Tuesday, May 30, 2023

पुस्तक समीक्षा | रक्तरंजित महत्वाकांक्षा की एक प्रामाणिक अपराध कथा | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 30.05.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई   लेखक संजय सिंह की बहुचर्चित पुस्तक "एक थी शीना बोरा" की समीक्षा... 
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पुस्तक समीक्षा
रक्तरंजित महत्वाकांक्षा की एक प्रामाणिक अपराध कथा
 - समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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अपराध कथा - एक थी शीना बोरा
लेखक      - संजय सिंह
प्रकाशक     - राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, जी-17, जगतपुरी, दिल्ली- 110 051
मूल्य        - 399/-
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सच लिखना हमेशा कठिन होता है। उस समय यह और भी जोखिम भरा होता है जब किसी अपराध का सच लिखा जा रहा हो और वह भी वर्तमान में घटित अपराध का। एक डिस्क्लेमर कि ‘‘पात्रों ओर घटनाओं का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से संबंध नहीं है तथा घटनाओं का किसी घटना से मिलान होना संयोग मात्र है।’’ -लेखक को बहुत बड़े संकट से बचा लेता है। इस तरह का डिस्क्लेमर लेखक के लिए ‘सेफ्टीबेल्ट’ होता है। जो किसी भी संभावित आपदा से लेखक को साफ़ बचा ले जाता है। लेकिन संजय सिंह का शुमार ऐसे लेखकों में नहीं है। उन्होंने जिस तरह एक क्राइम इन्वेस्टिगेटर के रूप में पत्रकारिता की है, वही ‘दुस्साहसी प्रवृति’ उनकी किताबों में एक के बाद एक देखने को मिल रही है। चलिए, पहले लेखक के बारे में ही कुछ चर्चा कर ली जाए। जैसा कि ‘‘एक थी शीना बोरा’’ के कव्हर के आंतरिक पृष्ठ पर लेखक का परिचय दिया गया है-‘‘ संजय सिंह क्राइम और इन्वेस्टिगेटिव लेखन व पत्रकारिता की दुनिया के चर्चित नाम हैं। उनका जन्म 4 मार्च, 1971 को मुम्बई में हुआ। वहीं पले-बढ़े। मुम्बई यूनिवर्सिटी से पी-एच. डी. और एलएलबी की उपाधि प्राप्त की। पिछले ढाई दशक से ज्यादा समय से वे पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं। बतौर पत्रकार उन्होंने ‘‘शीना बोरा मर्डर केस’’ को कवर किया है। जी न्यूज, एनडीटीवी, टाईम्स नाउ, आईबीएन, न्यूज-एक्स जैसे प्रमुख चैनलों में सीनियर पदों पर रहे संजय ने इस दौरान क्राइम और खोजी पत्रकारिता में अपनी खास पहचान बनाई। ‘तेलगी स्टैम्प स्कैम’ का पर्दाफाश उनकी पत्रकारिता का एक जरूरी उदाहरण है। इसी स्कैम पर लिखी गई उनकी किताब ‘‘तेलगी स्कैम’’ रिपोर्टर की डायरी’’ पर ‘‘स्कैम 2003: द तेलगी स्टोरी’’ नाम से एक वेब सीरीज बन रही है। उनकी एक और किताब ‘‘सीआईयू: क्रिमिनल इन यूनीफार्म’’ भी धूम मचा चुकी है। यह किताब हिन्दी, अंग्रेजी और मराठी में प्रकाशित हुई है। इस किताब पर भी एक वेब सीरीज बन रही है।’’
