बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
को तै करहे ई राजनीति में का जायज औ का नाजायज?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘का सोच रए भैयाजी?’’ मैंने देखो के भैयाजी मूंड़ पे हाथ धरे बैठे हते।
‘‘हम जा सोच रए के साल बदल गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, बा तो बदल गओ। औ अब तो आदो मइना गुजर गओ। ईमें कछू सोचबे को का?’’मैंने भैयाजी से पूछी।
‘सोचबे को जे के साल बदल गओ। 2024 से 2025 लग गओ, मनो हाल बदलो का?’’ भैयाजी सोचत भए बोले।
‘‘हाल का बदल जैहे? खाली कलैण्डर बदलो आए। पर की साल को उतार के नओ लटका दओ। जेई पंचांग के संगे करो। मनो पंचांग तो अबे पुरानो सोई धर लओ आए। काय से के कोनऊं पुरानी तिथी-मिथी देखबे की जरूरत पर जाए तो कहां ढूंढत फिरबी?’’मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जेई सो हम कै रए के कलैण्डर बदलवे से कछू नईं बदलो। सगरी प्राबलम जां के तां धरीं।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘कोन सी प्राब्लम?’’ मैंने पूछी।
‘‘एक हो तो गिनाएं, बाकी तुमई देख लेओ के ने तो सिटी की रोडन खों आवारा पशुअन से छुटकारो मिलो औ ने रोडें सई से बनीं। अबे अग्निवीर की भर्ती चल रई हती, सो ऊमें भिंड-मुरैना के मुतके लड़का आए रहे। आजकाल तो चार ठो जांगा के लाने चार से चौदह हजार मोड़ा आ ठाड़े होत जात आएं। ई ठंडी में उन ओरन ने खींब दौड़े लगाईं। जे तो कओ अच्छो रओ के कछू दान करबे वारन ने उनकी मुफत में पंगत करा दई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘तो सई तो करो। अखीर बे ओरें बी तो कोनऊं के बच्चा आएं। उनके मताई-बाप हरों खों तनक तो सहूरी भई हुइए।’’ मैंने कई।
‘‘काए, तुम का सोचत आओ जे अग्निवीर के बारे में? जे भर्ती होन चाइए के नईं?’’ भैयाजी ने अचानक मोसे पूछ लओ।
‘‘हमाए बिचार में तो जो सई आए। कुल्ल देसों में सो सैनिक शिक्षा सबको लेने परत आए, फेर बे चाए बड़े सेलीबिरटी होंए चाए कोनऊं पब्लिक होए। सो हमाई जान में तो जे सई आए। ईंसे जे जो आजकाल सबसे ज्यादा जो बिगड़े जा राए अपने मोड़ा हरें, उनमें कछू तमीज आहे।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ सई कई। आजकाल अपने ज्वान हरें दो टाईप के भए जा रए। एक तो मोबाईल ले के बैठे रैबे वारे, जोन खों हाथ-गोड़े हलाबे में पहाड़ टूटत आएं। उनसे बाप-मताई कछू काम करबै की कैत आएं सो बे ठन्न से कै दैत आएं के, हमाए पास अबे टेम नईयां!’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ दूसरे टाईप के?’’ मैंने पूछी।
‘‘दूसरे टाईप के बे ओरे आएं जोन खों अपनी बौडी बनाबे से फुरसत नईयां। कऊं जिम जैहें औ कऊं बो का कहाऊत आए... हौ, बा मैंगी-मैंगी प्रोटीन ड्रिंक पीहें। जो उनसे कओ के भैया हरों अम्मा ने हींग के बघार वारी अच्छी दार बनाई आए, तनक बा खा लेओ, सो नांक-मों बनन लगत आएं। उनखों दार को प्रोटीन नईं पुसात। औ जो कोनऊं काम करबे की कओ सो उने सोसल मीडिया पे अपनी रील बनाबे औ पैलबे से फरसत नइयां। सई में ऐसे मोड़ा हरों खो तो कछू टेम के लाने फौज में भेजो जाने चाइए। फेर जां रैहें, तरीका से रैहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बाकी एक बात तो आए भैयाजी!’’मैंने कई औ तनक सस्पेंस बनाबे खों इत्तई बोल के चुप रै गई।
‘‘कोन सी बात?’’ भैयाजी पूछे बिगर नईं रै सके।
‘‘कछू तो बदलाव दिखान लगो आए जे नए साल में।’’ मैंने कई।
‘‘तुमें कोन सो बदलाव दिखान लगे?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘आपने नईं देखो का?’’ मैंने पूछी।
