Friday, September 15, 2023

शून्यकाल | इंजीनियर्स स्वयं तय करें कि उन्हें पुरोचन बनना है या विश्वकर्मा ? | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

 "दैनिक नयादौर" में मेरा कॉलम ...
शून्यकाल
इंजीनियर्स स्वयं तय करें कि उन्हें पुरोचन बनना है या विश्वकर्मा ?
   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                       
       प्राचीन भारत की स्थापत्य कला बेजोड़ थी। महल, किले, नगर आदि की योजना एवं निर्माण की श्रेष्ठता के अवशेष आज भी पुरावशेषों के रूप में मौजूद हैं। कृष्ण की द्वारका नगरी के अवशेष आज भी समुद्र तल में साक्ष्य देते हैं द्वापर की स्थापत्य कला की। जब बात आती है पौराणिक आर्किटेक्ट की तो सबसे पहला नाम आता है देवता विश्वकर्मा का। यह माना जाता है कि विश्वकर्मा ने अनेक पौराणिक राजमहलों एवं भवनों का निर्माण किया। प्राचीनकाल में ही एक और आर्किटेक्ट हो चुका है जिसका नाम था पुरोचन। जिसका निर्माणकार्य अद्वितीय था किन्तु वह स्वयं शापित था। कहा जाता है कि निर्माण यदि सुख के लिए हो तो निर्माता को यश और कीर्ति देता है, किन्तु यदि निर्माण विध्वंस के लिए हो तो निर्माता को अपयश और अकाल मृत्यु मिलती है। पुरोचन की कथा इसकी साक्षी है।   
महाभारत आदिपर्व (140, 148) में लाक्षागृह की घटना का विवरण मिलता है। लाक्षागृह अर्थात लाख (चपड़ा) से बना हुआ महल। इस महल को पुरोचन नामक वास्तुकार (आर्किटेक्ट) ने बनाया था। पुरोचन के बारे में एक किंवदंती के अनुसार पुरोचन अपने पूर्व जन्म में वह एक राजा था जिसे शिकार करने का बहुत शौक था। एक बार वह शिकार करने के लिए वन में गया। वहां उसने एक हिरण को मारना चाहा। हिरण बच कर भाग निकला। राजा ने उसका पीछा किया। हिरण एक ऐसे स्थान में जा छिपा जहां बया पक्षियों के अनेक घोंसले थे। राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि वे उन घोसलों को जला दें। सिपाहियों ने समझाया कि उन घोंसलों में पक्षियों के बच्चे होंगे अतः उन्हें न मारे। किन्तु राजा को तो शिकार का जुनून सवार था। उसने स्वयं मशाल जलाई और पक्षियों के घोंसलों में आग लगा दी। तब बया पक्षियों की उस बस्ती के मुखिया बया ने राजा को शाप दिया कि -‘‘जिस तरह तुमने मेहनत से बनाए गए हमारे घरों को जलाया है और हमारे परिवार को जलाया है उसी तरह अगले जन्म में तुम भी अपने ही बनाए घर में जल कर मरोगे।’’
राजा अपने अगले जन्म को ले कर चिन्तित रहने लगा और जल्दी ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। अगले जन्म में वह एक राजवास्तुकार के घर उसके पुत्र के रूप में पैदा हुआ। उसके पिता ने उसे वास्तुकला की श्रेष्ठ शिक्षाएं दीं। बड़े होने पर उसकी वस्तुकला की निपुणता की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। हस्तिनापुर में एक निर्माणकार्य के दौरान उसकी भेंट दुर्योधन से हुई। दुर्योधन उसके कलाकौशल से प्रभावित हुआ। दोनों में मित्रता हो गई। 
समय के साथ कौरवों और पांडवों के बीच खाई बढ़ती गई। एक बार दुर्योधन ने अपने कपट भावों को छिपाते हुए पाण्डवों को वनप्रांतर में घूमने, मेला आदि का आनन्द लेने के लिए प्रेरित किया। पाण्डव माता कुंती सहित भ्रमण पर जाने के लिए तैयार हो गए। तब मामा शकुनी के कहने पर दुर्योधन ने वास्तुकार पुरोचन को अपने पास बुलाया। उसने पुरोचन से कहा कि वह ऐसा महल बनाए जो देखने में तो मजबूत दिखाई दे किन्तु आग लगा जाने पर पल भर में जल कर खाक हो जाए। जो भी वहां ठहरे, वह बच कर निकल न सकें। पुरोचन ऐसा महल बनाने को राजी हो गया। पुरोचन ने लाख का अत्यंत सुंदर बनाया जिसमें चर्बी, सूखी घास आदि का प्रयोग किया गया था। दुर्योधन की योजना यह थी जब पांडव लाक्षागृह में गहरी नींद में सो जाएंगे तब उसमें आग लगा दी जाएगी। महल तुरंत ही जलकर राख हो जाए और पाण्डव मारे जाएंगे।
विदुर को इस षडयंत्र की भनक लग गई और उन्होंने पांडवों को सावधान कर दिया। फिर विदुर के भेजे हुए एक विश्वस्त कारीगर ने गुप्त रूप से लाक्षागृह में एक सुरंग बना दी। रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके कमरे में आग लगायी। धीरे-धीरे आग चारों ओर लग गयी। भीम माता और भाइयों के साथ सुरंग से बाहर निकल गया। लाक्षागृह में पुरोचन जलकर मर गया। महल में एक भीलनी भी अपने पांच बच्चों सहित मारी गई थी जिससे पहले दुर्योधन को भ्रम हुआ कि वह सफल हो गया है किन्तु जल्दी ही उसे पता चल गया कि पाण्डव जीवित हैं। दुर्योधन की योजना असफल हो गई थी और पुरोचन भी मारा गया था।
