आज 21.01.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित
पुस्तक समीक्षा
सागर टूरिस्ट गाइड : एक अच्छा प्रयास जिसमें सर्तकता की कमी रह गई
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक - सागर टूरिस्ट गाइड
संकलन, लेखन एवं संपादन - रूपेश उपाध्याय
प्रकाशक - जिला पुरातत्व, पर्यटन एवं संस्कृति परिषद, सागर (म.प्र.)
मूल्य - 250/-
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सागर जिला आदिमानव के समय से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां की उर्वरा भूमि, वन संपदा और जल की प्रचुर मात्रा ने आरंभिक मानवों को सागर में निवास करने के लिए प्रेरित किया। इसके प्रमाण आज भी मौजूद है। सागर जिले में स्थित आबचंद की गुफाओं में प्रागैतिहासिक मानवों द्वारा बनाए गए चित्र तत्कालीन जीवनचर्या के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। सागर जिले के विभिन्न स्थलों से प्राप्त मृदभांड, माला-गुरिया, पाषाण औजार आदि यह बताते हैं की प्रागैतिहासिक मनुष्यों ने एक लंबे समय तक सागर जिले में निवास किया। सागर जिले ने मानवीय संस्कृति के विकास के विभिन्न चरण देखे हैं। राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे हैं। समय के साथ जिस तरह सांस्कृतिक विकास होता गया मनुष्य ने मंदिर बनाएं, सुंदर आवास बनाएं तथा बस्तियां बसाई उन सब के प्रमाण पुरास्थलों में मौजूद हैं। यहां पर्यटन की अपार संभावना है। इसीलिए एक लंबे अरसे से यह प्रयास किया जा रहा हैं कि सागर जिले में पर्यटन का विकास हो तथा एक व्यवस्थित टूरिस्ट गाइड तैयार हो। इसी संदर्भ में पहले जिला पुरातत्व संघ का गठन किया गया था (जिसमें मैं भी सदस्य थी)। वर्तमान में जिला पुरातत्व पर्यटन एवं संस्कृति परिषद का गठन किया गया है। इस वर्तमान समिति में मुख्य रूप से अपर कलेक्टर एवं नोडल अधिकारी जिला पुरातत्व पर्यटन एवं संस्कृति परिषद जिला सागर रूपेश उपाध्याय सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता एवं व्यक्तिगत रुचि के परिणाम स्वरूप ‘‘सागर टूरिस्ट गाइड’’ का प्रकाशन किया गया है।
सागर टूरिस्ट गाइड के कलेवर का संकलन, लेखन एवं संपादन लेखक रूपेश उपाध्याय अपर कलेक्टर सागर ने किया है तथा प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन कलेक्टर सागर संदीप जी. आर. का है जो कि जिला पुरातत्व पर्यटन एवं संस्कृति परिषद कार्यकारिणी के अध्यक्ष हैं। इस गाइड बुक को प्रकाशित किया है जिला पुरातत्व पर्यटन एवं संस्कृति परिषद जिला सागर ने। जैसा कि रूपेश उपाध्याय ने लिखा है कि ‘‘सागर टूरिस्ट गाइड’’ का प्रकाशन सागर के पर्यटन स्थलों का प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से किया गया है उम्मीद है कि यह टूरिस्ट गाइड पर्यटकों, जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।’’
निश्चित रूप से पर्यटन आज एक ऐसे महत्वपूर्ण उद्योग के के रूप में स्थापित हो चुका है जिससे सरकारों को राजस्व की एक बड़ी आय प्राप्त होती है। पर्यटन की वजह से अन्य उद्योग भी फलते-फूलते हैं। ऐसे उद्योगों में परिवहन, वन्यजीव, कला और मनोरंजन, आवास आदि शामिल हैं। पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने की दिशा में टूरिस्ट गाइड बुक का सबसे अधिक महत्व होता है। देखा जाए तो टूरिस्ट गाइड बुक संबंधित क्षेत्र की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक आदि विशिष्टताओं की प्रतिनिधि का काम करती है। एक गाईड बुक पर्यटन में रुचि रखने वालों तथा सामान्य व्यक्ति के भीतर पर्यटन की जागरूकता बढ़ाने का काम करते हुए उसे यह बताती कि उसे उस क्षेत्र का भ्रमण क्यों करना चाहिए, उसे उस क्षेत्र में क्या-क्या देखना चाहिए और उस क्षेत्र में भ्रमण करने से उसके मनोरंजन के साथ उसके ज्ञान में किस प्रकार वृद्धि होगी। इस तरह एक कम पन्नों वाली पतली-सी गाइड बुक भी बड़ा दायित्व सम्हालती है। वहीं, “सागर टूरिस्ट गाइड’’ कुल 88 पृष्ठों की है जिसमें नयनाभिराम चित्रों सहित सागर के पर्यटन स्थलों की जानकारी दी गई है।
