Thursday, January 9, 2025

बतकाव बिन्ना की | कोन खों चांदी मिली औ कोन खों घड़िया-घुल्ला मिले? | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
कोन खों चांदी मिली औ कोन खों घड़िया-घुल्ला मिले?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
      संझा की बिरियां हम तीनों जने, मने भैयाजी, भौजी और मैं उते भैयाजी के आंगन में बैठे हते। हम तीनोई जने गुरसी में आगी ताप रए हते। भैयाजी के घरे के भीतरे वारे आंगन में ज्यादा जड़कारों नईं लगत। काए से के उते चारो तरफी से घिरो कहानो। जो दोरे लटका देओ तो ठंडी हवा नईं लगत। बस, गुरसी से उठत लपटों को मजा आउत आए। एक दिना का भओ के मोरे एक पैचान वारे ने मोसे कई के इते एक होटल में जड़कारे में अलाव जलाओ जात आए। उते सब जने चलबी। अलाव तापबी औ उतई ब्यालू करबी। मैंने कई के भैया, मोए तो माफ करो! काय से के उते खुल्ला लाॅन में बे ओरें अलाव जलाहें, सो अलाव से आगूं से तो गरम लगहे, लेकन मूंड़ औ पीठ तो जड़ा जैहे। उन्ने जे बारे में सोचई न हती, सो उनके सोई अकल के दोरे खुल गए। अब कोनऊं खों मजबूरी में अलाव तापत भए रात काटने पड़े सो बा बात अलग कहानी। बिगैर मजबूरी के काए ठंडो-गरम की सल्ल पाली जाए। कऊं तबियत बिगर गई तो? डाॅक्टर हरें सोई जेई कैत आएं के मूंड़ पे ठंडी ने लगन दइयो। कान सोई ढंके रइयो। सो, भैयाजी के इते ऐसो कोनऊं डर नइयां, काय से के उनके इते वां टीन को शेड सेाई डरो, जिते हम ओरें गुरसी तापत आएं।
सो हम ओरे गुरसी ताप रए हते औ संगे मोंमफली चबाउत जा रए हते। बतकाव सो चलई रई ती। भौजी कै रईं तीं के अब की बेर फेर के बरमान चलो, नरमदा जू के दरसन कर आएं। उतई की बुड़की हो जैहे। औ भैयाजी कै रए हते के बुड़की के टेम पे उते भौतई भीड़ हुइए, सो उते बाद में चलबी। ई पे मैंने कई के कऊं जाबे को प्रोगराम बने सो मोय जरूर बता दइयो। जो मोय छोड़ के गए तो ठीक ने हुइए। 
‘‘पैले तो घड़िया-घुल्ला हमाए घरे बनत्ते।’’ भौजी ने कई।
‘‘आप बना लेत हो?’’ मैंने भौजी से पूछी। मोए अचरज भओ।
‘‘ऊंहूं! हमसे नईं बनत। औ हमाए इते कोनऊं से नई बनत्ते। बा तो बनाबे वारे घरे बुलाए जात्ते। उनके लाने शक्कर और घी औ जो-जो लगत्तो, बा सब मंगा दओ जात्तो। तिली के लड़ुआ बनाबे वारी अलग से आउत्तीं। बाकी लड़ुआ तो हम ओरें सोई बना लेत्ते, लेकन इत्ते ज्यादा लड़ुआ लगत्ते के बनाबे वारियां बुलाने परत्तीं। जे हम अपने लड़कोरे की बता रए। ऊ टेम पे आपस में सबई को मेल-जोल ज्यादा रैत्तो। हम ओरें सबखों लड़ुआ देत्ते औ सबई के इते से हम ओरन के इते लड़ुआ आउत्ते। हमाए मम्मा के इते से भौतई नोंने घड़िया-घुल्ला आउत्ते। ऊमें घोड़ा औ हाथी सो भैया हरें ले भगत्ते, औ हम बिन्ना हरें कंगन, हार, झुमकी औ अंगूठी पा के खुस हो जात्तीं।’’ भौजी बतान लगीं।
