"मनुष्य का संगीत से संबंध उसे समय से ही जुड़ जाता है जब उसे शब्द स्वर या राग का भी ज्ञान नहीं होता यानी शैशवावस्था में मां की लोरी के साथ ही संगीत जीवन में प्रवेश कर जाता है और मां की थपकी प्रथम ताल वाद्य होती है जो सुरताल से मनुष्य के अवचेतन को जोड़ देती है।" बतौर नाट्य समीक्षक मैंने यह भी कहा कि " कुछ नाट्य संस्थाएं छोटे शहरों में मंचन करते समय यह सोचकर लाइट इफेक्ट या साउंड इफेक्ट में लापरवाही कर देती हैं कि वहां छोटी-मोटी कमी को भला कौन समझेगा? जबकि उसी नाटक को जब वे दिल्ली या किसी बड़े शहर के थिएटर में करते हैं तो पूरी तरह से चौकन्ने होकर कि कहीं कोई भूल-चूक न रह जाए। यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रही हूं। इस प्रकार की लापरवाही रंगमंच के लिए उचित नहीं है। क्योंकि नाटक चाहे जहां मंचित किया जाए लाइट और साउंड इफेक्ट दोनों उसमें प्रभाव उत्पन्न करने लिए जरूरी होते हैं।" बतौर अतिथि वक्ता मैंने अपने विचार रखे।
🚩 अवसर था दिव्य रंग एकता वेलफेयर फाउंडेशन के द्वारा स्व. श्री अशोक गोपीचंद रायकवार जी की स्मृति में "दिव्य रंग अशोक" का तीन दिवसीय नाट्य समारोह के आरंभ का। संगोष्ठी का विषय था- “नाट्य संगीत की रचना प्रक्रिया: चर्चा एवं विश्लेषण”।
🚩कार्यक्रम की अध्यक्षता की दिल्ली से पधारे स्वतंत्र थिएटर निदेशक, डिजाइनर एवं अभिनेता अवतार साहनी जी ने। मेरे साथी वक्ता थे भोपाल से आईं संगीत नाटक अकादमी अवार्डी अंजना पुरी जी, रंग विदूषक भोपाल के अजय कुमार जी, नई दिल्ली की नाट्य समीक्षक ममता धवन जी, तथा सागर के रंगकर्मी एवं ईएमआरसी के डायरेक्टर भाई पंकज तिवारी जी।
🚩संगोष्ठी का संचालन किया डॉ. अश्विनी सागर रायकवार ने।
🚩उल्लेखनीय है कि इस आयोजन को करके अपने स्वर्गीय पिताश्री के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का विशिष्ट कार्य किया अग्रज स्व. अशोक गोपीचंद रैकवार जी की पुत्री अनामिका सागर, पुत्र अश्विनी सागर तथा उनके दामाद आशुतोष बनर्जी ने। यह तीनों भी रंग कर्म से सघनता से जुड़े हुए हैं। तीन दिवसीय समारोह में एक नाटक का निर्देशन स्वयं अनामिका सागर ने किया है वह एक संवेदनशील अभिनेत्री भी है। ...
...और मेरी प्यारी भतीजी भी 🌹 😊🌹
(26.03.2025)
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