Tuesday, September 5, 2023

पुस्तक समीक्षा | एक काव्यात्मक धरोहर कृति ‘‘प्रभा’’ | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 05.09.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कवि स्व. केशव रावत के काव्य संग्रह "प्रभा" की समीक्षा।
----------------------------------
पुस्तक समीक्षा
एक काव्यात्मक धरोहर कृति ‘‘प्रभा’’
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
-------------------
काव्य संग्रह - प्रभा
कवि       - केशव रावत
प्रकाशक    - जन आशीर्वाद, प्रकाशन बीना द्वारा शशिनंदन रावत, मो. 9425627364
मूल्य       - 100/-
-------------------

‘‘प्रभा’’ एक ऐसा काव्य संग्रह है जिसे धरोहर कृति की संज्ञा दी जा सकती है। इस काव्य संग्रह के रचयिता केशव रावत का निधन हो चुका है। उनके पुत्र राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शशिनंदन रावत ने अपने पिता की कविताओं को संकलित कर संग्रह का रूप दिया तथा प्रकाशित कराया। इस संबंध में शशिनंदन रावत ने लिखा है कि -‘‘ जब कभी दीपावली की साफ-सफाई में पिताजी की अलमारी को खोलता कुछ पन्नों, पत्रिकाओं एवं अखबारों की कतरन को बड़ी ही सलीके से सहेजा हुआ पाता और हर बार उलट-पलट कर रख देता। इस बार अचानक ही उनको पढ़ने का मन हुआ। विरासत में मिला कवि मन कविताओं, गजलों लेखों को पढ़कर गदगद हो गया एवं पिता के व्यक्तित्व को समझ पाया। साथ ही साथ उनके त्याग का अहसास हुआ। अचानक ही तब मन में इन बिखरे पन्नों को एक सूत्र में बाँधने का ख्याल आया। विचार को परिणाम तक पहुँचाने तक का सफर बड़ा ही उथल-पुथल का रहा फिर अचानक ही मन में ख्याल आया कि पिता के साथ दादी माँ का त्याग न होता तो आज केशव रावत, केशव रावत न होकर ‘‘हल्के’’ तक ही सीमित रह जाते। तो क्यों ना पुस्तक का नाम ‘‘प्रभा’’ रखा जाय और जैसे ही पुस्तक का नाम ‘‘प्रभा’’ तय किया पता ही नहीं चला पुस्तक कैसे हाथ में आ गई।’’
वस्तुतः ‘‘प्रभा’’ काव्य संग्रह एक पुत्र की अपने पिता के साहित्य सृजन के प्रति सकारात्मक सोच का सुपरिणाम है। आज जब बाजारवाद साहित्य को हाशिए पर धकेलते जा रहा है, तब ऐसे दुरूह समय में शशिनंदन रावत द्वारा अपने पिता की कविताओं को प्रकाशित कराना, साहित्य के अस्तित्व पर छाए संकट को तनिक धुंधला कर देता है। इससे यह भी सिद्ध हो जाता है कि जहां यांत्रिकता भरे जीवन से रसात्मकता एवं काव्यात्मकता कम  हुई है वहीं उसे सहेजने वाले हाथ अभी शेष हैं।
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश के साहित्यकार हरिविष्णु अवस्थी ने संग्रह का प्राक्कथन लिखते हुए कवि और उसके सृजन पर अपने विचार व्यक्त किए हैं‘- ‘‘असाधारण व्यक्तित्व के धनी केशव रावत कवि, लेखक साहित्यकार, इतिहासकार तो है ही साथ ही साथ एक पारसमणि सम शिक्षक भी हैं। अपने हर किरदार को इतना बखूबी निभाया है आज निर्विवाद रूप हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप बनाये हुए हैं।’’ वे आगे लिखते हैं कि ‘‘प्रभा’ के काव्यों की एक-एक पंक्ति सामाजिक परिदृश्य पर अपने आप में एक उपन्यास है। आजादी क्या मिली की ‘हम आजाद हो गये रहे कहीं के नहीं ऊँट के पाद हो गये’ व्यंग्य समाज को कर्तव्यों का अहसास दिलाती है, वही गंगा में गधे शौक से नहला रहे हैं लोग समाज को अपने दायित्वों का अहसास कराती है, काव्यों की एक-एक पंक्ति एक प्रेरणा पुंज है।’’
शिवपुरी मध्यप्रदेश के डॉ. परशुराम शुक्ल ‘विरही’ संग्रह ‘‘प्रभा’’ की कविताएं पढ़ कर स्वयं को भावविभोर पाते हैं। उन्होंने संग्रह की भूमिका के रूप में लिखा है कि -‘‘ कविवर केशव रावत की काव्य-कृति ‘प्रभा’ देख पढ़कर मन अभिभूत हो गया। ‘प्रभा’ वस्तुतः मातृ वंदना है। प्रत्येक सुपुत्र का पावन कर्तव्य होता है, उसे कविश्री केशव रावत ने बहुत भावुकतापूर्ण पूर्णता प्रदान की है। इस काव्य कृति के प्रति मैं नतमस्तक हूं।’’