जब महल में आग लगाई गई थी उस समय शापित पुरोचन भी महल में था। उसे अपने ही बनाए गए महल के उस गुप्त द्वार का पता नहीं था जिससे पाण्डव निकल भागे थे। पुरोचन महल से बाहर नहीं निकल सका, और वह अपने ही बनाए महल के साथ जल कर मर गया। पूर्व जन्म में बया पक्षी द्वारा उसे जो शाप दिया गया था, वह सही सिद्ध हुआ। इस तरह एक उत्कृष्ट किन्तु शापित वास्तुकार का अंत हुआ क्योंकि उसने विनाश के लिए निर्माण किया था, जो उसके स्वयं के विनाश का कारण बना। 
भारत ही नहीं, वरन दुनियों में जिसने भी विध्वंसक वस्तुओं का निर्माण किया, वह एक शापित की तरह मरा। जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर का जन्म 22 अप्रैल, 1904 को न्यूयॉर्क शहर में जर्मनी से आए एक धनी कपड़ा व्यापारी जूलियस सेलिगमैन ओपेनहाइमर और चित्रकार एला फ्रीडमैन ओपेनहाइमर के घर हुआ था। बचपन से ही रॉबर्ट ओपेनहाइमर को साहित्य, गणित और विज्ञान के साथ-साथ संगीत और चित्रकला में गहरी दिलचस्पी थी। ओपेनहाइमर अपने विषय के पारंगत थे। इसीलिए जब उनकी थीसिस पर उनका साक्षात्कार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भौतिक विज्ञानी जेम्स फ्रैंक ले रहे थे तो ओपेनहाइमर के साथ सवाल-जवाब का सिलसिला खत्म होने के बाद प्रोफेसर फ्रैंक ने एग्जाम रूम से बाहर निकलते हुए किसी से कहा था कि, ‘‘शुक्र है सब अच्छे से निपट गया नहीं तो वह मुझसे ही सवाल करने वाला था!’’
1927-28 में ओपेनहाइमर में पहले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और उसके बाद कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (काल्टेक) में नेशनल रिसर्च काउंसिल के फेलो के रूप शोध कार्य किया। 1926 और 1929 के दरम्यान उनके द्वारा क्वांटम यान्त्रिकी पर प्रकाशित सोलह शोध पत्रों ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक युवा भौतिक विज्ञानी के रूप में स्थापित कर दिया। आगे चल कर ओपेनहाइमर ने परमाणु बम का आविष्कार किया। दो परमाणुबम जापान के हीरोशिमा और नागासाकी पर गिराया गया। परीक्षण के बाद ओपेनहाइमर वैज्ञानिकों और सरकारी अधिकारियों की 10 सदस्यों वाली उस कमेटी के सदस्य भी चुने गए, जिसने द्वितीय विश्वयुद्ध को जल्दी खत्म करने के लिए जापान पर परमाणु बम गिराने का सुझाव अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन को दी थी. इन दोनों परमाणु हमलों में 2 लाख से अधिक लोग मारे गए, जिनमें से ज्यादतर आम जापानी नागरिक थे. लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद ऐसा लगने लगा जैसे नाभिकीय हथियारों को लेकर ओपेनहाइमर की राय ही पूरी तरह से बदल गई! उन्हें लगने लगा कि उनकी ही वजह से लाखों बेगुनाह लोगों की जानें गईं थीं. वे गहरी आत्मग्लानि और अपराधबोध से भर उठे. इसने उनमें डिमेंशिया प्राइकॉक्स के लक्षणों को दोबारा उभारने का काम किया, जिसकी वजह से उन्हें अपनी बाकी की जिंदगी गहरी मानसिक यंत्रणा झेलते हुए बितानी पड़ी. अक्टूबर 1945 में जब ओपेनहाइमर की मुलाकात राष्ट्रपति ट्रूमैन से हुई, तब उन्होंने ट्रूमैन से कहा कि, ‘‘मुझे लगता है मेरे हाथ लाखों बेगुनाहों के खून से सने हुए हैं’’. 
ओपेनहाइमर का जीवन आत्मग्लानि और मन के भीतर की उथल-पुथल से पीड़ति एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो न सिर्फ एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक था, किन्तु जीवन को नष्ट करेन वाले परमाणु बम बना कर कष्टकारक मृत्यु का भागीदार बना। इस तरह देखा जाए तो पुरोचन और ओपेनहाइमर में समय और भौगोलिक  फासला होते हुए भी एक ही तरह के शाप को भुगता। इसीलिए कहा जाता है कि जो विश्वकर्मा की तरह निर्माण करता है वह देवता के समान पूजनीय माना जाता है, वहीं जो अपने निर्माण कौशल का विनाश के लिए प्रयोग करता है, उसे मानसिक संत्रास और अपयश ही मिलता है। वर्तमान इंजीनियरों एवं आर्किटेक्ट्स को यह स्वयं तय करना चाहिए कि उन्हें पुरोचन या ओपेनहाइमर बनना है अथवा विश्वकर्मा की भांति मानवहित में निर्माण कर के देवता की भांति सम्मान और सुख पाना है।                                                      
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