Tuesday, January 7, 2025

पुस्तक समीक्षा | सागर के सांस्कृतिक वैभव की बेहतरीन प्रस्तुति है इस काॅफीटेबल बुक में | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 07.01.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित 
पुस्तक समीक्षा 
सागर के सांस्कृतिक वैभव की बेहतरीन प्रस्तुति है इस काॅफीटेबल बुक में
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक   - सागर जिले की सांस्कृतिक विरासत
प्रधान संपादक - प्रो. नागेश दुबे एवं प्रो. बी. के. श्रीवास्तव
प्रकाशक     - संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय, भोपाल, मध्यप्रदेश    
मूल्य        - 200/- 
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सागर जिले के इतिहास की प्राचीनता उस समय से है जब मानव अपने पाषाण औजारों के साथ यहां प्रथम बार बसने आया था। सागर की संस्कृति विविध रंगों का एक ऐसा इंद्रधनुष है जिसमें सात से भी अधिक रंग हैं। सागर ने अपने अस्तित्व की रक्षा के संघर्ष में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। सागर का सबसे गौरवशाली पक्ष है यहां का विश्वविद्यालय जिसे सभी डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के नाम से जानते हैं। पूर्व में इस विश्वविद्यालय का नाम सागर विश्वविद्यालय था जो कि स्वयं डाॅ. हरीसिंह गौर ने नामकरण किया था। किन्तु सागर के कृतज्ञ जन ने इसे दानवीर डाॅ हरीसिंह गौर का नाम देना उचित समझा और तब से यह डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय कहलाने लगा। अब तो यह केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा पा चुका है। इस विश्वविद्यालय में यूं तो विविध विषयों के संकाय हैं जो अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं किन्तु प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग इस दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है कि यह निरंतर सागर की ऐतिहासिक, सांस्कृति एवं पुरातात्विक संपदा को सहेजता रहता है। प्रतिष्ठित पुराविद् प्रो. के.डी. वाजपेयी के प्रयासों से विभाग का संग्रहालय स्थापित हुआ था जिसमें सागर तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्रों के पुरावशेष संरक्षित हैं। निरंतर शोध, खोज और प्रकाशनों के द्वारा विभाग की ओर से सागर की पुरासंपदा एवं संस्कृति को सहेजने का कार्य वर्तमान विभागाध्यक्ष प्रो. नागेश दुबे के निर्देशन में भी जारी है। वहीं विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग अध्यक्ष प्रो. बी. के श्रीवास्तव के नेतृत्व में नित नए शोध कार्य हो रहे हैं। वस्तुतः प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग और इतिहास विभाग इतिहास के अध्ययन के परस्पर पूरक हैं, परस्पर अभिन्न कड़ी हैं। इस बार दोनों विभागों के विभागाध्यक्षों ने संयुक्त रूप से एक काॅफीटेबल बुक प्रकाशित कर के एक उपयोगी और सारगर्भित कार्य किया है। पुस्तक का नाम है ‘‘सागर जिले की सांस्कृतिक विरासत’’।

प्रो. नागेश दुबे एवं प्रो. बी.के. श्रीवास्तव के प्रधान संपादन में प्रकाशित ‘‘सागर जिले की सांस्कृतिक विरासत’’ अर्थात ‘‘कल्चरल हेरीटेज आफॅ सागर डिस्ट्रिक्ट’’ द्विभाषिक (बाईलिंगुएल) है। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में होने से यह पुस्तक अधिक पाठकों के लिए पठनीय हो सकेगी।  अनुशंसा, विचार और प्राक्कथन को मिलाकर इसमें कुल 21 अध्याय हैं। प्रथम ‘‘मेरे विचार’’ में पुस्तक के प्रति आयुक्त पुरातत्व उर्मिला शुक्ल के विचार हैं। द्वितीय अध्याय ‘‘मेरी बात’’ में डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्त की शुभकामनाएं हैं। तीसरे अध्याय ‘‘प्राक्कथन’’ में प्रधान संपादक द्वय प्रो. नागेश दुबे एवं प्रो. बी.के. श्रीवास्तव द्वारा लिखी गई भूमिका है।

चौथा अध्याय है ‘‘सागर: सांस्कृतिक विरासत के आईने में’’। इस अध्याय में सागर के भौगोलिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की संक्षिप्त जानकारी दी गई है। पांचवा अध्याय है प्रागैतिहासिक पाषाण उपकरण। इस अध्याय में सागर जिले की नदी घाटियों में बसे हुए प्रागैतिहासिक कालीन मानवों के द्वारा प्रयोग में ले गए पाषाण के औजारों की जानकारी दी गई है। 
छठां अध्याय है ‘‘महत्वपूर्ण चित्रित शैलाश्रय’’। इस अध्याय में सागर जिले में स्थित उन शैलाश्रयों की जानकारी दी गई है जहां प्रागैतिहासिक कालीन मनुष्यों ने शैलचित्र बनाए थे। जैसे- आबचंद की गुफाएं, मढ़ैया-गौड़ के चित्रित शैलाश्रय तथा बीला नदी घाटी के चित्रित शैलाश्रय।