इसी समीक्षा काॅलम में मैं ‘‘सीआईयू: क्रिमिनल इन यूनीफार्म’’ के बारे में पूर्व में लिख चुकी हूं। उस पुस्तक को पढ़ने के बाद संजय सिंह के लेखन के प्रति मेरा आश्वस्त होना स्वाभाविक था। अब ‘‘एक थी शीना बोरा’’ वह धमाका है जो हिन्दी कथा जगत को कोरे-फिक्शन के बजाए सत्यलेखन के और करीब लाएगा। इस पुस्तक में लेखक द्वारा सच का उद्घाटन उसके डिस्क्लेमर से ही आरम्भ हो जाता है, जब लेखक संजय सिंह साफ़गोई से लिखते हैं कि-‘‘इस किताब को बिना किसी पूर्वग्रह और दुर्भावना के लिखा गया है। ‘‘शीना बोरा मर्डर’’ का मामला अभी अदालत में चल रहा है। इस किताब का उद्देश्य किसी भी तरह से उस केस, उसके किसी पहलू या उससे जुड़े किसी व्यक्ति, आरोपी, जांच एजेंसी या आम पाठक को किसी व्यक्ति विशेष या संस्था के बारे में प्रभावित करना नहीं है। लेखक मानता है कि बिना अदालती फैसला आए किसी आरोपी को दोषी करार देना उचित नहीं है और यह किताब भी ऐसा कोई प्रयास नहीं करती। बतौर पत्रकार लेखक के अपने व्यक्तिगत अनुभवों के अलावा यह किताब ‘‘शीना बोरा मर्डर’’ से जुड़ी उपलब्ध जानकारियों को सिलसिलेवार तरीके से पिरोकर एक जटिल मामले को सरल तरीके से समझाने का प्रयास मात्र है। इसके लिए अदालत में पेश दस्तावेजों और सबूतों के अलावा अन्य सामग्री का सहारा भी लिया गया है। सम्बन्धित लिंक किताब के आखिर में ‘‘सन्दर्भ सूची’’ में दिए गए हैं।’’
अर्थात् प्रथम पृष्ठ से ले कर अंतिम पृष्ठ तक खांटी सच्चाई। लेखक ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि इस पुस्तक को लिखने के लिए उन्हें शीना बोरा केस के सोलह हजार पृष्ठ के दस्तावेज पढ़ने पड़े थे। लेखक का दावा सच है क्योंकि उन सोलह हजार पृष्ठों में से अनेक तथ्य इस पुस्तक में मौजूद हैं। लेखक ने विधि मुखर्जी की किताब ‘‘द डेविल्स डॉटर’’ से भी जानकारी बटोरी हैं क्योंकि विधि मुखर्जी इस पूरे घटनाक्रम से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी रहीं। इन जानकारियों को संजय सिंह ने बाकायदा विधि और उसकी किताब के नाम सहित उद्धृत किया है।  
अब बात करते हैं ‘‘शीना बोरा मर्डर’’ केस की। वर्ष 2015 में घटित शीना बोरा हत्याकांड ने सारे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था। यह एक हाईप्रोफाईल हत्याकांड था। 1989 में जन्मी शीना बोरा एक ऐसी युवती थी जिसने अपने संक्षिप्त जीवन में अविश्वनीय रिश्ते पाए और फिर एक दिन अपनों के हाथों मारी गई। शीना बोरा तत्कालीन ‘‘मीडिया मुगल’’ कहे जाने वाले शक्तिशाली व्यक्ति पीटर मुखर्जी की दूसरी पत्नी इन्द्राणी मुखर्जी की पहली बेटी थी। इस घटना से यही पता चलता है कि जहां अतिमहत्वाकांक्षा हो वहां अपनों के रक्त से हाथ रंगने में भी संकोच नहीं किया जाता है। महत्वाकांक्षा का एक घिनौना चेहरा। एक अविश्वसनीय-सी लगने वाली सच्ची कथा। लेखक संजय सिंह ने जिस विस्तार और बारीकी से इस उलझे हुए घटनाक्रम को सुलझाने और सिलसिलेवार प्रस्तुत करने का श्रमसाध्य काम किया है, वह सचमुच प्रशंसनीय है। पुस्तक के आरम्भ में ही लेखक ने ‘‘रिश्तों के मकड़जाल’’ शीर्षक से इस घटना के सभी संबंधित व्यक्तियों के पारस्परिक रिश्तों को सामने रखा है। जैसे- इंद्राणी मुखर्जी दुर्गा और उपेंद्र बोरा की बेटी थी। जिसके पहले कथित पति सिद्धार्थ दास से दो बच्चे थे- शीना और मिखाइल। दूसरे पति संजीव खन्ना से एक बेटी विधि और तीसरे पति पीटर मुखर्जी ने विधि को गोद ले लिया था। जबकि पीटर मुखर्जी जो स्टार टीवी इंडिया का प्रमुख था, की