‘‘कां? हमें तो कछू नओ नई दिखानो।’’ भैयाजी बोले।
‘ऐल्लो, मने आप अपडेट नई रैत आओ!’’ मैंने तनक चिकोटी-सी लई।
‘‘काए की अपडेट? अब बुझौव्वल ने बुझाओ, इते कोनऊं केबीसी नईं हो रओ।’’ भैयाजी झुंझलात भए बोले।
‘‘कोन ने कई के इते केबीसी हो रओ? मैं तो उन खबरन की कै रई जोन में कओ गओ के अपने इते की राजनीति में नई खेप आ गई।’’ मैंने कई।
‘‘राजनीति में नईं खेप? जो सब का कै रईं, हमें तो कछू समझ नईं पर रओ।’’ भैयाजी अपनो मूंड़ खुजाउन लगे।
‘‘नई खेप मने अपने नेता हरन के बाल-बच्चा अब राजनीति के मैदान में कूंद परे आएं।’’ मैंने तनक और साफ कर के बताई।
‘‘सो ईमें नओ का आए? अपने शिवराज भैया मने अपने पुराने वारे मुख्यमंत्री के बेटा जू सो पैलेई आ चुके आएं। उन्ने चुनाव में प्रचार बी करो रओ और भषन-माषन बी दओ रओ।’’ भैयाजी मोरे सस्पेंस की हवा निकारत भए बोले।
‘‘मैं उनकी नईं कै रई। बे सो पैले आ गए। मनो अब अपने दूसरे नेता हरों के बच्चा हरें बी उद्घाटन-मुद्घाअन में दिखान लगे। मने अब जे साफ दिखान लगो के उनके बच्चा हरों में से कोन खों लांच करो जा रओ औ कोन खों बैकफुट में रखो गओ आए।’’ मैंने भैयाजी खों तनक औ समझाई।
‘अच्छा हऔ, हम समझ गए के तुम कोन-कोन के लाने कै रईं। मनो, सुनो बिन्ना! अब तुमई सोचो के डाक्टर अपने बच्चा खों डाॅक्टर बनाबो चात आए, कलेक्अर अपने बच्चा खों कलेक्टर बनाओ चात आए, एक्टर अपने बच्चा खों एक्टर बनाबो चात आए तो जो नेता अपने बच्चा खों नेता बनाबे की सोचें सो ईमें बुराई का?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘बुराई कछु नईयां। काय से जोन लड़कोरे से राजनीति के अंगना में गुलली-डंडा खेल रए होंए उनके लाने उते काम करबो आसान रैहे। हम तो कै रए के ऐसे होबे में कोनऊं बुराई नइयां।’’मैंने कई।
‘‘सो फेर ईमें बतकाव करबे की का आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘बतकाव करबे की जे आए के जो उनके अपने बच्चा राजनीति में आएं सो बा जनसेवा कहाई, कहाई के नईं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ तो? ईमें का?’’
‘‘ईमें जे के बा कहनात आए ने के जो ‘अपनो घर कांच को बनो होए, सो दूसरों के घर पे पथरा नईं मैकों जात आए’, सो दूसरन के बंसबाद पे बतकाव करत समै जे सोई ध्यान रखो चाइए।’’ मैंने कई।
‘‘तुम तो गजबई कर रईं बिन्ना! ऐसो कैत भए तुमें डर नईं लगत?’’ भैयाजी चैंक परे।
‘‘काय को डर? हम का गलत कई? जो गलत कई होय सो कओ आप!’’ मैंने भैयाजी खों चैलेंज करो।
‘‘नईं, कै तो तुम सांची रईं, मगर बिन्ना कभऊं-कभऊं सांची बात कोऊं-कोऊं खों करई लगन लगत आए। सो सोच के बोलो करो।’’ भैयाजी ने मोए समझाओ।
‘‘आपने बा कहनात सोई सुनी हुइए के साहित्य समाज को दरपन होत आए, ओ मैं ठैरी साहित्य वारी। सो, दरपन दिखाए बिगर मोए सोई चैन कां परहे। औ फेर गलत का कै रई? मैं तो जे कै रई के जा राजनीति के मैदान में खेलो औ खेलन देओ। जो तगड़ो हुइए बा जीत जैहे। होन देओ खुल के नूरा कुश्ती। सई की टांग खैंचो, झूठी नईं।’’ मैंने कई।
‘‘अब जेई पे तुम सोई बा कैनात याद कर लेओ के ‘प्यार औ लड़ाई में सब जायज रैत आए’। राजनीति में अपनो चित्त, सो चित्त रैत आए औ दूसरो चित्त बी पट्ट कओ जात आए।’’भैयाजी ने अब मोए समझाओ।
‘‘ठीक कई भैयाजी आपने।’’ मोए भैयाजी की कई मानने परी। बे सोई सांची कै रए हते।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में, को तै करहे ई राजनीति में का जायज औ नाजायज?
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