सातवां अध्याय है ‘‘आद्यैतिहासिक मृद्भाण्ड एवं पुरावशेष’’। इस अध्याय में एरण नमक पुरास्थल से प्राप्त उन उपकरणों की जानकारी दी गई है जो ताम्रपाषाण काल में प्रयोग में लाए जाते थे। इन अवशेषों में मिट्टी की बड़ी गोलियां, ब्लेड, भालों के आगे का नुकीला हिस्सा, चाकू, आरी, तश्तरी, टोंटीदार कटोरा, तसला एवं घड़े आदि शामिल है।

आठवां अध्याय ‘‘प्राचीन मृण्मूर्तियां’’ है। इस अध्याय में एरण से प्राप्त वृषभ, हाथी, अश्व, श्वान, हिरण, पक्षियों तथा मातृ देवी की मूर्तियां के साथ ही आभूषणों के बारे में भी जानकारी दी गई है। नवां अध्याय है ‘‘प्राचीन सिक्के, मृण्मुहर एवं बांट’’। इस अध्याय में एरण से प्राप्त आहत मुद्राओं की जानकारी है।  इन सिक्कों के अग्रभाग पर नदी, सूर्य, पशुआकृतियां, उज्जयिनी चिन्ह एवं वेदिका वृक्ष आदि का अंकन  है जबकि इन सिक्कों का पृष्ठभाग सादा है। ये सभी आहत सिक्के डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के विभागीय पुरातत्त्व संग्रहालय में संग्रहीत हैं। एरण से ही मिले राजा इन्द्रगुप्त नामांकित सीसे का बाँट तथा गजलक्ष्मी की मृण्मुहर के छायाचित्र हैं।

दसवां अध्याय महत्वपूर्ण प्राचीन अभिलेख का है। इस अध्याय में जिन अभिलेखों की जानकारी दी गई है। वे हैं- गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त का एरण अभिलेख, बुधगुप्त का गरुड़ स्तंभ लेख, तोरमाण कालीन महावाराह मूर्ति अभिलेख, गुप्तकालीन नृवाराह मूर्ति अभिलेख, भानु गुप्तकालीन सती स्तंभ अभिलेख तथा सागर से प्राप्त शंकरगण प्रथम का अभिलेख।

ग्यारहवां अध्याय है ‘‘प्राचीन पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक स्थल: एरण’’। इस अध्याय में एरण के इतिहास एवं पुरातात्विक स्थलों की जानकारी दी गई है।
बारहवें अध्याय में महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिरों की जानकारी है जो सागर जिले में स्थित हैं। जैसे- एरण का विष्णु मंदिर, रहली का सूर्य मंदिर, विनायका का विष्णु मंदिर, पाली का शिव मंदिर, मढ़ पिपरिया का शिव मंदिर, सागर नगर का वृंदावन बाग मंदिर, सागर नगर का ही लक्ष्मी मंदिर तथा रहली का पंढरी नाथ मंदिर।
तेरहवें अध्याय में महत्वपूर्ण प्राचीन प्रतिमाओं का संक्षिप्त विवरण है। जैसे- महाविष्णु, महावाराह, अर्धनारीश्वर, महिषासुर मर्दिनी, सेविकाओं सहित कमलधारिणी, सूर्य, ऋषभनाथ, चतुर्भुजी विष्णु, योगासन विष्णु, शेषशायी विष्णु, लक्ष्मी नारायण, चतुर्भुजी वामन, ब्रह्मा-विष्णु-महेश तथा नवग्रह आदि।

चौदहवां अध्याय है - ‘‘महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दुर्ग’’। इस अध्याय में जिन दुर्गों के बारे में विवरण प्रस्तुत किया गया है वे सभी अपनी ऐतिहासिकता के साथ ही पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। जैसे- धामोनी दुर्ग, राहतगढ़ दुर्ग, गढ़पहरा दुर्ग, रहली दुर्ग, खुरई दुर्ग, सनौधा दुर्ग, सागर दुर्ग तथा सनौधा का झूला पुल।

