Wednesday, January 29, 2025

चर्चा प्लस | पौराणिक महत्ता और गहरी आस्था समाई है कुंभ में | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस (सागर दिनकर में प्रकाशित)
चर्चा प्लस

पौराणिक महत्ता और गहरी आस्था समाई है कुंभ में   
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
      कुंभ का आकर्षण जनमानस के मन-मस्तिष्क पर सदा रहा है। यह एक प्राचीन उत्सव है जिसका धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। मान्यता है कि प्रयागराज कुंभ में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ स्नान की प्राचीनता निर्विवाद है इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। यहां तक कि चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में कुंभ मेले का उल्लेख किया है। कुंभ स्नान मुख्य रूप से मात्र चार स्थानों में होता है- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक। हर 12 वर्ष बाद पूर्ण कुंभ होता है। इस वर्ष 2025 में प्रयाग में पूर्ण कुंभ स्नान चल रहा है जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु स्नान कर रहे हैं।   
      कुंभ स्नान की प्राचीनता निर्विवाद है इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। कुंभ स्नान मुख्य रूप से मात्र चार स्थानों में होता है- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक। हर 12 वर्ष बाद पूर्ण कुंभ होता है। इस वर्ष 2025 में प्रयाग में पूर्ण कुंभ स्नान चल रहा है जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु स्नान कर रहे हैं। यह आस्था एवं प्राचीनतम सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपरा का अनूठा उत्सव होता है। यद्यपि यह हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा आयोजन है किन्तु इसमें सभी जाति, धर्म, समुदाय के लोग शामिल होते हैं। यहां तक कि विदेशों से विभिन्न धर्म और मान्यताओं के लोग भी कुंभ में स्नान करने तथा अलौकिक अनुभूति करने कुंभ स्थल पर पहुंचते हैं। पौराणिक महत्ता और गहरी आस्था समाई है कुंभ में।

कुंभ स्नान के आरम्भ की कथा

कुंभ के आरंभ होने के संबंध में एक बड़ी रोचक कथा पाई जाती है। इस कथा के अनुसार जब सूर्य और असुर वासुकी नाग को रस्सी की तरह प्रयोग में लाते हुए समुद्र मंथन कर रहे थे उस दौरान समुद्र से अमरता को प्रदान वाला अमृत कलश निकला। जैसे ही समुद्र मंथन से अमृत निकला देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर उड़ गया। इस पर गुरु शंकराचार्य के कहने पर दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और काफी परिश्रम करने के बाद दैत्यों ने जयंत को पकड़ लिया और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और राक्षसों में 12 दिन तक भयानक युद्ध चला रहा। इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदे गिरी थीं। जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी नासिक में गिरी थी। इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवताओं के 12 दिन, पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैं। इसलिए हर 12 साल में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है।
हर्षवर्द्धन कालीन ग्रंथों के अनुसार पहले कुंभ का विधिवत आयोजन राजा हर्षवर्द्धन के राज्यकाल (664 ईसा पूर्व) में आरंभ हुआ था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रावृतांत में बहुत बड़े मेले का उल्लेख मिलता है। वस्तुतः ह्वेनसांग हर्षवर्द्धन का उल्लेख करते हुए राजा हर्षवर्द्धन हर पांच साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे, जिसमें वे अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों में दान कर दिया करते थे। विद्वानों द्वारा की गई गणना के अनुसार वह निश्चित रूप से कुंभ का ही आयोजन होता था क्यों कि गणना के अनुसार उन तिथियों को कुंभ का समय पड़ा था। राशि की गणना के अनुसार प्रथम विचार है कि बृहस्पति के कुंभ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर हरिद्वार में गंगा के किनारे पर कुंभ का आयोजन होता है। दूसरे विचार के अनुसार जब बृहस्पति के मेष राशि में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चंद्र के मकर राशि में होने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुंभ का आयोजन होता है। तीसरे विचार के अनुसार कुंभ बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में आने पर नासिक में गोदावरी के किनारे पर कुंभ का आयोजन होता है और बृहस्पति के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर उज्जैन में शिप्रा तट पर कुंभ का आयोजन होता है।
इसमें संदेह नहीं किया जा सकता है कि हर्षवर्द्धन के समय जिस बड़े मेले, स्नान एवं दान का उल्लेख ळ्वेनसांग ने किया है वह कुंभ ही रहा होगा। यह संभव है कि हर्षवर्द्धन के काल के पूर्व भी कुंभ का आयोजन होता रहा होगा।