‘‘सई में भौजी कित्ते अच्छे लगत आएं बे कंगन। पैन्ह के पैन्ह लेओ औ जब मन परे सो खा लेओ। उते पन्ना में तो धरम सागर के लिंगे मेला भरत्तो। हमाए घर से धरम सागर लौं जेई सब की दुकानें लगी रैंत्ती। मोए फिरकी, गेऊं पीसत की चक्की, औ बे चका वारे माटी के घोड़ा औ हाथी सोई भौत पोसात्ते। मनो मेला जाबे से पैले अम्मा लकड़ी वारे चूला पे बड़े से पतीला में पानी गरम करत्तीं। जबलौं पानी गरम होत्तो तब लौं हम ओरन खों पिसी भई तिली पकरा दई जात्ती, के हम ओरें उबटन लगा के सपरबे खों तैयार हो जाएं। फेर गरम पानी से सपर-खोंर के पूजा करत्ते। औ पूजा के बाद तिली डरी खिचड़ी खाउत्ते। तब कऊं जा के मेला जाबे को नंबर लगत्तो।’’ मोय सोई अपने लरकपन के दिन याद आन लगे। 
‘‘तिली के उबटन से हाथ-पांव कित्ते चिकने हो जात्ते। अब तो बा सब छूटई गओ। अब तो नेंग सो कर लेओ, औ जैराम जी की।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हम ओरे मेला से पतंगे खरीदत्ते। फेर मैदान में पौंचे के पतंगे उड़ात्ते।’’ भैयाजी खों सोई याद आन लगी।
‘‘अब तो सबई कछू बदल सो गओ। बा पतंग में सुनत आएं के चाइनीज मंझा लगा दओ जात आए। जीसें गरदन लौं कट सकत आए। औ रई घड़िया-घुल्ला की सो अब कोनऊं शक्कर को आइटेम खाबो नईं चात आए। पिछली साल हम ओरें भतीज बहू के इते गए रए। ऊके लाने हम ओरें घड़िया-घुल्ला ले गए रए। ऊने बा खाबे से साफ मना कर दई। कैन लगी के जे शक्कर को आए, ईको खा के तो हमाओ वजन बढ़ जैहे। औ भतीजा खों तो इत्तई सी उम्मर में शुगर की बिमारी हो गई आए।’’ भौजी बतान लगीं।
‘‘जेई तो हम सोचत आएं के पैले के जमाना में जे सब चीजें बे ओरे कैसे खा पचा लेत्ते? ने तो पैले इत्ती शुगर की बिमारी होत्ती, ने तो इत्ते हार्ट अटैक आत्ते औ ने इत्ते घुटना पिरात्ते। जोन की तासीर बात की होत्ती, उनई खों जोड़न को दरद होत्तो। अब तो सबई को घुटना पिरात रैत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी, पैले लुगवा होय चाए लुगाई होय मेहनत को काम करत्ते। अब सो हाथ-पांव हिलाबे के लाने अलग से टेम चाउनें परत आए। चाए जिम जाओ चाए घरे करो। औ जे सब से नईं हो पात। सो खाबे-पचाबे की ताकत कम हो चली आए। फेर जे जो मिलावटी चीजें मिलत आएं। कऊं दवा वारी साग-सब्जी मिलत आए तो कऊं दवा के इंजेक्शन लगा के निकारो गओ दूध पीने परत आए। अब ऐसे में तबीयत कां लौं साथ दैहे?’’ मैंने कई।
‘जे बी बात सई आए।’’ भैयाजी ने मुंडी हलाई।
तभई हम ओरें चैंक परे। काय से के कोऊं ने दोरे की कुंडी खटकाई। हो सकत के अंदियारे में ऊको कालबेल ने दिखी होए। 
‘‘को आ?’’ भैयाजी ने ऊंची आवाज में पूछी।
‘‘हम आएं मुन्नालाल!’’ बायरे से आवाज आई।
‘‘हऔ, खोल रए।’’ भैयाजी उठत भए बोले। फेर भैयाजी ने जा के दोरे खोले। मुन्नालाल भीतरे कढ़ आए। बे सोई गुरसी के लिंगे बैठ गए औ हाथ तापन लगे।
