प्रस्तुत है आज 26.09.2023 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई श्री सिद्धार्थ बाजपेयी के काव्य संग्रह "आसान सी बातें" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
कविताएं जिनमें भावनाओं का नादस्वर है
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - आसान सी बातें
कवि - सिद्धार्थ बाजपेयी
प्रकाशक - डब्ल्यू डब्ल्यू नोशन प्रेस डाॅट काम
मूल्य - 180/-
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महाकवि निराला ने एक बार कहा था कि ‘‘कविता नितान्त निजी भावनाएं होते हुए भी सार्वभौमिक होती हैं। उनमें चाहे तो ब्रह्माण्ड समा सकता है।’’ बात एकदम सही है। कविता चाहे पीड़ा से उपजे या प्रेम से, रणभूमि के तुमुल कोलाहल से उपजे अथवा चिड़ियों के कलरव से, कवि की भावना में सम्पूर्ण जगत की भावना समाई रहती है। भले ही कवि कहे कि ‘‘मैं कवि नहीं हूं’’, किन्तु उसकी कविताओं में यदि काव्यात्मक भावनाओं का नादस्वर है तो उसे निर्विवाद रूप से कवि कहा जा सकता है। सिद्धार्थ बाजपेयी एक ऐसे ही कवि हैं जो स्वयं को कवि कहने से हिचकते हैं किन्तु उनकी कविताएं उनके कवित्व को पूरी तरह मुखर करती हैं।
‘‘आसान सी बातें’’ सिद्धार्थ बाजपेयी का प्रथम काव्य संग्रह है जिसमें उनकी कुल 59 कविताएं संग्रहीत हैं। 1957 में जन्में, भौतिक शास्त्र में स्नात्कोत्तर, भारतीय स्टेट बैंक से उप महाप्रबंधक के पद से सेवा निवृत। अंग्रेजी में भी उनकी एक पुस्तक प्रकाशित है ‘‘पेपर बोट राईड’’। हिन्दी में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएं प्रकाशित होती रही हैं। अब हिन्दी में उनका यह प्रथम काव्य संग्रह है। वस्तुतः प्रथम काव्य संग्रह का अर्थ हमेशा यह नहीं होता है कि उसमें आरंभिक अथवा कुछ-कुछ कच्ची कविताएं होंगी। कई बार प्रथम काव्य संग्रह में वे कविताएं होती हैं जिन्होंने अनुभव, आकलन एवं चिंतन-मनन का एक लंबा सफर तय किया हुआ होता है। सिद्धार्थ बाजपेयी के इस प्रथम संग्रह की कविताएं भी इसी श्रेणी की कविताएं हैं। इनमें प्रकृति को आधार बना कर संवेदना के व्यापक संसार की यात्रा की गई है। संग्रह की पहली कविता की पंक्तियां देखिए जिसका शीर्षक है ‘‘बरगद देखता है’’-
बरगद देखता है एकटक
बादलों को
झूलती जटाएं हटाकर
पत्तों की हजार हजार आँखों से
पूरा आकाश देखता है
अपलक अहर्निश
पूरी पूरी पृथ्वी को
अकुला कर/अपने प्राणों में
चिड़या देखती है
घोंसले में चीखती भूख को
घास का हरा तिनका/यकायक
सुधबुध खो देखता है
पूरी देह से/हवा को
मैंने तुमको देखा/ऐसे देखा,/ऐसे देखा।
बरगद की जटाएं चेहरे पर लटकती लटों की कल्पना के साथ पत्तों को बरगद की आंखें मान कर कवि ने भावनाओं का जो ताना-बाना बुना है, वह सहसा आकर्षित करता है तथा एक दृश्य रच देता है पढ़ने वाले की आंखों के सामने। इसी तरह एक कविता है ‘‘शब्दार्थ’’। यह कविता प्रेम का सात्विक एवं आत्मिक स्वरूप प्रस्तृत करती है। इसमें भी आधार है प्रकृति जिसके द्वारा कवि ने प्रेम के स्वरूप को व्याख्यायित किया है।-
प्रेम साफ पानी का झरना है
हरे जंगल की ऊँची एकांत पहाड़ी पर
गिरता हुआ/पत्थरों पर बह कर
बदलता हुआ नए पत्तों और सफेद फूलों में
प्रेम एक उदास रेल लाइन है
जो गुजरती है दूर तक
दोपहर की सांय सांय में
सुरंगों और जंगलों को पार कर/देर रात
नालों और पुलों पर चलती है
प्रेम तेज बारिश से धुंधली हुई शाम में
आल्हा का बिखरता आलाप है
जो कोष्टापारा के थके जुलाहे के
गले से निकल कर /तिर जाता है हवा में
सुनसान आकाश की चांदनी में
झुन्ड से बिछुडे
अकेले पाखी की निशब्द यात्रा,
दिसंबर की सर्द रात खाली से बस स्टैंड पर
ठिठुरते यात्री की हठी प्रतीक्षा,
और बार बार दिखना बंद आँखों को भी
एक खिला खिला अमलतास
अरे, वह भी प्रेम है!