पहली शादी शबनम सिंह हुई थी। जिससे उसके दो बेटे थे - रॉबिन और राहुल। शीना बोरा इंद्राणी के पहले पति सिद्धार्थ दास से पैदा हुई बेटी थी लेकिन अपनी महत्वाकांक्षा के चलते इंद्राणी ने दुनिया के सामने शीना को अपनी बहन बताकर प्रस्तुत किया। आगे चल कर शीना का उस राहुल से प्रेम हो जाता है तथा सगाई होती है जो उसका किसी भी तरह से रक्तसंबंधी नहीं था लेकिन सामाजिक ढांचे के अनुसार उसका सौतेले भाई था। यही राहुल शीना का न केवल संरक्षक बना बल्कि उसके लापता होने के बाद उसे ढूंढे जाने का लगातार दबाव बनाता रहा। इस षडयंत्र और हत्याकांड की कथा का दो मधुर पक्ष था कि शीना बोरा के मन में इस बात का सदा मलाल रहा कि उसकी मां इन्द्राणी ने उसे न तो सार्वजनिक रूप से अपनी बेटी माना और न मां का प्यार दिया जबकि उसकी सौतेली बहन को बेटी होने का गौरव मिलता रहा। फिर भी शीना और विधि के बीच आपसी प्रेम बना रहा। विधि ने भी सच जानने के बावजूद शीना के प्रति बहनापा बनाए रखा।
इस लोमहर्षक जघन्य हत्याकांड में दूसरा सुंदर पक्ष था राहुल और शीना बोरा का आपसी प्रेम। किसी फिल्मी या टीवी सिरीज़ की खलनायिका की भांति इंद्राणी द्वारा दोनों को एक-दूसरे से अलग करने के सारे हथकंडे अपनाएं गए जो विफल होते गए, क्योंकि दोनों को एक-दूसरे से असीम प्रेम था। इस संबंध ने लेखक संजय सिंह ने भी ‘पोएटिक एप्रोच’ के साथ उस समय का वर्णन किया है जब शीना से राहुल का कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था और राहुल किसी अनहोनी के भय से ग्रस्त हो कर लापता की रिर्पोट लिखवाने के लिए विभिन्न थानों के चक्कर लगा रहा था। लेखक ने लिखा है-‘‘मृग परेशान है। उसे कस्तूरी नहीं मिल रही है। वह लगातार उसे खोज रहा है। यहां-वहां क्रंकीट के जंगल में भटक रहा है। उसकी कस्तूरी के बारे में, जो बहेलिया जानता है वह उसे दिलासा दे रहा है कि उसकी कस्तूरी ठीक है। पर वह उसे उसकी कस्तूरी लौटा नहीं रहा है। न ही वह उसे उसका अता-पता बता रहा है। मृग चाहता है कि जंगल के दूसरे पशु इस मामले में उसकी मदद करें। सब मिलकर बहेलिये पर दबाव डालें, जिससे वह मृग की कस्तूरी का पता बता सके। या फिर बातचीत में ही भूलवश कुछ सच उगल दे। बहेलिया कहता है कि उसे पता है कि उसकी कस्तूरी कहाँ है। पर कस्तूरी नहीं चाहती कि बहेलिया उसका पता मृग को दे। कस्तूरी के जो दूसरे मित्र, रिश्तेदार या दोस्त हैं, उन्हें अगर कस्तूरी की फिक्र है तो वे भी मृग से पूछने की बजाय बहेलिये से उसके बारे में पूछ सकते हैं। बहेलिया कस्तूरी और मृग के बीच चट्टान बनकर खड़ा हो गया है। मृग चाहता है कि वह हट जाए या उसे जबरदस्ती हटा दिया जाए। पर बहेलिया इतना मजबूत और चैकस है कि वह अपने खिलाफ कोई सुराग नहीं छोड़ रहा है। जैसे ही उसे अपनी किसी गलती का एहसास होता है वह तुरन्त उसे दुरुस्त कर देता है। बहेलियों की इन सुघड़ चालों के आगे मृग बेबस, असहाय और उदास खड़ा है। रातों को जाग-जाग उठता है। अपनी कस्तूरी के बारे में फिक्रमंद होता है। कोई रास्ता नहीं मिलने पर रोने लगता है, उस मासूम स्कूली बच्चे की तरह जिसका सबसे प्यारा दोस्त उसे बिना बताए कहीं चला गया है।’’
