Thursday, May 18, 2023

बतकाव बिन्ना की | उनकी केमिस्ट्री, भैयाजी के लाने मिस्ट्री | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"उनकी केमिस्ट्री, भैयाजी के लाने मिस्ट्री" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  

उनकी केमिस्ट्री, भैयाजी के लाने मिस्ट्री              
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
     ‘दो-चार दिनां से दिखा नईं रईं। कां हतीं?’’ भैयाजी आतई साथ पूछन लगे।
‘‘कऊं नईं, इतई, घरै डरी रई।’’मैंने भैयाजी से कई।
‘‘डरी रई को का मतलब? हमें सोई तुमाई फिकर सी हो रई हती, मनो आज तुमाई भौजी बोलीं के जाओ, देख के आओ, कां आएं बिन्ना?’’ भैयाजी ने कई।
‘‘सच्ची मोरी भौजी खों मोरी कित्ती फिकर रैत आए।’’ भैयाजी की बात सुन के मोरो गला भर आओ।
‘‘जे का? तुम तो रोन लगीं? बे तो खुदई आ रई हतीं, मगर हमई ने कई के पैंलऊं हम देख लें के बिन्ना घरे आए के नईं, फेर जाइयो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, मोए कां जाने? इत्ती सो गरमी पड़ रई औ ऊपे तबीयत की सल्ल बींध गई।’’मैंने कई।
‘‘हऔ, आवाजई बता रई के तुमाओ गरो लगो आए। कोनऊं दवा-दारू लई?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, दवा सो ले लई, मनो दारू को सो सवालई नईं उठत!’’ मैंने हंस के कई।
‘‘तुमें औ ठिठोली सूझ रई। हमाओ मतलब बा वारी दारू से नोईं।’’ भैयाजी सोई हंसत भए सफाई देन लगे।
‘‘अरे, मैं सो ऊंसई कै रई। बाकी डाॅक्टर खों दिखा के दवा लई रई। बा बोल रए हते के वायरल हो गओ आए।’’ मैंने भैयाजी खों बताओ।
‘‘चलो, जल्दी ठीक हो जेहो! बाकी जे वायरल सोई गजब की चीज कहानी। कछु के लाने बीमारी आए औ कछू के लाने पब्लीसिटी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का मतलब?’’ मैंने पूछी।
‘‘मतलब जे के जोन को वायरस वारो वायरल भओ बा सो डाक्टर की दवा खा के ठीक हो जात आए। मनो जोन की सोसल मीडिया को पोस्ट वारो वायरल होन लगत आए उने लगत आए के उनको वायरल वारो बुखार कभऊं उतरेई नोईं। का गजब की चीज बनाई भगवान ने जे वायरल।
‘‘भगवान ने काय बनाई? अपन ओरन नेई बनाई आए। जे जो सोसल मीडिया के वीर आएं बे अपनी पोस्ट खों वायरल करबे के लाने कौन-कौन सी जुगत करत रैत आएं। कभऊं रेल की पटरी पे ठांडे हो जात आएं, सो कभऊं खाई-खड्डा पे पौंच के अपनी जान पे खेलत आएं। बाकी जे सब सो जो है सो है, मनो बुरौ तब लगत आए जब जे ओरें कोनऊं एक्सीडेंट के धायलन की मदद करबे की बजाए उनकी रील बनावे टिक जात आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सांची कै रईं बिन्ना! एक तो बे ऊंसई पीरा में औ तुम उनकी फिलम बनान लगो, सच्ची जे ठीक नोईं। हमें सोई नईं जंचत!’’ भैया जी बोले। फेर मोसो पूछन लगे,-‘‘सो तुमने कछू न्यूज-म्यूज देखी - पढ़ी ने हुइए।’’
‘‘काए नईं? बिस्तर पे परे-परे औ करनेई का हतो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ ठीक कई बिन्ना! सोत-सोत सो पूरे पांच बरस निकर जात आएं, सो जे पांच दिनां की का।’’ भैयाजी ने को जाने का समझी औ बे कहन लगे।
‘‘अरे, मोरो कैने को मतलब जे के परे-परे मोबाईल पे ख़बरें देखत रई। अब टेम पास सो करनेई रओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो तुमने देखो कर्नाटक में का भओ?’’ भैयाजी असल मुद्दा पे आ गए। मोए पतो के बे कोनऊं से उते के बारे में बतकाव करबे खों मरे जा रए हुइएं, मनो कोनऊं मिलो ने हुइए।
‘‘हऔ, देखो! औ बाद को सोई सगरो नजारों देख लओ।’’ मैंने अपनो अपडेट सोई बता दओ।
‘‘तुमें का लगत आए के अपने इते सोई कछू घट-बढ़ हुइए?’’ भैयाजी मोरी बात एक तरफा सरका के अपनी पूछन लगे।
‘‘आपको का लगत आए?’’ मैंने सोई उनको सवाल उनई पे दाग दओ।
‘‘जे का बात भई? जो हमाओ सवाल आए, औ हमने तुमसे पैले पूंछी सो तुम पैलऊं बोलो।’’ भैयाजी मों बनात भए बोले।
