❗️टोंक-टोंक कर उकसाने वालों को हादसे की घटना से सबक लेना चाहिए❗️🙏❗️
🚩 बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
काए बिन्ना, कुंभ नहाबे जा रई के नईं ?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काए कुंभ जा रई के नईं बिन्ना?’’ भैयाजी ने मोए देखत साथ मोसे पूछी।
‘‘बस, आप ई रए गए हते जे पूछबे वारे, ने तो कोनऊं ऐसो ने बचो जोन ने मोसे जे सवाल ने करो होय।’’ मोय भौतई झुंझलाहट भई।
‘‘काय ई पूछे में का हो गओ? हमसे सोई सब जेई पूछ रए।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘जे का बात भई? जो सब कोऊ आप खों लपाड़ा लगाहें सो का आप मोए लपाड़ा जड़ दैहो?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। रामधई मोय भौतई गुस्सा आ रओ हतो।
‘‘तुमें काय को लपाड़ा लगा देबी? औ हम तो ऊंसई पूछ रए हते। तुम फजूल में गुस्सा भई जा रईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कछू फजूल नईं! एक तो मैं ऊंसई जा नईं पा रई, ऊपे से सबई जने पूछ-पूछ के कटे पे उंगरिया टुच्च रए।’’ मैने कई।
‘‘सो, बिगड़ काए रईं? हम सोई कोन जा रए! एक तो मुतकी भीड़ औ ऊपे से ठंडी, कऊं तबीयत बिगर गई सो लेबे के देबे पर जैहें। औ, फेर बा ऊपर वारो सब जानत आए। ऊको पार लगाने हुइए तो बा ऊंसई पार लगा दैहे। तुम ने टेंसन लेओ।’’ भैयाजी ने मोय समझाई।
‘‘सई कै रए आप भैयाजी! अब सब कछू सब के बस में तो नईं रहत।’’ मैंने तनक तसल्ली से कई। काए से के मोए उनकी बात सुन के तनक अच्छो सो लगो।
‘‘देख तो बिन्ना, अपने पुराणन में कित्ती अच्छी-अच्छी किसां कई गई आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोन किसां की कै रए आप?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे जेई कुंभ की किसां खों ले लेओ। कित्ती मजे की किसां आए। के समुन्दर में मंदार पर्बत खों मथानी बनाओ गओ और बासुकी नाग खों रस्सी घांई ऊमें लपेट के समुन्दर को मथबे की कोसिस करी गई। पर बा मंदार पर्बत तनऊं ने हलो। फेर बिष्णु भगवान ने कछुवा को रूप धरो औ बा मंदार पर्बत खों अपने पीठ पे धर लओ। कछुआ की ऊंची पीठ पे धरो पर्वत हलन लगो औ मथानी चलन लगी।’’ भैयाजी किसां सुनान लगे। मोय किसां पता रई, पर मैंने सोची के भैयाजी खों टोंकबे में उने अच्छो ने लगहे। सो उने किसां सुनान दई।
‘‘फेर का भओ के कां तो अमृत पाने के लाने समुन्दर मथो जा रओ हतो, पर उते तो हलाहल बिस निकर आओ। चाए देवता, चाए राच्छस सबरे घबड़ा गए। तब भगवान शिव आगे आए औ उन्ने कई के घबड़ाओ नईं, हम जे बिस पी लेबी। मनो जोन जो बा बिस भगवान शिव के पेट में चलो जातो तो बे लौं मर सकत्ते, सो उन्ने बा बिस अपने गले में रोक लओ। जोन से उनको गले को रंग नीलो पड़ गओ। औ बे तभई से नीलकण्ठ सोई कहान लगे। फेर देवता औ राच्छस हरांे ने मथबो सुरू कर दओ। कछू-कछू औ चीजें बी निकरीं, बाकी फेर अमरित को कलस निकर आओ। अब तो मच गई भगदड़। देवता औ राच्छस दोई में छीन-झपट्टा होन लगो। जा देख के देवता हरों ने इन्द्र के बेटा खों इसारो करो के बा अमरित को कलस ले के उते से दौड़ लगा दे। जयंत ने जेई करो। जा सीन राच्छसन के गुरू शुकराचार्य ने देख लओ औ उन्ने राच्छसन को बताओ के तुम ओरें इते गिचड़ रए औ उते इन्द्र को मोड़ा जयंत अमरित कलस ले के भगो जा रओ। जा सुन के सबरे राच्छस जयंत के पांछू दौड़े। देवता हरें जयंत खों बचाबे दौरे। फेर 12 दिन और 12 रातें देवताओं औ राच्छसों में खींब लड़ाई भई। जेई भागा‘-दौड़ी में कलस से अमरित की कछू बूंदें धरती पे गिरीं। पैली बूंद प्रयाग में गिरी, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी उज्जैन में औ चौथी नासिक में। जेई से उते हर बारा बरस में कुंभ को स्नान करो जात आए।’’ भैयाजी ने पूरी किसां सुना दई।
