Thursday, September 28, 2023

बतकाव बिन्ना की | सेमेस्टर घांई खुलत जा रए टिकटन के रिजल्ट | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"सेमेस्टर घांई खुलत जा रए टिकटन के रिजल्ट" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की      
सेमेस्टर घांई खुलत जा रए टिकटन के रिजल्ट
 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘काय बिन्ना तुमें पता परी के अपने इते कोन खों टिकट मिल रई?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘अबे तो नईं!’’
‘‘देखो ई बेर कोन खों मिलहे।’’ भैयाजी सोचत भए बोले।
‘‘कोनऊं खों मिले, बाकी काम करबे वारो होनो चाइए।’’ मैंने कई।
‘‘तुमें कोन सो काम कराने?’’ भैयाजी ने अचरज से पूछी।
‘‘अरे, मोय अपनो काम नई कराने, मैं सो क्षेत्र के विकास की बात कर रई।’’ मैंने कई।
‘‘इत्तो तो विकास हो गओ, औ कित्तो विकास चाउने?’’ भैयाजी ने हंस के पूछी।
‘‘कित्तो विकास हो गओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बे उते रोड के किनारे, औ चौराहा-चौराहा लगे होर्डिंग पे पढ़ लेओ। इत्ती तो पढ़ी-लिखी हो!’’ भैयाजी फेर के हंसत भए बोले।
‘‘होंर्डिंग्स की ने कओ आप, ऊपे सो सब हरो-भरो दिखाहे। बाकी भैयाजी, आपको ऐसो नई लग रओ का, के जे कोनऊ काॅलेज के सेमेस्टर को रिजल्ट खुल रओ होय?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘का मतलब? चुनाव की टिकट से सेमेस्टर को का लेबो-देबो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘लेबो-देबो तो कछू नईं, मनो मोय तो ऐसई लग रओ। अबे पैले सेमेस्टर को रिजल्ट खुलो सो ऊमें पता परी के कित्ते पास भए, मने कोन-कोन खों टिकट मिली। ऊमें कछू ऐसे सोई आएं जोन ने मईना-दो मईना पैलऊं अपनो सब्जेक्ट बदलो रओ औ बे डबल प्लस पा गए। औ जोन पांच बरस से एकई सब्जेक्ट को घिस्सा मार रए हते उने ठेंगा मिलो। कछू कओ आप, पर सब्जेक्ट बदलबे वारों की चांदी रैत आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हमें तुमाई बतकाव तनकऊं पल्ले नई पर रई। तनक खुल के बताओ।’’ भैयाजी खीझत भए बोले।
जो भैयाजी ने कई के ‘‘तनक खुल के बताओ’’, सो मोय ऊपे एक सांची किसां याद आ गई। तनक ऐसई-वेसई आए। जोन खों हसबे में शरम लगे सो मों दबा के हंस सकत आए। मनो आए जे बिलकुल सांची घटना। भओ का के एक बेरा मोरी एक परिचित लेखिका से फोन पे बतकाव हो रई हती। बतकाव करत-करत बे कैन लगीं के ‘‘हमने तो फलां प्रकाशक से कई के तुम सबई की किताबें छापत हो औ हमाई छापबे में टरकान लगत हो, जे न चलहे। सो ऊ प्रकाशक ने मोसे कई के जिन ओरन की तुम कै रईं बे ओरें खोल के लिखत आएं, तुम सोई खोल के लिखो, सो हम छाप देबी।’’
जो मैंने ऊ लेखिका के मों से जे बात सुनी सो मोय हंसत-हंसत पेट पिरान लगो। मैं समझ गई के बा प्रकाशक इत्तो पगला नोईं के ‘‘खोल के लिखो’’ कहे, ऊने कई हुइए के ‘‘खुल के लिखो’’ औ जे महरानी ने सुन लई खोल के लिखों। आज लौं जो जे बात याद आ जात आए सो हंसी को फंदा लगन लगत आए।
‘‘का सोचन लगीं? का तुमें खुदई नईं पतो के चुनाव की टिकटन औ सेमेस्टर को का मेल आए? का ऊंसई बर्राया रईं हतीं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘मोय काय नई पतो? जे मोरई तो खयाल आएं। अब आपई देखो भैयाजी, चाए स्कूलें होंय या काॅलेजें होंय, आखिरी परीक्षा सो बाद में आखिरी में होत आए। पर आजकाल जे जो सेमेस्टर को सिस्टम चल गओ कहानो, ऊमें कऊं चार सेमेस्टर होत आएं, तो कऊं छै, तो कऊं आठ। मनो, आखिरी परीक्षा में बैठने जोग तभई हो सकत आएं जब सेमेस्टर पास कर लओ होय। जेई टाईप से आप देख लेओ के टिकटन की लिस्ट एक बेर में नईं निकर रई। पैले सेमेस्टर में चार खों मिली, दूसरे सेमेस्टर में फेर चार खों, तीसरे में दो खों। मने, जे पैली परीक्षा को रिजल्ट आए। ईमें जोन-जोन पास हो जेहें उने फाईनल परीक्षा के लाने कमर कसने पड़हें।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘हऔ, सो जे कै रईं तुम! बाकी जे तो बताओ के जोन की टिकट कट गई, उनकी तो फाईनल परीक्षा हुइए नईं, सो बे ओरें का करहें?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘उनें सो औ ज्यादा कम्मर कसने पड़हे। मनों जो भक्त टाईप के हुइएं बे सेमेस्टर में पास होने वारे के लाने दुआरे-दुआरे जाहें, ऊ के लाने वोट मांगहें। मनों बे जोन खों लगहे के उनके साथ बुरौ करो गओ, बे तनक दूसरो रस्ता पकरहें। मनो उनमें सोई दो तरां के लोग हुइएं। एक तरां के बे जो अपनों सब्जेक्ट बदल के खुल्लमखुल्ला दूसरे सब्जेक्ट की क्लास में जा के बैठने लगहें औ दूसरे बे ओरें जो दिखहें सो संगे औ पूरे टेम रैहें बी संगे, बाकी भीतरे-भीतरे कटाई करत चलहें। उनकी पूरी कोसिस रैहे के जोन जो सेमेस्टर में पास तो हो गओ, मनो फाईनल में अपनी जमानत लो ने बचा सके।’’ मैंने भैयाजी खों परसादी घांई तनक ज्ञान बांटो।
