Thursday, March 6, 2025

बतकाव बिन्ना की | याद राखियो ! हमईं गणेश कुंवरि आएं औ हमईं लछमीबाई | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
याद राखियो ! हमईं गणेश कुंवरि आएं औ हमईं लछमीबाई
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
         ई दफा भैया औ भौजी से बतकाव की जांगा सूदे आपई ओरन से बतकाव करबे को जी चा रओ। ऊपे बी अपनी बैनो औ बिन्ना हरों से। बाकी भैया हरें सोई ईमें शामिल रहैं। उनको जानबो तो और ई जरूरी आए। का आए के 08 मार्च को होत आए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, सो ई दिनां सबई जने लुगाइयन की भौतई बड़वारी करत आएं। करबो बी चाइए, काए से के लुगाइयां कोनऊं से कम नोंईं। लुगाइयन के बारे में चरचा करत समै सब ओरें उनको धरम-करम वारो घरेलू रूप खों पैले याद रखत आएं। सई बी आए। ई समाज में सबसे ज्यादा धरम-करम करबे वारो कोनऊं होत आए तो बा लुगाइयां होत आएं। सबसे ज्यादा व्रत रखत आएं। सबसे ज्यादा कथा सुनत आएं औ सबसे ज्यादा भक्ति करत आएं। उनकी भक्ति से तो देवता सोई उनको कैबो टार ने पात आएं। जो भरोसो ने हो रओ होय तो तनक ओरछा के रामराजा खों याद कर लेओ।
ओरछा की रानी रईं गणेश कुंवरि। बे बड़ी भक्त रईं रामजी की। बे अजोध्या जात रैत्तीं रामलला के दरसन करबे खों। ऐसे समै पे उनको लगत्तो के हम तो चाए जब अजोध्या जा सकत आएं पर हमाई परजा तो रामलला के दरसन नईं कर पाउत आए, अच्छो रैतो के रामलला ओरछा में बिराजन लगते। जे रानी के मन में बिचार आत रैत्ते। सो रानी रामलला से बिनती करती रैत्तीं के आप हमाए ओरछा में आन बिराजो, जीसें हमाई परजा सोई रोजीना आपके दरसन कर सके। रानी की जे इच्छा रामलला ने सुन लई। सो, एक बेरा जब बे अजोघ्या में हतीं तो रात को उनको सपना दिखो के रामलला खुदई प्रकट हो के उनसे कै रए के भुनसारे जबे तुम सरयू में नहाबे खों जाहो तो तुमें उते हमाई मूरत मिलहे। तुम ऊको अपने संगे ओरछा ले जइयो औ उते हमें पधरा दइयो। संगे उन्ने एक ठइयां चेतावनी सोई दई के तुम हमें जां पैले बिठा देहो हम उतई बैठ जाबी, फेर हम उते से न उठबी, जे जाने रइयो। इत्तो बोल के रामलला चले गए औ रानी गणेश कुंवरि की नींद खुल गई। उन्ने बाहरे झांक के देखो के भुनसारो होबे वारो आए। सो उन्ने सबसे पैले तो एक हरकारो दौड़ाओ ओरछा के लाने के उते रामलला के लाने बनवाओ जा रओ मंदर में सबरी तैयारी कर लई जाए औ खुद बे नहाबे खों निकर परीं। सरयू में डुबकी लगात सात उने रामलला की मूरत दिखानीं। बे बड़ी खुस भईं। काय से के उनको सपना सच हो रओ तो। उन्ने खुसी-खुसी मूरत नदी से निकरवाई औ ऊको संगे ले के ओरछा के लाने निकर परीं। 
जबे रानी गणेश कंुवरि ओरछा पौंचीं तो पतो परो के मंदर में कछू काम रै गओ आए। संगे पंडज्जी ने कई के अब रात हो गई आए सो मंदर में रामलला खों संकारे ई पधराओ जा सकत आए। कछू उपाय ने देख के रानी ने रामलला की मूरत खों रात भर के लाने अपने महल में पधरा दओ। जेई तो रामलला की मरजी हती। सो, ईके बाद रामलला रानी के सपने में प्रकट भए औ उन्ने रानी खों याद कराओ के हमने पैलई कई हती के हमें जां पैले पधरा दओ जैहे हम हमेसा उतई रैहें। सो अब बा तुमाओ मंदर हमाए काम को नइयां। ऊमें तुम कोनऊं औ को पधराइयो, हम तो तुमाए महल में रैबी। रानी ने जा बात सबई खों बताई औ फेर विधि-विधान से रामलला खों महल में पधरा दओ गओ। तभई से उनें ‘‘रामराजा’’ कहो जाने लगो। 
मनो जो किसां बताबे को मतलब जे रओ के लुगाइयन खों जे याद रखो चाइए के उनमें सोई रानी गणेश कुंवरि घांई भक्ति रैत आए। बे चाएं तो भगवान खों अपने इते ला सकत आएं। जरूरत का आए के खुद पे भरोसो राखबे की। अपनी भक्ति पे भरोसो होय तो कोनऊं फजूल के बाबा-ढाबा के चक्कर में परबे की जरूरत नोंईं। काय से के लुगाइयन की भक्ति की भावना खों देख के फरजी बाबा हरें उनको फायदा उठान लगत आएं। सो लुगाइयन खों अपनी भक्ति की ताकत खों याद रखो चाइए।      