इस तरह लेखक ने राहुल की मनोदशा और व्याकुलता को बड़े मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है। हत्याकांड की रक्तिम कथाभूमि पर हरी दूब-सी कोमल भावनाओं को सटीक ढंग से पिरोया गया है।
शीना बोरा एक ऐसा हत्याकांड रहा है जिसके सामने आने में तीन साल से अधिक समय लग गया और अदलतों में इससे भी कहीं बहुत अधिक। टीवी और अखबारों की सुर्खियां बना रहा यह मामला। कुल मिला कर मामला इस प्रकार था कि इन्द्राणी मुखर्जी जो अतिमहत्वाकांक्षी महिला थी, उसने अपने विवाह संबंधों को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाया। इसमें उसके पहले कथित पति से जन्मीं संतानें शीना और मिखाईल उसे अपने रास्ते की बाधा महसूस हुए। इसीलिए उसने उन्हें अपने माता-पिता को गोद दे दिया। जब शीना को इस सच का पता चला तो उसने इन्द्राणी से अपना अधिकार मांगा। इन्द्राणी ने उसे इस बात के लिए दबाव दे कर मना लिया कि यदि वह और मिखाईल स्वयं को इन्द्राणी के भाई-बहन कहेंगे तो वह उनकी पढ़ाई का पूरा खर्चा देगी। मजबूरी में शीना और मिखाईल को मानना पड़ा। इन्द्राणी के पास मुंबई आने पर शीना की भेंट सौतेले पिता पीटर की पहली पत्नी के बेटे राहुल से हुई। राहुल और शीना दोनों ही एक-दूसरे के दुख को समझते थे, इसीलिए उनमें पहले मित्रता हुई फिर गहरा प्रेम हो गया। यह इंद्राणी को नागवार गुज़रा और उसने अनेक षडयंत्र किए। एक दिन अचानक शीना गायब हो गई। इंद्राणी ने कहा कि वह राहुल से ‘ब्रेकअप’ चाहती थी इसलिए अपने नए प्रेमी के साथ अमेरिका चली गई है। राहुल को यह बात हजम नहीं हुई। एक लंबे संघर्ष के बाद अचानक नाटकीय घटनाक्रम के दौरान पुलिस के सामने इन्द्रणी के ड्राईवर श्यामवर राय ने उस जघन्य अपराध का सच उगल दिया जिसमें इंद्राणी के साथ वह और इंद्राणी का दूसरा पति संजीव खन्ना (विधि का असली पिता) शामिल थे। जिसने भी इस सच को सुना वह चकित रह गया कि कोई मां अपनी सगी बेटी को गला दबा कर मार कर, फिर पेट्रोल डाल कर कैसे जला सकती है? वह भी एक पढ़ी-लिखी, हाई प्रोफाईल तबके की मां। मात्र अपनी ‘इमेज’ और महत्वाकांक्षा के लिए?    
 लेखक ने इस पूरे घटनाक्रम की न केवन बारीकी से पड़ताल की है बल्कि उन वास्तविक ईमेल्स और फोनटेप को क्रमवार दिया है जो साक्ष्य के रूप में सामने आए। इस सामग्री से यह पुस्तक एकदम प्रमाणिक हो उठी है। पुस्तक में शीना की जली अस्थियां देखने वाले सबसे पहले व्यक्ति गणेश धेने से लेकर मुंबई पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया तक की गतिविधियों का उल्लेख है। दरअसल, जब घटना घटी उन दिनों लेखक जी न्यूज के रेसीडेंट एडीटर थे। अपनी पूरी टीम के साथ इस केस को उन्होंने खंगाला था। अब उन तथ्यों को अपनी पुस्तक ‘‘एक थी शीना बोरा’’ के रूप में बड़े रोचक अंदाज़ में सामने रखा है। इस पुस्तक को पढ़ना पाठकों के लिए सचमुच दिलचस्प रहेगा। रक्तरंजित महत्वाकांक्षा की एक प्रामाणिक अपराध कथा, जिसे पढ़ कर ही पूरी तरह समझा जा सकता है। विशेष यह कि यह पुस्तक अपने प्रकाशन के साथ ही बेस्टसेलर श्रेणी में जा पहुंची है जिसका पूरा श्रेय लेखक की दुस्साहस भरी लेखनी को दिया जाना चाहिए।
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