गाइड बुक के पहले अध्याय में सागर जिले की भौगोलिक पृष्ठभूमि का परिचय दिया गया है। दूसरे अध्याय में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का संक्षिप्त परिचय है। इसके बाद सागर नगर का संक्षिप्त परिचय है जिसमें सर्तकता की कमी रह गई है। इसमें सागर नगर के इतिहास का परिचय देते हुए एक पंक्ति में सागर नगर का संस्थापक गोविंद पंत खेर को कहा गया है-‘‘वास्तविक रूप से गोविंद पंत खेर ही सागर नगर के संस्थापनक हैं।’’ (पृष्ठ 11) उल्लेखनीय है कि विगत वर्ष के उत्तरार्द्ध में ही इस तथ्य पर विवाद हो चुका है तथा इतिहासविद भी इस तर्क पर एकमत नहीं हैं। गाइड बुक के परामर्शदाता सूची में डाॅ नागेश दुबे, बी.के. श्रीवास्तव, डाॅ पंकज तिवारी, डाॅ आशीष द्विवेदी, डाॅ यशकूर अहमद कादरी, डाॅ रजनीश जैन तथा डाॅ नीलिमा पिंपलापुरे के नाम प्रकाशित हैं। बहरहाल, इस विषय को ले कर सागर के दांगी समाज द्वारा प्रदर्शन कर आपत्ति भी दर्ज़ कराई गई थी। अतः एक गाइड बुक में किसी भी ऐसे संदर्भ से परहेज करना चाहिए जिस पर विवाद अथवा मतभेद की स्थिति हो। गाइड बुक में जानकारी तटस्थ रह कर दी जानी आवश्यक है जिससे किसी विशेष समुदाय केी भावनाओं को चोट पहुंचने की संभावना वाले बिन्दुओं को सतर्कता के साथ प्रस्तुत किया जाना उत्तम रहता है। फिर बात वही आती है कि एक गाइड बुक पर्यटकों के लिए उस क्षेत्र की जानकारी पाने का महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय स्रोत होती है। आम पर्यटक इतिहास की पुस्तकों से गाइड बुक के तथ्यों को तस्दीक नहीं करता है वरन उसे ही प्रमाणिक जानकारी मानता है। अतः इस गाइड बुक में सतर्कता का परिचय देते हुए उस बिन्दु को नहीं रखना चाहिए था जिस पर सार्वजनिक विवाद हो चुका है।
सागर नगर के इतिहास के परिचय के बाद गुप्त कालीन विरासत- एरण, राहतगढ़ का किला, गढ़पहरा का किला, धामोनी का किला, खिमलासा का किला, खुरई का किला, गौरझामर का किला, देवरी का किला, अटाकनैलबढ़ एवं मालथौन का किला, सानोधा का किला, शाहगढ़ का किला, शिवमंदिर पाली, शिव मंदिर मंडर बामोरा, विष्णु मंदिर विनायका, भैसवाह मंदिर, बीना बारहा, जैन मंदिर, चैसठ योगिनी मंदिर, खंडेराव मंदिर, सूर्य मंदिर रहली, हरसिद्धि देवी मंदिर रानगिरि, वृंदावन बाग मंदिर, बनेनी घाट राहतगढ़, दंव पंढरीनाथ मंदिर रहली, सागर सिटी फारेस्ट, सागर जिले के शैलचित्र जिसमें आबचंद, गौरीदंत, खानपुर, नरयावली तथा मढ़ैयागोंड़ के शैल चित्र शामिल हैं, ‘गौर का गुरुकुल’ शीर्षक से डाॅ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर, पीढ़ियों की निशानी - सागर झील, ‘‘सागर के नगर पिता गोविंद पंत खेर’’ शीर्षक से पेशवा द्वारा नियुक्त प्रशासनिक अधिकारी गोविंद पंत खेर का जीवन परिचय, वीरांगना दुर्गावती नेशनल पार्क नौरादेही तथा राहतगढ़ जलप्रपात की सचित्र जानकारी दी गई है। धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र से महत्वपूर्ण कई मंदिरों का उल्लेख इसमें छूट गया है जैसे बाघराज मंदिर आदि।
एक अच्छे मंतव्य से यह एक अच्छा प्रयास किया गया जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। सागर की एक गाइड बुक का अभाव था जिस अभाव को इस पुस्तक ने दूर किया है किन्तु यदि विवादास्पद बिन्दुओं के प्रति सर्तकता बरती जाती तो अधिक उत्तम होता क्योंकि इससे पुस्तक की शेष सामग्री की विश्वनीयता पर भी प्रभाव पड़ता है। वैसे यह भी कि जब इसमें गोविंद पंत खेर का अलग से परिचय दिया गया तो डाॅ हरीसिंह गौर का भी अलग से परिचय दिया जाना चाहिए था क्योंकि सागर का जनमानस उनका बहुत सम्मान करता है तथा उन्हें ‘‘भारत रत्न’’ दिए जाने की निरंतर मांग उठती रहती है। डाॅ हरीसिंह गौर वे महामना है जिन्होंने सागर विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए अपनी ंसपत्ति दान कर के सागर में उच्चशिक्षा का उच्च केन्द्र स्थापित किया।
पुस्तक के लेखक, संकलनकर्ता एवं संपादक रूपेश कुमार ने पुस्तक की भूमिका में यह लिखा है कि-‘‘सागर टूरिस्ट गाइड के प्रकाशन में तथ्यों की प्रमाणिकता एवं शुद्धता का ध्यान रखा गया है, फिर भी त्रुटि रह जाना संभव है। पाठकगण इन त्रुटियों से हमें अवश्य अवगत करावें ताकि आगामी अंक में इसका परिमार्जन किया जा सके।’’ लेखक का आग्रह उचित है किन्तु प्रश्न उठता है कि आम पर्यटक जिसे सागर के इतिहास, भूगोल का किसी अन्य स्रोत से ज्ञान नहीं होगा तो वह परिमार्जन में सहयोग कैसे देगा? साथ ही प्रश्न यह भी उठता है कि पुस्तक के कलेवर पर परामर्शदाताओं से सहमति ली गई थी या नहीं?
बहरहाल, ‘‘सागर टूरिस्ट गाइड’’ को प्रशासनिक स्तर पर किए गए एक पहल के रूप में देखा जा सकता है तथा पुस्तक के लेखक रूपेश कुमार के प्रयासों की भी सराहना की जानी चाहिए। आशा की जा सकती है कि पुस्तक के अगले संस्करण में त्रुटियों को दूर कर लिया जाएगा।
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