जित्ती भक्ति में आगूं उत्तई बहादुरी में आगूं। गांव की लुगाइयन खों देखो, बे आज बी एक ठइयां हंसिया ने तो कुल्हारी ले के हारें निकर परत आएं। फेर बे ने तो चार पांव के जानवर से डरात आएं औ ने दो पांव के जानवर से। बा तो शहर की लुगाइयन खों तनक गलत समझा दओ गओ के पढ़ी-लिखीं लुगाइयन खों मारा-कूटी नईं करो चाइए। अरे, काय नईं करो चाइए? ठीक आए के बिना बात के नईं करो चाइए, मनो कोनऊं उनके संगे बदसलूकी करे तो चप्पलें उतार के सूंट दओ जाने चाइए। जा मारा-कूटी जायज आए। जा सोई ठीक आए के पैले पुलिस खों खबर करी जाए, मनो जो इत्तो टेम ने होय तो लछमी बाई, झलकारी बाई औ अवंती बाई खों याद करत भए टूट परो ऊ छेड़बे वारे पे। रामधई, उते ठाड़े सबरे संग देन लगहें। होत का आए के शहर की मोड़ी होत तो बहादुर आए मगर ऊको सिखा दओ जात आए के जो कोनऊं छेड़ा-छाड़ी करे तो मूंड़ झुका के उते से कढ़ जाओ। ऊसे पंगा ने लेओ। जब के जेई में ऐसे लड़ई लफंगा हरें शेर बनत फिरत आएं। सो ऐसे टेम पे लुगाइयां डरें नईं। तुरतईं 100 नंबर पे डायल करें, नें तों महिला थाना को नंबर होय तो ऊपे घंटी मारें। औ अब तो एक ठइयां एप्प सोई बन गओ आए जीमें छेड़बे वारे की फोटू खिंच के पुलिस के पास पौंच जात आए सो बा एप्प काम में लाए। बो कैनात आए न, के जो डर गओ, सो मर गओ। सो बैनों अपन ओरन खों डर-डर के नईं मरने। मरो सो बहादुरी से मरो!   
ऊंसई, होत का आए के जबे लुगाइयन की बात चलत आए तो उनकी बहादुरी के लाने झांसी की रानी लछमी बाई को उदाहरण दऔ जात आए। सई बी आए। जो जमाना में राजा हरें अंग्रेजन को सामना करबे से डरान लगे ते, ऊ जमाना में रानी लछमी बाई ने तलवार उठाई। बा समै राजा बखत बली औ राजा मदर्न सिंह जू से आंगू बढ़ के रानी लछमी बाई ने अंग्रेजन खों छठी को दूद याद कराओ रओ। अंग्रेजन ने इतिहास में मुतके हेर-फेर करे औ देस के लाने लड़बे वारों खों दोंदरा देबे वारों कैबे में कोनऊं कसर ने छोड़ी, पर बे सोई रानी लछमी बाई के लाने कछु उल्टो-सूदो लिखबे की हिम्मत ने कर पाए। मने रानी लछमी बाई के मारे जाने पे बी उनकी हिम्मत से डरात रए अंग्रेज। बा तो का आए के अपने इते के मुतके बहादुर हरें भीतर घात से मारे गए। ने तो मधुकर शाह जू को को छीं सकत्तो? जेई बीरता दिखाए वारी लुगाइयन के संगे भओ। खैर, बा अलग बात आए।
अब कछू सल्ल दए फिरबे वारे कैत आएं के लछमी बाई कोन इते की हतीं बे तो ब्याओ कर के आई रईं। सो भैया हरें भूल जात आएं के लक्ष्मी बाई इते की बहू रईं औ ब्याओ के बाद मोड़ी को असली घर ऊकी ससुराल मानो जात आए। सो लछमी बाई सोई इतई की रईं। ब्याओ के बाद उन्ने इतई को पानी पियो औ इतई को नाज खाओ। तभई तो उनकी बहादुरी बनी रई। काए से के बुंदेलखंड की माटी में बहादुरी के गुन पाओ जात आए। अंग्रेजन को बिरोध बुंदेलखंड से ई सबसे पैले मने 1842 में सुरू भओ रओ। बाकी मोरो कैबे को मतलब जे के अपने इते लुगाइयां सजबे के लाने चूरियां भले पैनत आएं, मनो जरूरत के समै पे बे अपने बेई चूरियन वारे हाथन में तलवार उठाबो सोई जानत आएं। झलकारी बाई ने सोई जेई करो। अवंतीबाई ने सोई जता दओ रओ के लुगाइयन खों कोनऊं कमजोर ने समझे।
सो, बैनो के संगे औ सबई जने याद राखें के चाए मताई होय, चाए बैन होय, चाए चाची औ भौजी होए, चाए सहेली औ चाहबे वारी होय, सबई में गणेश कुंवरि घांई भक्ति बी रैत आए औ लछमी बाई घांई शक्ति बी रैत आए। सो बैनों अपने खों अबला-मबला ने समझे करो। तुमई से तो पीढ़ियां चल रईं। तुमई से तो बच्चा हरें पैली शिक्षा लेत आएं। तुम ने हो तो घर सोई घर नईं होत। सो खुद खों कम ने आंकों। खुद पे भरोसो राखो। औ रई सगरे जग की, सो, सबई याद राखें के लुगाई जां चंदन आएं उतई आग सोई आएं, जिते फूल आएं उतई तलवार सोई आएं। ऊकी इज्जत करी जाए चाइए। औ जो ऊकी इज्जत पे हाथ डारे ऊकी इत्ती थू-थू करी जाए के बाकी बी गलत करबे से डरान लगें।    
सो अब, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो बैनों याद राखियो के हमई गणेश कुंवरि आएं औ हमई लछमी बाई आएं! सो, तरफी सफलता पाओ औ ढेर सारी बधाइयां लेओ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की!  
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