‘‘अब मोय का पतो के बिलौटा कोन करवट बैठहे?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘पैलऊं तो तुम कहनात ठीक बोलो, ई कहनात बिलौटा के बारे में नोईं, ऊंट के बारे में आए के ऊंट कोन से करवट बैठहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मैंने बिलौटा ईसे कई के अपने इते सो ऊंट होत नइयां, बे तो राजस्थान में होत आएं। सो ऊंट कोन करवट बैठेहे, जे तो राजस्थान वारे बता सकत आएं। बाकी अपने इते सो बिलौटा पाए जात आएं। बे आंखंे मूंद के दूध-मलाई चट कर जात आएं औ अपन आंखें खोले रख के बी उने ऐसो करे से रोक नई पात आएं। सो, अपने इते बिलौटा वारी बात ठीक बैठत आए। औ कहनात को का? जां जैसी ठीक लगे, सो बदली जा सकत आए। जो कोनऊं केमिस्ट्री को फार्मूला नोईं के बदलो ने जा सके।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘तुमने कभऊं केमिस्ट्री पढ़ी?’’ भैयाजी खों मोए पे डाउट भओ।
‘‘आप ई पे ने जाओ के मैंने का पढ़ी औ का नईं पढ़ी! बाकी मैंने ग्यारहवीं बोर्ड परीक्षा लों केमिस्ट्री पढ़ी। जे बात अलग आए के ऊके फार्मूला याद करबे में मोय बड़ो कष्ट होत रओ। एक बेरा की किसां बताऊं के ऊ टेम मैं नौंवी में पढ़त्ती। परीक्षा को टेम हतो। मोरी वर्षा दीदी ने सोची के मोय केमिस्ट्री के फार्मूला रटवा दए जाएं। बे सारी रात मोय अपने आंगू बिठा के एसिटिक एसिड को फार्मूला रटात रईं-‘सी एच थ्री सी ओ ओ एच’’। रात के तीनेक बजे हम ओरे सो गए। भुनसारे जब जागे सो दीदी ने मोसे फार्मूला पूछी। मोसे नई बनो। सो दीदी झल्ला के बोलीं, ई केमिस्ट्री में तुमाओ कछू नई हो सकत! दे आओ पेपर, हम प्रार्थना करबी के एसिटिक एसिड को फार्मूला परीक्षा में ने पूछो जाए।’’
‘‘फेर? का बा फार्मूला पूछो गओ?’’ भैयाजी ने पूछो।
‘‘नईं, दीदी की प्रार्थना भगवानजी ने सुन लई। बाकी जो केमिस्ट्री को ले के उन्ने कई रई के केमिस्ट्री में तुमाओ कछू नई हो सकत सो बा सोई सही निकरी। मोरी कभऊं कोनऊं से केमिस्ट्री बनई नई पाई।’’ कैत भई मैं हंसन लगी।
मोरी बात समझबे में भैयाजी खों मिनट भर लगो, फेर बे सोई हंसन लगे।
‘‘अब तुमाई केमिस्ट्री की सो छोड़ो, बाकी जे बताओ के तुमे का लगत आए के ई बेरा अपने इते कांग्रेस की केमिस्ट्री बन पेहे के नईं?’’ भैयाजी घूम-फिर के फेर उतई आ गए।
‘‘भैयाजी! लगत आए के आपको मोरी स्टोरी से कोनऊं ज्ञान नई मिलो!’’ मैंने भैयाजी से गई।
‘‘का मतलब तुमाओ?’’ भैयाजी तनक चैंके।
‘‘अरे, सूधी सी बात आए के जोन की केमिस्ट्री परीक्षा से ले के जिनगी लों सध ने पाई बो का बतेहे कांग्रेस की केमिस्ट्री? आप सोई लगे हो!’’ मैंने भैयाजी से खुल के कई।
‘‘फेर बी, राजनीति अलगई चीज कहाउती आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ठीक, मोरी केमिस्ट्री की छोड़ो आप, उते कांग्रेस के नेताजी की सोई अबे लो कोनऊं केमिस्ट्री ने बन पाई, सो कांग्रेस औ केमिस्ट्री को गुणा-भाग सो आप छोड़ई देओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अरे, जे सो बतकाब करबे की बात आए। अब केमिस्ट्री ने कई जाए सो का कई जाए?’’ भैयाजी झुझलात भए बोले।
‘‘आप जे पूछो न, के कांग्रेस को इते को मौसम बदलहे के नोंई?’’ भैयाजी खों सुझाव दओ।
‘‘चलो जेई बता देओ!’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मौसम के बारे में आजकाल कछू नई कओ जा सकत। सागर में धूप चटकत आए सो, गौरझामर में ओला गिरत रैत आएं।’’ मैंने हंस के कई।
‘‘हम समझ गए के तुम हमें बना रईं, असल बात ने बोलहो!’’ भैयाजी तनक रिसाए। मनो आपई बताओ के जब बदरा ऊंदें तभई बारिस की कई जाए, अभईं 22 तारीख से जेठ लगो जा रओ। अभईं से मैं का बताओं के सावन में पानी गिरहे के नोंई? बाकी भैयाजी अबे हफ्ता-खांड़ कांग्रेस की केमिस्ट्री की मिस्ट्री में उलझे रैहें।
मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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