कुंभ की प्राचीनता

कुंभ का इतिहास हिंदू धर्म के ग्रंथों में बेहद प्राचीन है। सन 2017 में यूनेस्कों ने कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक. सूची में स्थान दिया है। 
वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि राम अपने वनवास काल में जब ऋषि भारद्वज से मिलने गए तो वार्तालाप में ऋषिवर ने कहा कि हे राम, गंगा-यमुना के संगम का जो स्थान है वह बहुत ही पवित्र है आप वहां भी रह सकते हैं। ‘‘रामचरितमानस’’ में प्रयागराज के महत्व का वर्णन इस प्रकार किया गया है-
माघ मकरगल रवि जब होई। 
तीरर्थ पतिहिं आव सब कोई।। 
देव दनुज किन्त्र नर श्रेनी। 
सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी।। 
पूजहिं माधव पद जल जाता। 
परसि अठैवट हरषहिं गाता।। 
भरद्वाज आश्रम अति पावन। 
परम रम्य मुनिवर मन भावन।।
तहां होड़ मुनि रिसय समाजा। 
जाहिं जे मज्जन तीरथ राजा ।।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्रयाग को प्रयागराज कहे जाने की भी एक रोचक कथा है जो शेषनाग ने ऋषि को बताई थी। एक बार शेषनाग से ऋषि ने प्रश्न किया था कि प्रयागराज को तीर्थराज क्यों कहा जाता है? इस पर शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक बार सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की जाने लगी, उस समय भारत में समस्त तीर्थों की तुला के एक पलड़े पर रखा गया और प्रयाग को दूसरे पलड़े पर, फिर भी प्रयाग का पलड़ा भारी पड़ गया। दूसरी बार सप्तपुरियों को एक पलड़े में रखा गया और प्रयाग को दूसरे पलड़े पर, दूसरी बार भी प्रयागराज वाला पलड़ा भारी रहा। इसके बाद प्रयाग की को तीर्थों का राजा अर्थात प्रयागराज कहा जाने लगा। त्रिवेणी संगम इसके महत्व को द्विगुणित कर देता है।
मत्स्य पुराण के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार ऋषि मार्कण्डेय से पूछा कि ऋषिवर यह बताएं कि प्रयागराज क्यों जाना चाहिए और वहां संगम स्नान का क्या फल है? इस पर ऋषि मार्कण्डेय ने कहा कि प्रयागराज प्रजापति का क्षेत्र है जो तीनों लोकों में विख्यात है।यहां पर स्नान करने वाले विभिन्न दिव्यलोक को प्राप्त करते हैं और उनका पुनर्जन्म नहीं होता है। पद्म पुराण के अनुसार प्रयाग वह यज्ञ भूमि है, देवताओं को विशेष प्रिय है। 

कुंभ की तिथियों की गणना

सूर्य की स्थिति के अनुसार कुंभ पर्व की तिथियां निश्चित होती हैं। आरम्भ प्रयागराज से होता है। मेष के सूर्य में हरिद्वार, तुला के सूर्य में उज्जैन और कर्क के सूर्य में नासिक का कुंभ पर्व पड़ता है। अथर्ववेद के अनुसार मनुष्य को सर्व सुख देने वाला पर्व है कुंभ। संक्रांति के पूर्व और बाद की 16 घड़ियों में पुण्यकाल माना गया है। मुहूर्त तिथि आधी रात से पहले हो तो पहले दिन तीसरे पहर में पुण्यकाल बताया गया है और यदि मुहूर्त तिथि आधी रात के बाद हो तो पुण्यकाल प्रातःकाल माना जाता है। इसके अलावा मकर संक्रांति का पुण्यकाल 40 घड़ी, कर्क संक्रांति का पुण्यकाल 30 घड़ी और तुला एवं मेष का संक्रांति का पुण्यकाल 20-20 घड़ी पहले और बाद में बताया गया है। प्रयाग में माघ के महीने में विशेष रूप से कुंभ के अवसर पर गंगा, यमुना एवं गुप्त सरस्वती के संगम में स्नान का बहुत ही महत्व होता है। 
कुंभ में स्नान पर्व का भी अपना महत्व होता है। यही कारण है कि इस वर्ष 2025 के कुंभ में भी देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन प्रयागराज पहुंच कर स्नान कर रहे हैं। वस्तुतः कुंभ स्नान का समय भीड़ प्रबंधन के लिए विकट चुनौती भरा होता है। देखा जाए तो यह प्रशासनिक तबके के लिए परीक्षा की घड़ी होती है। किन्तु जैसाकि कहा जाता है कि यदि उद्देश्य सही हो तो ईश्वर भी सहायता करता है अतः प्रत्येक कुंभ में भीड़ प्रबंधन सुचारु रूप से संचालित हो जाता है और इस बार भी प्रयागराज ही नहीं वरन वहां तक पहुंचने में मार्ग में पड़ने वाले स्थानों में भी भरपूर व्यवस्था की गई है।             
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