Wednesday, January 1, 2025

चर्चा प्लस | चलिए, लें नए साल में आसान संकल्प कुछ अपने लिए, कुछ समाज के लिए | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस
चलिए, लें नए साल में आसान संकल्प कुछ अपने लिए, कुछ समाज के लिए 
     - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
     हमारी दैनिक गतिविधियों का कलैंडर जनवरी से ही आरम्भ होता है और यहीं से नए साल की शुरूआत होती है। निःसंदेह यह हिन्दू नववर्ष नहीं है किन्तु वैश्विक नववर्ष के रूप में इसे ठीक उसी तरह से सभी ने स्वीकार किया है जैसे अंग्रेजी के अंकों को। हम में से बहुत से लोग हैं जो नया वर्ष आरम्भ होते ही जनवरी से दिसम्बर तक के अपनों लक्ष्यों एवं संकल्पों का निर्धारण करते हैं। अपने संकल्पों कीे घोषणा करते हैं लेकिन साल के अंत तक उन्हें पूरा नहीं कर पाते हैं। इसलिए अच्छा यही है कि साल का आरम्भ कुछ आसान संकल्पों से करें जिन्हें हम सुगमता से पूरा कर सकते हैं।  
 
    संकल्प लेना एक जिम्मेदारी का निर्णय है। जब कोई व्यक्ति संकल्प लेता है तो वह उसके प्रति वचनबद्ध हो जाता है। हम सभी की आदत है कि हम नया साल आरम्भ होते ही अपने लिए नए-नए संकल्प तय करने लगते हैं। जैसे कोई सोचता है कि अब इस साल तो मैं अपने छूटे हुए काम पूरे कर लूंगा, कुछ नया काम कर के रहूंगा, अपना वजन कम करुंगा, अपनी सेहत पर ध्यान दूंगा आदि-आदि। एक लम्बी सूची होती है नए संकल्पों की। लेकिन यह व्यवहारिक बात है कि बहुत कम लोग अपने संकल्पों को पूरा कर पाते हैं। साल के अंत में जब वे लेखाजोखा करते हैं तसे पता चलता है कि वे एकाध संकल्प ही पूरा कर सके हैं। इसीलिए बेहतर है कि ऐसे आसान संकल्प लें जो हमारे और समाज दोनों के हित में हो। चलिए देखते हैं वे कौन से संकल्प हो सकते हैं जिनको लेना और पूरे करना हमारे लिए जरूरी है।
सबसे पहले अपनी सेहत पर ध्यान देने का संकल्प लेना जरूरी है। कहा भी जाता है कि स्वास्थ्य है तो सबकुछ है। लेकिन यथार्थ में सबसे अधिक अवहेलना हम अपनी सेहत की ही करते हैं। इस बारे में एक दिलचस्प घटना बताती हूं। हुआ यह कि मेरे एक परिचित हैं, वे पिछले साल बार-बार बीमार पड़ते रहे। जब डाॅक्टर ने उन्हें पैथालाॅजी में जांच कराने भेजा तो पता चला कि उन्हें डायबिटीज़ हो चुकी है। वे बड़े दुखी हुए। मैंने चर्चा के दौरान उनसे पूछा कि आपने पहले जांच नहीं कराई? उन्होंने कहा कि नहीं, मुझे जरूरत महसूस नहीं हुई। तब मैंने उनसे कहा कि आजकल जरूरत समझ में नहीं आती है। आवश्यक तो यही है कि साल में एक बार पूरी जांच करा लेना चाहिए। उन्होंने तपाक से कहा जबर्दस्ती क्यों जांच कराई जाए? क्या आप जानती नहीं कि जांच कराने में कितना पैसा खर्च होता है? मुझसे भी नहीं रहा गया और मैंने उन्हें टोंक दिया कि उससे तो कम ही खर्च होता है जितने में आप बड़े होटलों में महीने में दो-तीन पार्टी कर डालते हैं। मेरी सच्ची बात उन्हें बुरी लगी और वे खिसिया कर रह गए। उस समय मुझे अपनी मां की वह बात याद आई जो वे कहा करती थीं कि साफ, शुद्ध और अच्छा खाओ, भले ही इसके बदले तुम्हें दूसरी चीजों में कटौती करनी पड़े। हमारे घर हमेंशा शरबती गेंहूं ही खरीदा जाता था। एक बार गेंहूं की बोरी हमारे घर आई, उस दौरान एक परिचित घर आई हुई थीं। उन्होंने गेंहू के बारे में पूछताछ की और फिर बोलीं हम तो इतना मंहगा गेंहू नहीं खा सकते हैं। मां ने उनसे कह ही दिया कि आपकी इस सिल्क की एक  साड़ी से ज्यादा मंहगा नहीं है यह गेंहू। और इससे तो साल भर पेट भरेगा। वे परिचित इस बात पर इतनी नाराज हुईं कि उन्होंने बातचीत करना ही बंद कर दिया। ये दोनों घटनाएं बताने का आशय मात्र यही है कि इस नए साल में पहला संकल्प लीजिए कि भले ही कुछ खर्चों में कटौती करनी पड़े लेकिन अपनी और अपने परिवार की सेहत पर ध्यान देंगे। कम से कम एक बार पूरी जांच कराएंगे ताकि समय रहते स्वास्थ्य समस्या का पता चल जाए। याद रखिए कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है। 
 
