझे सिला देंगे
वफा के आंसुओं से, घर तेरा हिला देंगे
तूने छुप-छुप के उसे प्यार किया था लेकिन
हमें ऐतराज क्या, हम खुद तुझे मिला देंगे ।
रंजीत सिंह लोधी ‘संदेश’ ने अपनी रचना धर्मिता के विकास के बारे में अपने आत्मकथन में लिखा है कि - ‘‘बंदी, अभिनंदन पत्र, विदाई पत्र, आदि से प्रारंभ हुई काव्ययात्रा काफी उतार-चढ़ाव के बाद आज गजल विधा को प्रतिष्ठित हो रही है। प्रारंभिक लेखन में देशभक्ति गीत, धार्मिक प्रसंगों पर गीत, कव्वाली, भजन कीर्तन, लेख आदि पर ध्यान केंद्रित रहा। शैक्षिक जीवन की अतिव्यस्ता के बीच कुछ मनोभावों को अंदर तक झकझोर देने वाली स्थितियों का सामना किया, किरदार बदले, लेकिन बर्ताव वही चिरपरिचित, स्वार्थ, धोखा, दिखावा, लालच से मन कई बार टूटा, मनोदशा को स्थिर करने और अपने आप को पुनः जीवन के विविध रंगों की ओर ले जाने के उद्देश्य से पश्चाताप, ग्लानि, उदासी को गजल के रूप में उकेरने का प्रयास किया, शैक्षिक मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन वाणी, मेरा प्रिय विषय रहा है, इन्हीं सब बिंदुओं को समावेश करते हुए... सजल नयनों से ओतप्रोत ए प्रथम गजल संग्रह ‘सिसकती यादें’ आपके सम्मुख प्रस्तुत है।’’
रंजीत सिंह लोधी की ग़ज़लों को पढ़कर कहीं से भी ऐसा प्रतीत नहीं होगा कि यह एक नवोदित ग़ज़लकार का पहला संग्रह है। एक ही ग़ज़ल में भावनाओं के कई शेड्स मिलते हैं। एक ही ग़ज़ल के इन शेरों को पढ़कर स्वतः विश्वास हो जाएगा -
कहां नाम   रखने  के  मतलब  मिले हैं।
हिफाजत की कांटों ने, तब गुल खिले हैं।
जहां सत्य, विश्वास  आशा  की  चाहत
वहां  सिर्फ    बदले  में   धोखे मिले हैं।
मिटा  दो  ये  दूरी, मेरे  पास आओ
निकालो दिलों में, जो शिकवे गिले हैं।
हमें इल्म था होंगे लम्बे या छोटे
मगर नाप के उसने कपड़े सिले हैं।
हमें नाज है अपने माता-पिता पर
नियम -  कायदों में हमेशा चले हैं।
इस संग्रह की हर ग़ज़ल अनुभवों की रोशनी से नहाई हुई है, इसलिए हर पाठक को ये अपनी आप बीती-सी लगेंगी। कोई भी व्यक्ति आज ऐसा नहीं है जिसे खुरदुरे अनुभवों से कभी दो-चार होना न पड़ा हो। कभी रोजगार को लेकर, तो कभी व्यापार को लेकर और कभी संबंधों के सरोकार को लेकर अनुभवों के दंश मन-मस्तिष्क को लहू लुहान करते ही रहते हैं। इसी संदर्भ में मध्यम बहर की एक ग़ज़ल का मुखड़ा और एक शेर देखिए-
सपने भी बेरंग दिखाए आँखों ने।
उम्मीदों को पंख लगाए आँखों ने।
अंदाजा था बेगुनाह साबित होंगे
सारे छुपे सबूत दिखाए आँखों ने।
80 ग़ज़लों के इस संग्रह में कवि रंजीत सिंह ने “स्व” और “पर” के बीच की महीन रेखा को मिटाते हुए जिस समग्रता से भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है वह प्रशंसनीय है। अकबर इलाहाबादी ने लिखा था कि -
खींचो न  कमानों  को,  न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो
भले ही अकबर इलाहाबादी के इस शेर का संदर्भ अलग है किंतु कुछ इसी तरह के भाव रंजीत सिंह की ग़ज़ल में भी आए हैं जिनमें वे जीवन के विभिन्न संदर्भ में कलम को चुनने का आह्वान करते हैं-
करना है कुछ अलग शोध तो कलम चुनो।
लेना  चाहो,  प्रतिशोध  तो   कलम चुनो।
तलवारों  से  रक्त  बहा   इंसानों   का
मिट जाएं सब गतिरोध तो कलम चुनो।
सभ्यताओं की सृजनशीलता कौन लिखे
गर चाहो इतिहास बोध तो कलम चुनो।
इस संग्रह की ग़ज़लें इस बात का सबूत हैं कि कभी नहीं पीड़ा को हथियार बनाने और जिंदगी को जीने का आह्वान किया है। कटु अनुभवों की  सिसकती यादों को हृदय में दबा कर आगे बढ़ने की चाह घोर निराशा में भी आशा का संचार करने की शक्ति रखती है। कवि  रंजीत सिंह की भाषाई पकड़ अच्छी है। उनमें अभिव्यक्ति की बेहतरीन क्षमता है जिसकी झलक उनके इस प्रथम संग्रह में देखी जा सकती है। इस संग्रह की ग़ज़लों को जरूर पढ़ा जाना चाहिए। मौलिक बिम्ब विधान उनकी ग़ज़लों को विशेष बनाता है।
संग्रह में डाॅ (सुश्री) शरद सिंह, अशोक मिजाज़ ‘बद्र’ एवं ईश्वर दयाल गोस्वामी के भूमिकात्मक विचार हैं तथा सहावेन्द्र्र प्रताप सिंह ‘शशि’ का शुभकामना संदेश है। ‘‘सिसकती यादें’’ ग़ज़ल संग्रह की ग़ज़लों को पढ़ कर विश्वास हो जाता है कि रंजीत सिंह लोधी “संदेश” की रचना धर्मिता में असीम संभावनाएं हैं। मुझे विश्वास है कि उनका यह प्रथम ग़ज़ल संग्रह पाठकों को पसंद आएगा।      
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