सिद्धार्थ बाजपेयी स्वयं को कवि बनने की दौड़ में नहीं पाते हैं, यही कारण है कि उनकी कविताएं हड़बड़ी में नहीं वरन, तसल्ली से लिखी गई कविताएं हैं जिनमें उनका कहन पूरी तरह स्पष्ट है। सिद्धार्थ बाजपेयी की कविताओं में कथ्य की विविधता है। वे निज के साथ सर्व की बात कहते हैं। वे सांसारिकता के साथ अलौकिक ईश्वरीय बात करते हैं जिससे उनका ‘ईश्वर’ प्रकृति के कण-कण में रूपायित दिखाई देता है। कविता देखिए ‘‘ईश्वर की हंसी’’, कुछ पंक्तियां-
एक छोटी हरी पत्ती में
छुपा होता है आदिम जंगल का अट्टहास
नदी की बूंदों में चमकता है
हिमालय से बहते
पुराने ग्लेशियर का बर्फीला स्पर्श
सड़क पर पड़े पत्थरों में कैद है
पिघलती विशाल चट्टानों का
सदियों पुराना ताप
अनंत आकाश हिलोरें लेता है
तुम्हारी आँख की पुतली में
घास के फूलों में झलक आती है
यकायक ईश्वर की हंसी!
‘‘आसान सी बात’’ कविता संग्रह की कविताओं में एक ऐसा ताज़ापन है जो मन को शीतलता प्रदान करता है। संग्रह में प्रकृति और नैसर्गिक वातावरण को साधारण से शब्दों के माध्यम से संप्रेषित करते हुए भी ऐंद्रजालिक अहसास पिरो दिए गए हैं। साथ ही, रिश्तों के महत्व को दर्शाती हुई कई कविताएं हैं, जो चेतना को आंदोलित करती हैं। फिर भी इन कविताओं में कोई नारेबाजी नहीं, वरन विनम्र आग्रह है अपनी भावनाओं एवं संवेदनाओं को टटोलने का। उदाहरण के लिए ‘‘मेरे देखने से’’ शीर्षक कविता देखिए-
मैंने देखा
तो नीला हो गया आकाश,
झूमने लगे पीपल के चमकते हरे पत्ते
मैंने देखा
तो सफेद बर्फ से ढंका भव्य पहाड़
एकदम से उग आया/क्षितिज पर
मैंने देखा/तो चमकने लगी/तुम्हारी हंसी
मैंने देखा/तो उसी क्षण
दुनिया सुंदर हुई
मैंने देखा/तो उसी क्षण
मैं सुंदर हुआ !
दूसरे को देख कर स्वयं के सुन्दर हो जाने का अहसास कवि ने जिस सुन्दरता से रचा है वह कवि की काव्य-चेतना के प्रति आश्वस्त करता है। किन्तु जैसाकि मैंने पहले ही लिखा है कि सिद्धार्थ बाजपेयी की कविताओं में कहन की विविधता है। वे वर्तमान सांसारिक स्थितियों से भलीभांति परिचित हैं और इसीलिए उस पिता की चिन्ता को रेखांकित करते हैं जिसका बेटा अभी अबोध है, नन्हा है तथा मात्र रोना और हंसना जानता है। ऐसा अबोधपुत्र क्या इस निष्ठुर, छल-कपट से भरे संसार में सुरक्षित रह सकेगा? एक पिता की चिन्ता है कविता ‘‘बेटे के लिए’’ में। एक अंश देखिए -
बहुत डर लगता है मुझे बेटे के लिए
छोटा है/अभी देख नहीं पाता दुनिया
बावजूद खुली आँखों के।
समझता नहीं है फर्क
आग और पानी में
दोस्त और दुश्मन में
सुन कर भी नहीं जान पाता
मीठे शब्दों का जहर।
सिद्धार्थ बाजपेयी ने अपनी कविताओं को सरल, सहज शब्दों में बांधा है। कविता संग्रह ‘‘आसान सी बातें’’ में शाब्दिक सुगमता भले ही हो किन्तु भावार्थ गहन गूढ़ अर्थ समाए हुए है। इस प्रथम संग्रह की कविताओं की परिपक्वता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कवि को अपना सृजन सतत जारी रखना चाहिए।
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