"रांगेय राघव की संवेदनाओं को समझने का प्रवेश द्वार है उनका रिपोर्ताज़ “तूफानों के बीच”। रांगेय राघव का रिपोर्ताज़ “ तूफानों के बीच” उनके कथेत्तर साहित्य कि वह निधि है जो हिंदी साहित्य के कथेत्तर साहित्य को समृद्ध करती है। यदि रांगेय राघव की संवेदनाओं को भली-भांति समझना है तो इस रिपोर्ताज को पढ़ना जरूरी है। इससे होकर गुजरने के बाद उनके उपन्यास तथा अन्य कथा साहित्य की संवेदनात्मकता और अधिक निकट महसूस होती है। यदि शिल्प की दृष्टि से देखा जाए तो इसे रिपोर्ताज़ लिखने वालों के लिए एक “गाइड बुक” भी कहा जा सकता है।" रांगेय राघव के कथेत्तर साहित्य के अंतर्गत उनके रिपोर्ताज़ पर व्याख्यान देते हुए मैंने कहा।
🚩 अवसर था डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग द्वारा आयोजित "इतिहास कथाश्रित हिन्दी कथा लेखन और रांगेय राघव का अवदान" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र का। जिसकी अध्यक्षता की हिंदी विभाग की प्रोफेसर एवं डीन प्रो. चंदा बेन जी। मुख्य अतिथि थे बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. बहादुर सिंह परमार जी। मेरे साथी वक्ता थे हिंदी विभाग के डॉ. संजय वायनाड तथा डॉ. सुजाता मिश्र। कुशल संचालन किया डॉ अरविंद जी ने।
🚩 इस अवसर पर मैंने अपना बुंदेली गजल संग्रह "सांची कै रए सुनो, रामधई" की प्रति डॉ श्याम सुंदर दुबे जी को सादर भेंट की।
🚩 सत्र के अंतिम चरण में डॉ बहादुर सिंह परमार जी द्वारा संपादित बुंदेली बसंत पत्रिका का लोकार्पण किया गया।
🚩 सत्र में हटा मध्य प्रदेश से पधारे संस्कृतिविद डॉ. श्याम सुंदर दुबे जी उल्लेखनीय उपस्थिति रही। साथ ही शहर के साहित्यकारों में डॉ. गजाधर सागर जी टीकाराम त्रिपाठी जी की विशेष उपस्थिति रही। हिंदी विभाग के छात्रों शोध छात्रों एवं प्राध्यापकों की उपस्थिति में सत्र को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया।
🚩 इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के रूप में मुझे आमंत्रित करने के लिए मैं अत्यंत आभारी हूं हिंदी एवं संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी जी की, डॉ राजेंद्र यादव जी की एवं डॉक्टर हिमांशु कुमार जी की 🌹🙏🌹
🔷 छायाचित्रों के लिए आभारी हूं प्रिय भाई माधव चंद्र चंदेल जी की। 🙏😊🙏
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