Wednesday, January 15, 2025

चर्चा प्लस | पहले ख़बर हो कर बेखबर रहते हैं, बाद में चौंकते हैं | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस (सागर दिनकर में प्रकाशित)
       पहले ख़बर हो कर बेखबर रहते हैं, बाद में चौंकते हैं  
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘हमें का करने!’’ यह एक बहुप्रचलित उद्गार है किसी भी मुद्दे पर। विशेषरूप से आज जनहित के मसलों पर आमजन से ही ये शब्द सुनने को मिल जाते हैं। इसी को कहते हैं जानकर भी बेख़बर रहना। कुछ मुद्दे ऐसे भी होते हैं जिनके बारे में सरकार बाकायदा पूर्व घोषणा करती है, आमजन से विचार भी आमंत्रित करती है लेकिन पता नहीं क्यों लगभग हर मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा मान कर आमजन समय रहते अपनी राय भी प्रकट नहीं करता है और जब निर्णय लागू कर दिया जाता है तो प्रतिक्रिया होती है कि-‘‘अरे ये कब हो गया? हमें तो पता ही नहीं चला!’’ कहीं यही हाल न हो जाए प्रदेश में होने वाले नए परिसीमन को लेकर।

        अब कोई कहे के ये परिसीमन की बात कहां से और कब आ गई तो यह सुन कर शायद प्रदेश सरकार की आंखों से भी आंसू छलक पड़ें। तारीख 01 नवंबर 2024 मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने प्रदेश में नए परिसीमन आयोग के गठन का ऐलान कर दिया था। उसी समय बताया गया था कि नए परिसीमन आयोग की जिम्मेदारी रिटायर्ड एसीएस स्तर के अधिकारी मनोज श्रीवास्तव को सौंपी गई है। इस आयोग का गठन प्रदेश के संभागों और जिलों की सीमाओं की विसंगतियों को दूर करने के लिए किया गया। यह भी बताया गया था कि इस नवीन परिसीमन के अंतर्गत कई विसंगतियों को दूर कर कई स्थानों को आस-पास के जिलों से जोड़कर लोगों की बेहतरी के लिए काम किया जाएगा। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा स्पष्ट शब्दों में कहा था कि, ‘‘जब हमने सरकार बनाई तो इस बात पर ध्यान दिया कि भौगोलिक दृष्टि से भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य होने के नाते मध्य प्रदेश का अपना क्षेत्रफल तो है लेकिन समय के साथ इसमें कुछ कठिनाइयां भी आई हैं। जिले तो बढ़ गए, लेकिन जिलों की अपनी सीमाएं हैं। कई विसंगतियां हैं। कई संभाग बहुत छोटे हो गए हैं। ऐसी कई विसंगतियों के लिए हमने नया परिसीमन आयोग बनाया है, जिसके माध्यम से आस-पास के स्थानों को आस-पास के जिलों से जोड़कर लोगों की बेहतरी के लिए काम किया जाएगा।’’
एक-एक बात स्पष्ट और खोल कर बताई गई। आयोग को जिम्मेदारी दी गई है कि प्रदेश में संभाग, जिले, तहसील, विकासखंडों की नए सिरे से सीमांकन की रूपरेखा बनाकर प्रस्ताव तैयार करें। यह बात अलग है कि उस समय राज्य सरकार ने दावा किया कि प्रशासनिक पुनर्गठन का काम 2 माह में पूरा कर लिया जाएगा। यद्यपि विशेषज्ञों ने कहा कि दो महीने में ऐसे काम पूरे होने संभव नहीं हैं। कम से कम  एक साल का समय तो लगेगा ही। ये छोटा नहीं, बहुत बड़ा है। मध्यप्रदेश में कुल 10 संभाग, 56 जिले और 430 तहसीलें हैं। नई सीमाएं तय करने के लिए हर संभाग, जिला, तहसील स्तर के साथ ब्लॉक स्तर से कई प्रकार की रिपोर्ट मांगी जाएंगी। उनका अध्ययन किया जाएगा। यह देखा जाएगा कि जिला मुख्यालय से तहसील मुख्यालय व ब्लॉक की दूरियां कितनी हैं और किस तहसील और ब्लॉक मुख्यालय की सीमाएं किस जिले के नजदीक हैं। साथ ही भौगोलिक आधार पर किस मुख्यालय में क्या-क्या विसंगतियां हैं। आयोग को ये भी देखना पड़ेगा कि सभी जिलों में आयोग राजस्व, वन, नगरीय निकाय और पंचायत विभाग का समन्वय किस हिसाब से किया जा सकता है। सभी सीमाओं का विस्तृत अध्ययन करने के बाद ही अंतिम प्रारूप तय हो सकेगा। राज्य सरकार ने भले ही परिसीमन दो माह में पूरा करने का दावा किया था लेकिन यह समय सीमा किसी भी तरह से उपयुक्त नहीं थी। आयोग पहले तो जिला मुख्यालय के साथ ही तहसील मुख्यालय और हर ब्लॉक की सीमाओं के साथ जनसंख्या, नए जिले और नई तहसीलें गठित होने के बाद दिख रही विसंगतियां क्या हैं, इसका पता करेंगा। इस बारे में ब्लॉक लेवल से लेकर संभाग लेवल तक अफसरों को रिपोर्ट तैयार करके आयोग को देनी होंगी।  इसके साथ ही आयोग और हर जिले के प्रशासनिक अफसरों को सभी जनप्रतिनिधियों की आपत्तियों का भी निकारकरण करना है. इतना काम करने में एक साल से अधिक का समय लगेगा। फिर एक समस्या यह भी आई कि केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2025 से राष्ट्रीय जनगणना शुरू करने की योजना घोषित कर दी थी, जिसके लिए सभी राज्यों को 31 दिसंबर 2024 तक जिला, तहसील और ब्लॉक की सीमाएं फिक्स करने का आदेश जारी किया गया। इस प्रकार मध्यप्रदेश के परिसीमन में और ज्यादा समय लगने की संभावना है।