‘‘हऔ! कै तो तुम ठीक रईं। मनो हमें तो जे देख के लगत आए के दल-बदल कानून खों कछू मतलब आए के नईं? जे जो तुम कै रईं सब्जेक्ट बदलवे की, हम समझ गए के तुम दल बदलबे वारन की कै रईं। मनो, देखों बिन्ना गजबई को काम ठैरो! जोन चार साल एक पार्टी खों गरियात रैत बोई चुनाव के कछू पैले ऊ पार्टी में पौंच जात आए औ ऊको टिकट-मिकट दे के परघाओ जात आए। औ जोन जिनगी से अपनी पार्टी की सेवा करत रैत आए ऊको ऊ पाउनें के नेचे सेवक घांई ठाड़ो कर दओ जात आए। काय से के जो तो अपनई घरे को ठैरो, बाकी पाउना सो उनकी विरोधी पार्टी मनें अपनी पार्टी खों गच्चा दे के आ रओ, सो बा परम पूज हो जात आए। हमें सो जे सब नईं पोसात।’’ भैयाजी मों बनात भए बोले।
‘‘अब आप खों पोसाए चाए नईं, मनो बो कहनात सो आपने सुनई हुइए के कानून तो तोड़बे के लाने होत आएं। पैले दलबदल विरोधी कानून बनाओ औ फेर ऊको जब जी करो मजे-मजे से कुचरत रए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ! ईको बी कोनऊं नियम होने चाइए।’’ भैजी बोले।
‘‘कैसो नियम?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘नियम जे के जो दल बदलने होय सो चुनाव के कम से कम चार साल पैले बदलो जाय, चार मईनां या चार दिनां पैले नईं। के उते टिकट की लाग ने लगी सो इते भाग आए और इते टिकट मिलती ने दिखी सो उते भाग गए। अरे, जोन पार्टी में जा रए, कम से कम ऊकी पैले चार बरस सेवा सो कर लेओ। बोलो, हम ठीक कै रए के नईं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, आप सांची कै रए, मनो आपकी को सुन रओ? मैंने कई।
‘‘नई सुनने सो नई सुने। हमने तो कै लई, सो जी में ठंडक पर गई।’’ भैयाजी अपनी छाती पे हाथ रखत भए बोले।
‘‘हऔ, आप सो अपने जी में ठंडक पाड़े राखों औ सेमेस्टर के रिजल्ट को मजा लेत रओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘काय बिन्ना, तुम काय नईं ठाड़ी हो जातीं चुनाव में?’’ भैयाजी बोले। मोय समझ में आ गई के भैयाजी अब चुटकी लेबे के मूड में आ गए।
‘‘हऔ! मोए कछू नईं, मैं सो ठाड़ी होबे खों तैयार ठैरी।’’ मैंने कई।
‘‘कोन सी पार्टी से?’’ भैयाजी ने अचरज से पूछी। उने मोसे ऐसे उत्तर की आसा ने हती।
‘‘कोनऊं पार्टी से। अबई सो अपन ओरें जेई पे बतकाव कर रए हते के टिकट के लाने पार्टी नोईं, खाली टिकट देखी जात आए। जोन पार्टी टिकट दे, सो बोई से ठाड़ी हो जेहों।’’ मैंने कई।
‘‘औ जो कोनऊं ने टिकट ने दई, सो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘सो, का? निर्दलीय चुनाव लड़बी। ऊंसई टिकट के लाने कुल्ल देर हो चुकी आए। अब सो सारी टिकटें पक्की हो चुकीं, बस, उनकी तनक-तनक कर के घोषणा करी जा रई, के कऊं एकदम से करे में कोनऊं को हार्टअटैक ने आ जाए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो तुम ठाड़ी हो रईं निर्दलीय उम्मीदवारी में?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, हंडरेड परसेंट! बाकी आप मोरी जमानत को पइसा भर देओ। बो का आए के मोरे पास सो जमानत के पइसा नइयां। औ काय से, के मसोय पतो आए के मोरी जमानत सो जब्त हुइए ई। सो जोन खों लगे के मोय निर्दलीय ठाड़ो हो ने चाइए, बो मोरी जमानत के पइसा भर देवे औ प्रचार को खर्चा उठा लेवे। फेर मोय का, मैं मजे से ठाड़ी हो जेहों। ई बहाने सगरे शहर में मोरो कटआउट सोई लग जेहे।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हम समझ गए, तुम फंकाई दे रईं!’’ भैयाजी बोले।
‘‘नईं मैं सांची कै रई। ने मानो सो कर के देख लेओ। आजई मोरे एकाउन्ट में जमानत को पइसा औ प्रचार को खर्चा का पइसा भेज देओ, ई के बाद आप मोय चुनाव में ठाड़ी पाहो।’’ मैंने मुस्का के भैयाजी से कई।
‘‘रैन देओ बिन्ना! तुम तो जे चुनावी सेमेस्टर के रिजल्ट देखत रओ, बोई भलो।’’ भैयाजी ने हार मान लई।  
सो, आप ओरें सोई देखत रओ के कोन खों टिकट मिल रई औ कोन की कट रई। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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