‘‘ई टेम पे कैसे? सब ठीक तो आए न?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ सब ठीक आए। बा तो इते से कढ़ रए हते सो हमने सोची के भौजी से पूछ लें के घड़िया-घुल्ला बन गए के नईं?’’ मुन्नालाल ने कई।
‘‘तुमें कब से घड़िया-घुल्ला पोसान लगे? तुम तो चटोरा आओ। तुमें तो चाट-फुलकी चाउने परत आए।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘अब का कई जाए, जमानो खराब आए। आज काल कभऊ बी कोनऊं खों घड़िया-घुल्ला पकराओ जा रओ।’’ मुन्नालाल ने कई।
‘‘का मतलब?’’भैयाजी ने पूछी।
‘‘मतलब जे के कोऊं कुर्सी से बायरे होबे के कारन रो रओ औ कोऊं कुर्सी पे बैठ के रो रईं।’’ मुन्नालाल ने बोलो।
‘‘हऔ, सो तुम दिल्ली की बात कर रए। अरे उते तो कोऊ ने कोऊ डिरामा होतई रैत आए। अपने इते की कछू होय तो कओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अपने इते की बोल के मोय कुटने-पिटने का? जो कोनऊं खों बुरई लग गई तो?’’ मुन्नालाल ने कई।
‘‘तुम कै रए जे? तुम तो बड़े मों फट आओ! अब का भऔ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मों फट होबे से का होत आए? अब मनों हम कएं के इते सबई सूरमा आपसई में तलवारें खेंच रए तो हमाए कए से का हुइए? अकेले हमई फंसबी।’’ मुन्नालाल ने कई।
‘‘जा सो सब देखई रए। औ भैया मुन्ना, जोन को पत्ता कटहे, बा तो रार मचाहे ई। औ जोन खों पूछो जैहे, बा इतराहे ई। जे तो होत रैत आए। औ फेर राजनीति की का कई जाए, आज जोन तलवारें खेंच रए काल कओ बेई हिली-मिली बालें बने दिखात फिरें। सो अपन तो ई सब में परतई नइयां।’’ भैयाजी अपना पल्ला झारत भए बोले।
‘‘मनो मुन्ना भैया, हमें जे बताओ के जे सब से तुमाए घड़िया-घुल्ला को का मतलब?’’ अब के भौजी ने पूछी। 
‘‘मतलब जे आए भौजी के अबे हाल जे आए के कोऊं समझ नई पा रओ को कोन खों चांदी के जेवर दए गए, कोन खों गिलट के, औ कोन खों घड़िया-घुल्ला पैन्हा दए गए? औ जो मालक नईं जान पा रए तो उनके चमचा का जान पाहें? बे सोई भैराने से घूमत रैत आएं के कोन खों अच्छो कैं औ कोन खों बुरऔ?’’ मुन्नालाल ने कई।
‘‘हऔ तुम कै तो ठीक रए भैया, मनो अब जड़कारो बढ़ जैहे सो तुम निकर लेओ अपने घरे के लाने, फेर कल दुफारी को आइयो सो बात करबी।’’भैयाजी समझ गए हते के मुन्नालाल टेम पास करबे खों धमके आएं, सो उन्ने उने भगाबो ई ठीक समझो।
‘‘चाय-माय ने मिलहे?’’मुन्नालाल ने पूछई लओ।
‘‘दूध बढ़ा गओ भैया।’’ भौजी ने जवाब दे दओ। 
मुन्नालाल समझ गए के इते उनकी दाल नईं गलबे वारी, सो बे उठ गए।                                                                                                                                   
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में, के कोन खों चांदी के गहना मिले औ कोन खों घड़िया-घुल्ला घांई चीनी के?
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