बात मस्तिष्क की आई है तो दूसरा संकल्प यह लेना चाहिए कि न तो अपने को किसी से छोटा या बड़ा समझेंगे और न दूसरों को अपने से छोटा समझेंगे। दूसरों की अनावश्यक नुक़्ताचीनी भी नहीं करेंगे। क्योंकि यदि विचार अच्छे रहते हैं तो अपने भीतर से अच्छे काम करने की प्रेरणा जागती है। बुरे विचार व्यक्ति को कुंठित करते हैं। अकसर लोगों में ईर्ष्या की भावना बलवती हो जाती है कि ‘‘उसकी कमीज मेरी कमीज से अधिक सफेद क्यो?’’ फिर इसी ईर्ष्या के कारण वह दूसरे की उजली कमीज को गंदा करने के प्रयास में ही अपनी सारी ऊर्जा नष्ट करते रहते हैं। भले ही इस चक्कर में उनकी अपनी कमीज के चीथड़े उड़ने लगते हैं। इस नए साल में कम से कम यह संकल्प तो किया ही जा सकता है कि हम अपनी सारी ऊर्जा अपने को आगे बढ़ाने में लगाएंगे, दूसरों को धकेल कर पीछे करने में नहीं। यूं भी एक अच्छा मस्तिष्क परिवार में सुख शांति का संचार करता है। समाज में इतने भ्रष्टाचार के कांड जो आए दिन उजागर होते रहते हैं उनके पीछे यही ईर्ष्या की भावना मौजूद होती है। फलां के पास एक कार है तो हमारे पास दो कारें होनी चाहिए। भले ही दो कारें खरीदने के लिए भ्रष्टाचार का रास्ता अपनाना पड़े। उस मसय यह बात दिमाग में नहीं रहती है कि भ्रष्टाचार का रास्ता जेल जाने का कारण भी बन सकता है। इसलिए संयमित हो कर रहें तो चित्त भी शांत रहता है। 
तीसरा संकल्प यही होना चाहिए कि हम इस साल अपनी आंतरिक शांति को प्राप्त करेंगे। अपने जीवन को व्यवस्थित और संयमित करेंगे। इस समय सारी दुनिया जिस सबसे बड़ी मानसिक बीमारी से जूझ रही है, वह है अवसाद। आत्महत्या की दर भी अवसाद के कारण ही बढी है। इसलिए अवसाद को अपने पास फटकने ही क्यों दें? हम तो उस संस्कृति के वंशज हैं जिसमें कहा जाता है कि जो हमें नहीं मिला वह हमारा नहीं था। यदि यही सोच हम अपना लें तो अवसाद की अवस्था कभी नहीं आएगी। मेहनत करना हमारा कर्तव्य है लेकिन उसके परिणाम की मात्रा को ले कर हतोत्साहित होना गलत है। यदि एक प्रयास में सफलता नहीं मिली तो दूसरे प्रयास में सफलता मिल सकती है। यह बात विशेषकर उन लोगों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए जो जरा सी असफलता पर भारी हतोत्साहित हो जाते हैं और अवसाद में डूब कर गलत कदम उठा लेते हैं। अपने जीवन को एक-दो नहीं बल्कि कई मौके दीजिए क्योंकि मौके कई बार पाए जा सकते हैं, जीवन नहीं। तो इस साल यह संकल्प ले ही लीजिए कि चाहे कुछ भी हो हताश नहीं होंगे।
यह संकल्प लेना भी जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य परस्पर एक-दूसरे को अधिक से अधिक समय देंगे अर्थात् साथ-साथ समय बिताने का प्रयास करेंगे। आज जिस तरह से परिवार बिखर रहे हैं और पारिवारिक संबंध टूट रहे हैं वह चिंता का विषय है। परिवार न होने का दुख उनसे पूछिए जिनका परिवार नहीं होता अथवा जो अपने परिवार को खो चुके होते हैं। जिनके पास परिवार है उन्हें उसके महत्व को समझना चाहिए। हर एक रिश्ता महत्वपूर्ण होता है। और जो एकाकी है उन्हें समाज से जुड़ कर अपनी निराशा को दूर धकेल देना चाहिए। आखिर हम ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ की संस्कृति के संवाहक हैं। आज घर में यदि माता-पिता हैं, उनका विवाहित बेटा, बहू और नाती-पोते हेै तो भी वे सब एक छत के नीचे ठीक उस तरह रहते हैं जैसे किसी रेल्वे