यह समय प्रशासनिक दृष्टि से भले ही ज्यादा हो लेकिन आमजन की राय के लिए सीमित और कम है, बशर्ते आमजन अपनी राय देने की जागरूकता का परिचय दे। सरकार अपने ऐसे हर बड़े निर्णय पर दावा, आपत्तियां और राय आमजन से आमंत्रित करती है लेकिन आमजन को मानो उस मुद्दे से कोई वास्ता नहीं रहता है। फिर जब उसे लगता है कि जो हुआ वह गलत हुआ है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसा लगता है कि आम जनता अपनी आवश्यकताओं को समझती तो बाखूबी है लेकिन उसके लिए अपनी राय प्रकट करने में झिझकती है। जबकि सरकार स्वयं आगे बढ़ कर राय देने का आह्वान करती है। पहले राय मांगे जाने पर ध्यान नहीं देना और फिर बाद में उलाहने गठरी पीठ पर लाद कर घूमना कि हमसे किसी ने पूछा नहीं, खबर होते हुए भी बेखबर रहने की निशानी है।
                दूर जाने के बजाए सागर जिला मुख्यालय के ही कुछ उदाहरण पुनः याद कर लीजिए। जब डाॅ. करी सिंह गौर विश्वविद्यालय सागर को केन्द्रीय विश्वविद्यालय में बदलने की कवायद शुरू हुई तो यह बात स्पष्ट थी कि इससे सागर के छात्रों के लिए सीटें कम हो जाएंगी तथा बाहर के छात्रों के लिए अवसर बढ़ जाएंगे। कुछ छुटपुट विरोध के बाद विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय बन जाने दिया गया। जब पूरी प्रक्रिया सम्पन्न हो गई तब बात उठी कि इससे तो पहले ही ठीक था अतः इसे पुनः पुरानी स्थिति में लौटा दिया जाए। एकदम व्यावहारिक मांग। खैर, यही हाल हुआ जिला अस्पताल और बीएमसी के आपस में मर्ज होने का। दावा, आपत्तियों एवं राय देने के समय झपकियां लेते रहने और बाद में अचानक जाग उठने से सब कुछ नहीं पलटा जा सकता है।
        सागर का एक परिसीमन हुआ था कुछ वर्ष पूर्व। उस समय मकरोनिया नगर पालिका बनाई गई और सागर नगर सागर नगरनिगम के आधीन रह गया। रजाखेड़ी जो कभी प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत हुआ करती थी मकरोनिया बुजुर्ग नगरपालिका के आधीन चली गई। उस समय बात आई थी कि मकरोनिया को नगर निगम में शामिल रखा जाए लेकिन मांग का स्वर कमजोर था। ऐसे अनेक लोग थे जो ‘‘हमें का करने?’’ की भूमिका में थे। अब एक   बार फिर समय है जब प्रशासन के सामने अपनी मांगों को रखते हुए अपनी राय से सरकार को अवगत कराया जा सकता है। परिसीमन आए दिन होने वाली प्रक्रिया नहीं है। इसलिए समय रहते यह तय नहीं किया गया कि मकरोनिया को सागर और उसकी स्मार्ट सिटी का हिस्सा बनना है या फिर विकास के लिए अपने सीमित साधनों के साथ जूझते रहना है।  
         मध्यप्रदेश क्षेत्रफल की हिसाब से देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। यहां पर पहले ही जिला, तहसील और ब्लॉक को नए सिरे से गठन की मांग की जा रही है। क्योंकि इनकी सीमाओं पर विसंगतियां हैं.। प्रदेश में बीते कुछ सालों से नए जिलों और नई तहसीलों का गठन किया गया। इस कारण ये विसंगतियां और बढ़ गईं। भौगोलिक विसंगतियों के कारण आम लोगों को प्रशासनिक कार्य कराने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
            परिसीमन के दौरान कुछ और नए जिलों के साथ ही नई तहसीलें बन सकती हैं। भौगोलिक विसंगितयों के कारण ही बीना (सागर), खुरई (सागर), जुन्नारदेव (छिंदवाड़ा), लवकुशनगर (छतरपुर) और मनावर (धार) को जिला बनाने की मांग लगातार उठती रही है। प्रशासनिक पुनर्गठन आयोग बनने से अब इस पर विचार किया जा सकता है। क्योंकि सीएम कह भी चुके हैं कई टोले, मजरे और पंचायतों के लोगों को जिला, संभाग, तहसील, विकासखंड जैसे मुख्यालयों तक पहुंचने के लिए 100 से 150 किमी का चक्कर लगाना पड़ रहा है, जबकि ऐसे क्षेत्रों से दूसरे जिले, संभाग, विकासखंड और तहसील मुख्यालय नजदीक हैं। कई संभाग बड़े-छोटे हो गए हैं। ऐसी विसंगतियां दूर करने के लिए नया परिसीमन आयोग बनाया गया है। लेकिन सवाल वही है कि आमजन इस परिसीमन प्रक्रिया को ले कर कितनी जागरूक है? इच्छानुरूप तभी सबकुछ हो सकता है जब समय रहते आमजन अपनी राय प्रकट करे। वरना जब चिड़िएं खेत चुग जाएं फिर हाय-तौबा मचाने से क्या होगा?                   
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