पंद्रहवां अध्याय अपनी दानवीरता के लिए विख्यात एवं अपनी जमा पूंजी दान करके सागर में विश्वविद्यालय की स्थापना करने वाले डॉक्टर हरीसिंह गौर के व्यक्तित्व को समर्पित है - ‘‘डॉ हरिसिंह गौर एक महान व्यक्तित्व’’। इस अध्याय में डॉक्टर हरीसिंह गौर का अत्यंत संक्षिप्त परिचय तथा उनके कुछ महत्वपूर्ण दुर्लभ छायाचित्र हैं। मेरे विचार से इस अध्याय को और अधिक विस्तार दिए जाने की आवश्यकता थी क्योंकि जिनके सौजन्य से यहां सागर में विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, जिस आधार पर इतिहास एवं प्राचीन भारतीय इतिहास जैसे विभाग स्थापित हो सके उसे महामानव के जीवन के बारे में और अधिक जानकारी इसमें शामिल की जानी चाहिए थी ताकि पाठकों को उनके बारे में विस्तार से जानकारी मिल सके।

सोलहवां अध्याय डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के बारे में तथा सत्रहवां अध्याय विश्वविद्यालय में स्थित विभागीय पुरातत्व संग्रहालय के बारे में है। 

अठारहवां अध्याय जिला पुरातत्व संग्रहालय पर केंद्रित है। यह संग्रहालय पूर्व में लेडी डफरिन हॉस्पिटल के नाम से जाना जाता था और यहां महिला चिकित्सालय स्थित था। आज यह जिला पुरातत्व संग्रहालय का रूप ले चुका है तथा यहां सागर जिले के विभिन्न स्थलों से प्राप्त पुरावशेष संग्रहित हैं। 

उन्नीसवें में अध्याय में ‘‘सागर शहर की महत्वपूर्ण विरासतें’’ नाम से उन स्थलों का एक संक्षिप्त परिचय दिया गया है जो सागर शहर को पहचान देते है। जैसे- लाखा बंजारा तालाब, सूभेदार का बाड़ा, मोराजी का बाड़ा, जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी, डफरिन अस्पताल तथा जामा मस्जिद।

बीसवां अध्याय उपसंहार का है। इस अध्याय में सागर जिले की राजनीतिक स्थिति, सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, धार्मिक स्थिति तथा कला एवं तकनीकि की स्थिति पर दृष्टिपात किया गया है। इक्कीसवें अध्याय में  सहायक ग्रंथ सूची दी गई है।

कुल मिलाकर ‘‘सागर जिले की सांस्कृतिक विरासत” पुस्तक सागर जिले के ऐतिहासिक एवं सांस्कृत वैभव की एक सुंदर झलक प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक के द्वारा सागर जिले के महत्व को बखूबी जाना और पहचाना जा सकता है। इस पुस्तक का संपादन करने वाले इतिहासकार द्वय प्रो. नागेश दुबे एवं प्रो. बी.के. श्रीवास्तव बधाई के पात्र हैं। पुस्तक में छायाचित्रों की प्रचुरता ने इसकी उपादेयता को बढ़ा दिया है। रंगीन छायाचित्र के द्वारा प्रत्येक पाठक उससे संबंधित दिए गए विवरण से सुगमता से जुड़ सकता है तथा उन चित्रों को देखने के बाद वह साक्षात उन स्थानों पर जाने के लिए उत्सुक हो उठेगा। अतः यह पुस्तक पर्यटन को बढ़ावा देने में भी सहायक सिद्ध होगी।
जैसे कि मैंने पहले ही उल्लेख किया कि यह पुस्तक का द्विभाषिक हैं। प्रत्येक विवरण को पहले हिन्दी और फिर अंग्रेजी में प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक का एक और सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष है पुस्तक का मूल्य। सुंदर नैयनाभिराम चित्रों सहित चिकने ग्लेज्ड कागज में प्रकाशित इस हार्डबाउंड पुस्तक का मूल्य मात्र रुपए 200/- रखा गया है जिससे यह हर व्यक्ति के लिए पॉकेट फ्रेंडली साबित होगा। अन्यथा, कई बार अच्छी से अच्छी महत्वपूर्ण जानकारी से पाठक सिर्फ इसलिए वंचित रह जाता है कि पुस्तक का मूल्य बहुत अधिक होता है और वह चाह कर भी उसे खरीद नहीं पाता है। इस दृष्टि से यह पुस्तक न केवल स्वयं के लिए खरीदी जा सकती है बल्कि दूसरों को उपहार में देने के लिए भी उपयुक्त साबित होगी। पुस्तक का मूल्य इतना कम होना निश्चित रूप से संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय मध्य प्रदेश शासन भोपाल के सौजन्य से संभव हो सका है, जिसके लिए संचालनालय भी धन्यवाद का पात्र है।
सागर जिले की सांस्कृतिक विरासत न केवल शोधार्थियों, इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण है अपितु उन लोगों के लिए भी एक गाईड बुक की भांति सहायक होगी जो सागर जिले में पर्यटन करना चाहेंगे।
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