प्रतीक्षालय में एक ही रेल की प्रतीक्षा में चंद यात्री बैठे हों और वे सब अपने-अपने मोबाईल में डूबे हुए हों। यही तो हो रहा है घरों में। खाने की मेज पर भी मोबाईल, लैपटाॅप, और टीवी जैसे गैजेट्स मौजूद होते हैं। सभी आपस में बात करने के बजाए अपने-अपने गैजेट्स में खोए रहते हैं। इस स्थिति में प्रायः दादा-दादी, नाना-नानी जैसे लोग उपेक्षित हो जाते हैं जिन्हें न गैजेट्स चलाना आता है और न उनसे कोई बात करता है। ये वही निरीह प्राणी होते हैं जिन्होंने अपने बच्चों को बोलना सिखाया होता है और वही लोग अपने बच्चों के मुंह से चंद बातें सुनने को तरस जाते हैं। यानी कम से कम इस साल यह संकल्प तो लिया ही जाना चाहिए कि इस असंवेदनशीलता को दूर करेंगे और अपने परिवार, पड़ोस और समाज के लोगों से संवाद स्थापित करेंगे। 
अभी तक मैंने ऊपर जिन संकल्पों को उल्लेख किया है, वे इतने कठिन नहीं हैं जिन्हें पूरा न किया जा सके। अब कुछ और आसान संकल्प हैं जो लिए जाने चाहिए। जैसे अपने आस-पास के वातावरण को उसी तरह साफसुथरा रखेंगे जैसे अपने घर को रखते हैं। यह अच्छी सेहत के लिए भी जरूरी है। इस वर्ष कम से कम एक पेड़ लगाएंगे और उस पेड़ की देखभाल भी करेंगे। केवल पेड़ लगाने का दिखावा नहीं करेंगे। इस साल कम से कम एक असली ज़रूरतमंद की मदद करेंगे। यहां असली शब्द का प्रयोग मैं इसलिए कर रही हूं कि अकसर हम चौराहे पर भीख मांगने वाले बच्चों को पैसे दे कर सोचते हैं कि हमने उनकी मदद कर दी। पहली बात तो उनमें अधिकांश ऐसे होते हैं जो जरूरतमंद नहीं होते और अपने परिवार सहित अतिरिक्त आमदनी का जुगाड़ करने के लिए वहां भिखारी होने का नाटक करते हैं। यह कटुसत्य है। दूसरी बात है कि हम भिखारियों को भीख दे कर भिक्षा की कुप्रथा का समर्थन कर बैठते हैं। यदि सचमुच कोई जरूरतमंद है तो उन्हें उन संस्थाओं तक पहुंचने में मदद करें जो असली जरूरतमंदों की मदद करती है। उन संस्थाओं के लिए अपनी क्षमता अनुसार दान दें जो ऐसे लोगों की मदद करती है। कहने का आशय है कि एक अच्छे सामजिक परिवेश बनाने के लिए कुछ अच्छा सोचिए। दिखावा नहीं सच्ची मदद को अपनाइए। क्या यह संकल्प कठिन है? बिलकुल नहीं। 
और एक अंतिम संकल्प का महिला होने के नाते सिर्फ महिलाओं से आग्रह कर रही हूं कि एक महिला परिवार की धुरी होती है अतः अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखिए। घर की महिला का बीमार पड़ना पूरे परिवार को प्रभावित करता है। अपने खानपान के प्रति सजगता का संकल्प लीजिए। परिवार में सबके बाद खाना खाना अच्छा है लेकिन अपने लिए खाना बचा कर रखना भी उतनी ही जरूरी है। पूरा खाना खाइए,स्वस्थ-संतुलित भोजन करिए और योग या अन्य तरीकों से अपनी सेहत संवारिए। 
और अंत में यह बता दूं कि ये सभी संकल्प कोरे संकल्प नहीं है और न दूसरों को उपदेश देने के निमित्त से लिखे गए हैं, ये सभी मैं स्वयं हर साल अपनाती हूं और उन्हें हर संभव पूरा करती हूं। जिस संकल्प के पूरा होने में कसर रह जाती है उसे फिर नए साल में नए सिरे से अपना कर पूरा करती हूं। तो आप भी अपनाइए ये आसान संकल्प कुछ अपने लिए, कुछ समाज के लिए। नव वर्ष आप सभी के लिए शुभ और सुंदर हो!
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1 comment:

  1. बहुत सुंदर आलेख, नव वर्ष मंगलमय हो

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