‘‘सई में कित्ती नोनी किसां आए जे। कैसो भओ हुइए जबें समुन्दर मथों गओ हुइए?’’ मैंने कई।
‘‘गजबई रओ हुइए। जा धरती तो मनो पूरी हल गई रई हुइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! मनो आगे की किसां बी कम नोईं। का भओ के बिष्णु ने सोची के ऐसे तो कोऊ खों अमरित ने मिल पाहे सो कोनऊं रास्ता निकारो जाए। जा सोच के बिष्णु भगवान ने मोहिनी को रूप धरो औ अमृत भए उते प्रकट हो गए। राच्छसन ने मोहिनी खों देखों तो बे देखतई रए गए। तब मोहिनी ने कई के तुम सब देवता औ राच्छस अलग-अलग लेन में बैठ जाओ। हम तुम दोई में अमरित बांटें दे रए। दोई पार्टी पंगत घांई दो लेन में बैठ गई। मोहिनी ने राच्छसन खों मोह लओ औ उते देवताओं खों अमरित बांटन लगी। उते स्वरभानु नांव खों एक राच्छस रओ जोन चोरी से देवताओं वारी लेन में जा के बैठ गओ औ अमरित पा गओ। सूरज औ चंदा ने ऊको पैचान लओ औ हल्ला मचा दओ। बिष्णु ने तुरतईं अपनो सुदर्सन चक्र चलाओ औ बा स्वरभानु के दो टुकड़ा कर दए। बाकी ऊनंे तो पी लओ तो अमरित, सो बा मर तो सकत नई तो। सो बा रहू औ केतु बन के जियत रओ। मनो ऊको जा बुरौ लगो हतो के सूरज और चंदा ने ऊको भेद खोल दओ रओ, सो बा तभई से ग्रहन बन के दोई खों परेसान करत रैत आए।’’ मैंने सोई आगे की किसां सुना दईं।
‘‘सई में कित्ती अच्छी-अच्छी किसां आए अपने पुराणन में। मनो आजकाल के बच्चा जे सब पढ़ोबोई नईं चात आएं। उने तो जे सब फिजूल की किसां लगत आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! मनो भैयाजी, जे सब फिजूल की किसां नोंई। इने सुने से कल्पना करबे की सक्ति बढ़त आए। अपन ने एक दूसरे खों किसां सुनाई, जब आप सुना रए हते तो मोय दिखा रओ तो के समुन्दर खों कैसे मथो गऔ हुइए। औ जब मैं सुना रई हती तो आपको मोहिनी दिखात रई हुइए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई में बा मोहिनी कित्ती सुंदर रई हुइए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘को आ जे मोहिनी? कोन की बात कर रए आप ओरें?’’ तभई भौजी आ गईं औ उन्ने भैयाजी के मों से मोहिनी की तारीफें सुन लईं।
‘‘अरे कछू नईं, बा तो हम ओरें...’’ भैयाजी ने बताबो चाहो के हम ओरे पुरान की किसां कै-सुन रए हते। पर भौजी बमक परीं।
‘‘हऔ, हमें सब पतो आए आप के लच्छन। बिन्ना से मोहिनी को पतो पूछ रए हते न?’’ भौजी बमकत भई बोलीं।
‘‘अरे नईं भौजी, हम ओरें तो भगवान बिष्णु के मोहिनी रूप की किसां कै रए हते।’’ मैंने तुरतईं कई।
‘‘सई में?’’ भौजी खों पूरो यकीन तो ने भओ मगर मोरे कहे पे तनक भरोसो सो भओ।
‘‘रामधई भौजी! पैले भैयाजी ने मोए समुद्र मंथन की किसां सुनाई औ फेर मैंने उने मोहिनी बनके बिष्णु भगवान के अमरित बांटबे की किसां सुनाई। सो भैया बोई मोहिनी रूप की बात कर रए हते।’’ मैंने भैयाजी खों बचाओ, ने तो बे खाली-पीली में बिंधे जा रए हते।
‘‘चलो तुम कै रईं, सो मान लई।’’ भौजी मुस्क्याती भई बोलीं। फेर उन्ने बोई बात पूछ लई जोन उने नई पूछने चाइए ती। उन्ने मोसे पूछी,’’काए बिन्ना तुम नईं जा रई कुंभ में नहाबे के लाने।’’
उनको जो पूछबो सुन के मोरी औ भैयाजी की हंसी फूट परी। जां से चले ते उतई आन पौंचे।
‘‘भौजी खों हमाई हंसी की समझ ने परी औ बे दूसरी बात करन लगीं।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में, के कुंभ जाने होय सो जरूर जाइयो, मनो ने जा पा रए हो तो दुखी ने होइयो। काए से के मन चंगा, सो कठौती में गंगा! काय सई आए के नईं?
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