Friday, January 24, 2025

शून्यकाल | गणतंत्र के प्रति युवाओं का दायित्व | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

दैनिक 'नयादौर' में मेरा कॉलम -शून्यकाल

   गणतंत्र के प्रति युवाओं का दायित्व

      - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

             भारतीय गणतंत्र में युवाओं को अनेक अधिकार दिए गए। युवाओं की बौद्धिकता एवं समझबूझ को देखते हुए मतदान की आयु में संशोधन किया गया। यह माना गया कि आज का युवा अधिक विवेकशील और विचारवान है। वह तटस्थतापूर्वक राजनीतिक निर्णय ले सकता है। लेकिन विगत कुछ समय से युवाओं और विशेष रूप से अवयस्क युवाओं ने जिस प्रकार आपराधिक तेवर दिखाए हैं वह चौंकाने वाले हैं। आज वह समय है जब भारत समूचे विश्व की अगुवाई करने की स्थिति में आता जा रहा है। ऐसी स्थिति में युवाओं का भी दायित्व बनता है कि वे अपने देश की छवि और विकास के प्रति स्वयं को पूरी लगन और निष्ठा से प्रस्तुत करें।
 
   गणतंत्र का आशय है वह तंत्र जनता द्वारा निर्धारित एवं शासित हो। बहुत ही सुंदर संकल्पना। यह हम भारतीयों का सौभाग्य है कि हम विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के नागरिक हैं। इस गणतांत्रिक व्यवस्था को आकार में आए अब छः दशक से अधिक का समय हो चुका है। सन् 1950 में गणतंत्र की स्थापना के बाद हमने गणतांत्रिक मूल्यों में विश्वास किया है और उसी में जीवनयापन किया है। 