काव्य संग्रह ‘‘प्रभा’’ में कवि केशव रावत की विविध रसों से युक्त कविताएं हैं। कहीं वे लोकमानस की बात करते हैं तो कहीं लोक विडम्बना को रेखांकित करते हैं। कहीं उनकी कविता उलाहना देती है तो कहीं भक्तिमार्ग पर चलती हुई दिखाई देती है क्योंकि कवि केशव रावत अपनी कविताओं में लोकहित के बारे में चिन्तन करते दृष्टिगोचर होते हैं। उदाहरण के लिए ‘‘जागरण गीत’’ को देखिए जिसमें कवि ने युवाओं से जागरण का आह्वान किया है-
नया हुआ अरुणोदय साथ नई किरणें आई
उठो सपूतों हमें नया भारत रचना है ।
लूट पाट कर धनी नहीं कोई हो पाया,
मारपीट कर सबल नहीं कोई हो पाया।
झूठ बोलकर किसने पाया जग का जौहर,
द्वेष भाव से नेह नहीं कोई ले पाया।।
व्यथा एक सहला न सके तुम, पीड़ाऐं भर आयीं,
काम बहुत है तुम्हें प्यार का जग गढ़ना है
नया हुआ अरुणोदय साथ नई किरणें आई।
उठो सपूतों हमें नया भारत रचना है
ठहर गया जो ध्येय नहीं अपना पायेगा,
जो रोयेगा राग नहीं मन का गायेगा।
आँख मूंदकर होंगे दर्शन नहीं सत्य के,
कर्महीन जो होगा वह अधिकार नहीं पायेगाकृ
    03 अगस्त 1942 को जन्में केशव रावत ने परतंत्रता की जंजीरों की पीड़ा महसूस की थी। इसीलिए स्वतंत्र भारत में लोगों के द्वारा अपने कर्तव्य की उपेक्षा किया जाना कवि के लिए असहनीय रहा। ‘‘बदनाम’’ शीर्षक ग़ज़ल में उनकी यह पीड़ा स्पष्ट दिखाई देती है-
सूरज गिरवी धरे रोशनी, बादल पर इल्जाम ।
इसीलिए आचार संहिता, होती है बदनाम।।
आँखों पर जित घात लगाए बैठा अंधियारा।
छल करता है जहां रोशनी, हो जाती गुमनाम।।
अब नहीं विश्वास होता, है किसी की बात पर।
वायदे सब बदचलन होकर हुए बदनाम.।।
वक्त आने पर नहीं अब, दोस्त भी हैं चूकते।
रिश्ते टूटे खास खून के, हो गये सारे आम।।
बंद नाके राह पथ, पगडंडियों के हर तरफ।
अब कहां भेजे संदेशा, प्रियतमा के नाम।।
मुँह छिपाकर हम हथेली से किए हैं बंद आंखें।
समय हमें ही काट रहा है, बैठे हम बेकाम।।
  केशव रावत की कविताएं छीजती मनुष्यता और दरकती संवेदनशीलता की गहरे तक जा कर पड़ताल करती है। कवि की चिंता इस बात की भी है कि समाज से संवेदनाएं गायब होती जा रही हैं। फिर भी कहीं कुछ संवेदनाएं शेष हैं जिनसे सम्रगता की आशा की जा सकती है। इसी संदर्भ में ‘‘हम सांप’’ कविता में लक्षणा, अमिधा और व्यंजना का सुंदर संतुलित समावेश करते हुए कवि ने कटाक्ष किया है। एक अंश देखिए-
हम सांप है
भले ही आदमी की भांति
उनके दर्द नहीं बांटते ।
फिर भी इतना तो तय हे
कि हम उन्हें जानबूझकर नहीं काटते।
हम चाहते हैं कि
आदमियत की तरह हमारे जजबात भी
उनके गम में शरीक हों
क्योंकि हम यह भी नहीं चाहते कि
व्यर्थ किसी को कष्ट या तकलीफ हो।।
कष्टों को भला कब किसने अपने हिस्से में चाहा।
किसी को काटने से सुख नहीं होता है कष्ट ही अनचाह।।
    संग्रह में हृदय की कोमल भावनाओं एवं संवेगों की कविताएं भी हैं जो पाठक के मन करे छू लेने की क्षमता रखती हैं। ऐसी कविताओं में कवि की भावनाओं का एक अलग रंग दिखाई देता है-
अतीत की सुधियों में मन डूबा ऐसे,
सागर में डूबी सीपी जैसे।
सुर्ख रंग ने बढ़ा दी शोर भी ऐसें,
सोने में मिला मुहागा जैसे।
प्रात ही कुहरे ने आन घेरा है,
मन को घेरे मूढ़ता ऐसे।
सब का सब हो गया विषाक्त और स्याह,
अंगारों पर राख जमी हो जैसे।
   कवि केशव रावत की कविताओं को पढ़ना, समय की नब्ज को जांचने-परखने के समान है। ‘‘प्रभा’ काव्य संग्रह विविध विधाओें की काव्य रचनाएं हैं। ये कविताएं अतीत और वर्तमान का तुलनात्मक विवेचन करती ह और इस तरह समय से संवाद करती हैं। इस संग्रह को पढ़ना इस दृष्टि से भी रोचक है कि इसमें कोमल भावनाओं से ले कर कठोर यथार्थ तक बड़ी सहजता से पिरो दिया गया है।                
           -------------------------
#पुस्तकसमीक्षा #डॉसुश्रीशरदसिंह #BookReview #BookReviewer #आचरण #DrMissSharadSingh 

No comments:

Post a Comment