बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
------------------------
बतकाव बिन्ना की
तनक सोचियो के अपने लाने जरूरी का आए?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काय भौजी आज तो भुनसारे ठंड सी लग रई हती।’’ मैने भौजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना! जेई से तो उठो नई जा रओ तो। पल्ली बड़ी प्यारी लग रई हती।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सो आप कित्ते बजे उठीं?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘साढ़े छः लौं तो उठनेई परत आए, ने तो घर के काम-धाम कैसे हुइएं?’’ भौजी ने कई।
‘‘सई कई भौजी! मोय सोई छः - साढ़े छः लौं बिस्तर छोड़ने परत आए, ने तो सबरे काम लेट होन लगत आएं। बाकी आप तो भैयाजी खों उठा दओ करो औ खुद तनक सो लेओ करो। काय से के फेर दिन भर तो आप खों लगे रैने परत आए।’’ मैंने भौजी खों भैयाजी विरोधी सलाह दई।
‘‘बे तुमाए भैयाजी उठहें? बा बी हमसे पैले? राम को नांव लेओ। बे तो औ पल्ली मों से ढांप के पर जात आएं। जीसें हम जो बोलें बी तो उने सुने ना परे।’’ भौजी हंसत भई बोलीं।
‘‘काय, तुम ओरें हमाई बुराई कर रईं! तुम ओरन खों सुभै से औ कोनऊं टाॅपिक ने मिलो?’’ भैयाजी आंखें मींड़त भए आ टपके।
‘‘हऔ, कर रए हते बुराई। आप काम ई ऐसो करत आओ।’’ मैंने दबंगई दिखात भई कई।
‘‘हमने का कर दओ?’’ भैयाजी चौंकत भए बोले।
‘‘का कर दओ? आप सोउत रैत आओ औ मोरी भौजी खों संकारे से अकेले उठ के सगरे काम-काज करने परत आए, जो का सई आए?’’ मैंने भैयाजी खों तनक हड़काओ।
‘‘का करो जाए बिन्ना! भुनसारे उठबे की बेरा में इत्ती ठंडी सी लगत आए के पल्ली से बाहरे निकरबे को जी नईं होत। हम तो रोज सोचत आएं के संकारे से इनको हाथ बंटा दए करें, मनो उठत बेरा सब धरो रै जात आए। सो, जेई लाने तुमाई भौजी तुमसे हमाई शिकायत लगा रई हतीं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अरे नईं! उन्ने तो कछू नई कई। बा तो मैंनेई उनसे कई के आप खों जगा के उने तनक सो लेने चाइए।’’ मैंने भैयाजी से ठक्का-ठाई बोल दई। मैं का डरात हौं उनसे?
‘‘कै तो तुम सई रईं, पर बिन्ना देख तो जे मौसम खों का हो गओ। दिन में धूप चटकत आए, मनो संझा होत-होत ठंडी सी हवा चलन लगत आए औ रात को ठंडी सी लगन लगत आए। पैले तो होरी के संगे पूरी ठंड चली जात्ती। मनो अब तो जा मौसम सोई नेतन घांई पलटी खान लगो आए। कभऊं गरमी की झलकी दिखान लगत आए तो कभऊं पलट के ठंडी ला पटकत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! बाकी अब उत्ती जड़कारे वारी ठंडी ने परहे। जे तो जात-जात की ठंडी आए। औ भैयाजी, आप जे ने भूलो के जे सबरे क्लाईमेट चेंज को असर आए। होत का रओ के पैले मुतके पेड़ रए, सो बे टेम्प्रेचर खों ठीक बनाए रखत्ते। सूरज की किरनों को सोई अपनी छायरे से रोके रैत्ते। ईसें जमीन को पानी ज्यादा ना उड़त्तो। अब का होत आए के पेड़ सो हमने कटा डारे। सो अब सूरज सूदे धरती खों गरम करत रैत आए।’’ मैंने भैया जी से कई।
‘‘बा गरमी तो हमें समझ में आई, बाकी जे ठंडी लौट-लौट के काय आ रई?’’ भैयाजी पूछन लगे।
‘‘ईसें जे ठंडी लौट-लौट के आ रई आए, काए से के मौसम को क्रम बदलत जा रओ आए। ई दफा देखो आप के घनो जाड़ो कित्तो कम परो?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, बात तो सई आए। ई जड़कारे में तो मुतके गरम कपड़ा खों हवा लौं नई लग पाई। बे ऊंसई के ऊंसई आलमारी में टंगे रए गए। हमाई एक भौतई नोनी जर्किन आए। बा हमें हमाए एक दोस्त ने दई रई। बा ऊको हमाए लाने लंदन से लाओ रओ। हमने ई बार ऊको पेटी से निकरवा के आलमारी में टंगवा दओ रओ के कड़ाके की ठंडी में ऊको पैन्ह के फिरबी, मगर इत्ती ठंडी परी नईं के ऊको पैन्हबे को नंबर लगतो। बा ऊंसई की ऊंसई छूंछी सी परों वापस पेटी में रखवा दई।’’ भैयाजी दुखी होत भए बोले।
‘‘जेई तो भैयाजी, अपन ओरें का आए के बेवकूफन घांई फालतू के चक्करन में परे रैत आएं औ क्लाईमेट पे ध्यान देबो जरूरी नईं लगत आए।’’ मैंने कई।