 इस बीच वैश्विक पटल पर पूंजीवाद ने पांव पसारे और साम्यवाद सिमटता चला गया। चीन एक विशेष शक्ति बन कर उभरा और कई अरब देश आतंकी संगठनों के निशाना बने। किन्तु भारतीय गणतंत्र अडिग बना रहा। इसका सबसे बड़ा कारण इसका संवैधानिक लचीलापन है। गणतंत्र का यह भी अर्थ है कि देश के नागरिकों के पास वह सर्वोच्च शक्ति होती है जिसके द्वारा वे देश के नेतृत्व के लिये राजनीतिक नेता के रुप में अपने प्रतिनिधि चुन सकते हैं। ये चुने हुए मुखिया वंशानुगत आधार पर नहीं होते हैं। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित किया जाता है। वहीं चुने हुए मुखिया का दायित्व होता है कि वह  जनता के दुख-सुख का ध्यान रखते हुए देश के विकास के लिए काम करे। दुख है कि कुछ ऐसे अवसर भी आए हैं जब नागरिकों को चाहे स्थानीय स्तर पर, राज्य स्तर पर या फिर राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व चुनने के बाद ठगा-सा महसूस करना पड़ा। लेकिन जल्दी ही जनता ने अपनी भूल को सुधारते हुए सत्ता परिवर्तन का शंखनाद कर के जता दिया कि भारतीय गणतंत्र को किसी भी प्रकार की तानाशाही में नहीं बदला जा सकता है। और यह संभव हो सका तत्कालीन बुजुर्ग नेतृत्वकर्ताओं के साथ खड़ी होने वाली युवाशक्ति के कारण। जब कभी ऐसा लगने लगता है कि फलां धारा समसामयिक मूल्यों पर खरी नहीं उतर रही है तो उसमें बेझिझक आवश्यक संशोधन कर लिए जाते हैं। भारतीय गणतंत्र में युवाओं को भी अनेक अधिकार दिए गए। युवाओं की बौद्धिकता एवं समझबूझ को देखते हुए मतदान की आयु में संशोधन किया गया। यह माना गया कि आज का युवा अधिक विवेकशील और विचारवान है। वह तटस्थतापूर्वक राजनीतिक निर्णय ले सकता है। लेकिन विगत कुछ समय से युवाओं और विशेष रूप से अवयस्क युवाओं ने जिस प्रकार आपराधिक तेवर दिखाए हैं वह चौंकाने वाले हैं। 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा दिए गए आंकाड़ें विगत कुछ वर्षों से निरंतर चकित रहे हैं। यदि वर्ष 2013 के आंकड़ों पर दृष्टि डालें तो वर्ष 2013 में गिरफ्तार किए गए अवयस्क अपराधियों में कुल 35244 अवयस्क अपराधी ऐसे थे जो अपने अभिभावकों के साथ ही रहते हुए अपराध में लिप्त थे। प्राप्त आकड़ों के अनुसार, गिरफ्तार किए गए 16-18 आयु वर्ग के नाबालिगों की संख्या साल 2003 से 2013 तक बीच बढ़कर 60 प्रतिशत हो गई थी। अवयस्कों द्वारा किए जा रहे संगीन अपराधों में निरंतर वृद्धि को देखते हुए जनवरी 2018 में हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को आदेश दिया था दिल्ली पुलिस नाबालिगों के किए गए अपराध का भी डोजियर बनाए। ये डोजियर 16 से 18 साल के उन नाबालिगों का बनेगा जो संगीन अपराध करते हैं। माह जनवरी 2018 में दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें खुलासा किया गया था कि दिल्ली में हुए अपराधों में वर्ष 2016 में नाबालिगों द्वारा 18 फीसदी अपराध किए गए, इनमें हत्या और रेप जैसी संगीन वारदातें भी शामिल हैं। इसके अलावा 27 प्रतिशत चोरी और लूट के मामलों में भी नाबालिगों की भूमिका पाई गई। पुलिस के मुताबिक अपराध करने वालों में 16 से 18 वर्ष की आयु के नाबालिग ज्यादा हैं।  ये रिपोर्ट हाईकोर्ट में दिल्ली पुलिस ने पश्चिमी दिल्ली में हुए मर्डर के साथ पेश की। इस मर्डर में तीन नाबालिगों ने एक राहगीर से 600 रुपए लूटे थे और जब उसने इसका विरोध किया था तो उन लोगों ने उसकी निर्ममता से हत्या कर दी थी। इस मामले में तीनों नाबालिगों को बाल सुधार गृह भेजा गया था। पुलिस ने दलील दी थी कि तीनों नाबालिग की उम्र 18 साल में महज तीन से पांच महीने का अंतर था। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि कानून को नहीं बदला जा सकता, लेकिन ये जरूर किया जा सकता है कि इनके डोजियर को बनाया जाए, ताकि भविष्य में जब ये लोग इस तरह के अपराधों को करें तो इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके। इससे पूर्व सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय की रिपोर्ट पर गृह मंत्रालय केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट पेश कर चुका है, जिसके तहत 17 साल से अधिक के नाबालिग जो संगीन अपराध करते हैं उन्हें भी आम बदमाशों की श्रेणी में रखा जाए। इस पर जुलाई, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि जब नाबालिग अपराध करने में नहीं कतराते और उनके उम्र को हथियार बनाकर क्राइम को पेशा बना लिया है तो ऐसे में इन लोगों के खिलाफ सख़्त कानून बनाना चाहिए।