‘‘सई कई बिन्ना! आजकाल देखो बा औरंगजेब की कबर के लाने कित्ती मार-कुटव्वल हो रई। अरे, बा तो कब को मर-खप गओ। ऊको तो शिवाजी महराज नेई मुतको मजा चखा दओ रओ। औ अब बोई औरंगजेब की कबर के लाने आज खून बहाओ जा रओ। अरे, गड़ो तो रैन देओ। ध्यान ने देओ ऊकी तरफी।’’ भौजी ने बड़ी पते की बात कई।
‘‘सई कई भौजी! ई औरंगजेब के मामले पे मोय तो गोपाल भार्गव जू को कैबो बड़ो अच्छो लगो। बे कभऊं-कभऊं बड़े पते की बात बोल जात आएं।’’ मैंने कई।
‘‘का कई उन्ने?’’ भैयाजी पूछ बैठे।
‘‘आपने नई सुनी? उनकी तो वीडियो वायरल होत रई।’’ मैंने कई।
‘‘नईं, हम ने सुन पाए। का कई उन्ने?’’ भैयाजी ने फेर के पूछी।
‘‘उनसे पत्रकारन ने पूछी के औरंगजेब की कबर पे आपको का कैबो आए? सो बे बोले के जे फालतू की बातन में का धरो। ईसे तो अच्छो के विकास की बात करी जाए।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘कई तो सांची उन्ने! पर उनकी कोऊ समझे, सुने तब तो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘राजनीति में तो बरहमेस क्लाईमेट चेंज होत रैत आए।’’ भौजी हंसत भई बोलीं।
‘‘आपने बिलकुल सई कई भौजी!’’ मोय भौजी की बात भौतई अच्छी लगी।
‘‘अरे, औ नईं तो का? जैसे नेता ठैरे ऊंसई मौसम होत जा रओ। कब का हुइए, कछू समझ नईं परत। औ मुतके नेता हरें तो ऐसे आएं के टीवी पे अपनी शकल दिखाबे के लाने पैले कछू बी अल्ल-गल्ल बोल देत आएं फेर कैत आएं के हमाई बात खों मीडिया ने तोड़-मरोड़ दओ। औ फेर बी बात ने बने तो माफी मांग के पल्लो झाड़ लेत आएं। मनो ई सब में बे टीवी पे मुतको फुटेज पा जात आएं।’’ भौजी ने कई।
‘‘सई में! जेई टाईप से तो बा एक मेडम जी ने तो हद्दई कर दई। उन्ने तो औरंगजेब की तुलना परशुराम जू से कर दई। चार दिनां सबरे टीवी चैनल वारे उनई पे बतकाव करत फिरत रए। फेर जब मेडम जी ने देखो के बात बिगर रई आए, सो उन्ने माफी मांग लई के हमें पतो ने हतो। अरे, मेडम जी, जब आप खों पतो ने हतो तो काय खों मों खोलो? हमें सोई लगत आए के जे पब्लीसिटी के लाने गरम कंडा पे अपनी बाटियां सेंकन लगत आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई तो आए। जे सब जरूरी बातन से भटकाबे को फंडा आए। अब अभई देख लेओ, अपन ओरें सोई क्लाईमेट में होत जा रए बदलाव की चिंता करबे के बजाए बोई गुंतारा ले के बैठ गए के कोन ने का कई।’’ मैंने भैयाजी खों टोकों।
‘‘सई कई बिन्ना! ने अपन नेताओं खों सुधार पा रए औ ने मौसम खों सुधार पा रए। पेड़े कटत जा रए, कुआ सुखात जा रए, खेतन पे प्लाटिंग होत जा रई, पहड़ियां खुदत जा रईं, जंगल औ खेत मिटत जा रए औ बस्तियां बढ़त जा रईं। रोजीना पीबे को पानी मिले ने मिले पर जागां-जागां फौब्बारा औ झरना चलाए जा रए। जेई प्रशासन पब्लिक खों तो उपदेस देत आए के पानी बचाओ औ खुदई ऐसो-ऐसो काम करत आए के जीमें पानी की बरबादी होत आए। अरे, जे दुबई नोंई, जे बुंदेलखंड आए, इते पानी को प्रबंधन इत्तो अच्छो कभऊं ने रओ के गरमी में पानी की परेसानी ने हो पाए। अभई अप्रैल आत-आत देख लइयो के का हुइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कई भैयाजी! आपने बिलकुल सई कई के ने अपन नेताओं खों सुधार पा रए औ ने मौसम खों सुधार पा रए। सो जो कछू हो रओ ऊको झेलनई परहे।’’ मैंने कई।
‘‘चलो हो गई मुतकी बतकाव, अब तुम दोई जने हमाए संगे चलो औ तनक क्यारियन की सफाई कर देओ, हमें उते पुदीना लगाने। गरमी में पुदीना की चटनी औ पुदीना की शरबत लू ने लगन दैहे।’’ भौजी हम ओरन खों टोंकत भईं बोलीं।
‘‘तुमाई भौजी के रैत भए क्लाईमेट चेज की फिकर करबे की जरूरत नईयां! जे ऊको असर ने परन दैहें।’’ भैयाजी हंसत भए बोले। भौजी औ मैं सोई हंस परी।
बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के क्लाईमेट मे आत जा रए बदलाव पे सोचबो जरूरी आए, के फालतू की बातन पे टेम खोटो करबो जरूरी आए?
---------------------------
#बतकावबिन्नाकी #डॉसुश्रीशरदसिंह #बुंदेली #batkavbinnaki #bundeli #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat
No comments:
Post a Comment