राजधानी दिल्ली में 16 दिसम्बर, 2012 को निर्भया के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना में एक नाबालिग भी लिप्त था। उस समय नाबालिगों के खिलाफ सख्त कानून बनाने की देश भर में पुरजोर मांग की गई थी। इस घटना को दो साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013 में नाबालिगों द्वारा छेड़छाड़ और बलात्कार के मामलों में 132 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई। विगत एक-दो माह में जो घटनाएं सामने आई हैं वह और अधिक चिन्ता में डालने वाली हैं। गुरुग्राम के एक नामी स्कूल के एक लड़के ने स्कूल के एक बच्चे की हत्या केवल इसलिए कर दी, ताकि कुछ दिनों के लिए परीक्षा टल जाए, नोएडा में तो एक लड़के ने अपनी मां और बहन को इसलिए मार डाला, क्योंकि वे उसे डांटते थे तथा एक नाबालिग छात्र ने गुस्से में आ कर अपनी स्कूल शिक्षिका पर गोलियां बरसा दीं। 2024 में  मध्य प्रदेश के छतरपुर में एक छात्र ने प्रिंसिपल को चाकू मार दिया। ये घटनाएं भारतीय गणतंत्र के लिए चुनौती के समान हैं। यह भारतीय संस्कृति का भी चेहरा नहीं है। 
नवीन कुमार जग्गी, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय एवं अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष, बालकन जी बार इंटरनेशनल का मानना है कि ‘‘गंभीर अपराध करने पर नाबालिग को छोड़ा नहीं जाना चाहिए क्योंकि बार-बार अपराध करने वालों के सुधरने की संभावना नहीं रहती है। आयुसीमा का लाभ उठाकर नाबालिग अपराध करते हैं जिसका नुकसान समाज को उठाना पड़ता है। मेरा मानना है कि नाबालिग को अपराध के अनुपात में दंड मिलना चाहिए।’’

जिस तरह युवाओं में बढ़ती अपराध की प्रवृत्ति एक सच है, उसी तरह यह भी सच है कि कोई भी युवा जन्म ये अपराधी नहीं होता है। वातावरण उसे अपराध की ओर धकेल देता है। यदि आज युवा गंभीर अपराध में लिप्त दिखाई दे रहे हैं तो कहीं न कहीं दोष उस वातावरण का है जो ग्लोबलाईजेशन और इन्टरनेट के माध्यम से भ्रमित कर रहा है। वैसे इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता है कि जिस तरह युवाओं में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ती दिखाई दे रही है वहीं दूसरी ओर आत्मविश्वास से भरी-पूरी युवा खेप भी नज़र आती है। आत्मविश्वास से भरा युवा वर्ग अपने कैरियर के प्रति जागरूक रहता है। वह अपने भविष्य का फैसला खुद करके स्वयं को सक्षम साबित करने के लिए तत्पर रहता है। आज का युवा मेहनत से नहीं घबराता है। वह सरकारी नौकरियों के बंधे-बंधाएं वेतन की बजाय पे पैकेज को बेहतर मानता है। लेकिन यहां चिन्ता का विषय यह है कि पैकेज़ब्रांड युवा वर्ग ‘‘हाई लाईफ-हाई लिविंग’’ के उसूलों पर चलते हुए विदेशों की ओर मुंह कर के खड़ा रहता है। उनके माता-पिता भी गर्व करते हैं यदि उनकी आंखों का तारा अपना देश छोड़ कर उनसे सात समुन्दर पार चला जाता है। जिस आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और दृढ़निश्चयी युवा शक्ति की देश के गणतंत्र को आवश्यकता है वे देश से पलायन के सपने बुनते रहते हैं। 

आज वह समय है जब भारत समूचे विश्व की अगुवाई करने की स्थिति में आता जा रहा है। ऐसी स्थिति में युवाओं का भी दायित्व बनता है कि वे अपने देश की छवि और विकास के प्रति स्वयं को पूरी लगन और निष्ठा से प्रस्तुत करें। इसके लिए युवाओं के माता-पिता को भी अपने दिवास्वप्नों से बाहर निकलना होगा, इससे उनकी संतानें उनके पास रहते हुए देश के विकास में भागीदार बन सकेंगी और उनका वृद्धावस्था का अकेलापन भी दूर कर सकेंगी। उन युवाओं को भी समझना होगा जो अपराध के प्रति आकर्षित होते हैं कि वे अपराध कर के बच तो पाएंगे नहीं, वरन् अपना और अपने परिवार का जीवन भी बरबाद कर बैठेंगे। वस्तुतः प्रत्येक युवा को यह समझना चाहिए कि गणतंत्र वह संवैधानिक वातावरण है जो उन्हें अवांछित अथवा अवैधानिक बिना दबाव के जीने और बहुमुखी विकास करने के अवसर देता है।                
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