आज 25.03.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित - पुस्तक समीक्षा
रूमानियत से कही गई आज की बातें हैं इन गजलों में
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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गजल संग्रह - कश्तियों वाला सफर
कवि - सत्य मोहन वर्मा
प्रकाशक - लोकभारती प्रकाशन, पहली मंजिल, दरबारी बिल्डिंग, महात्मा गांधी मार्ग प्रयागराज - 211001
मूल्य - 395/-
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काव्य की गजल विधा आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है हिंदी साहित्य में समकालीन गजल भी कहा जाता है। यह सच है कि दुष्यंत कुमार ने हिंदी में गजल को एक नई पहचान दी लेकिन इसके पूर्व भी हिंदी कवियों ने गजलें लिखी थी लेकिन उन गजलों को गजल के रूप में पहचान नहीं मिल पाई थी। अब तो एक दीर्घ सूची है हिंदी कवियों की जो गजल विधा में निरंतर सृजन करते रहे हैं और कर रहे हैं। अदम गोंडवी, बाली सिंह चीमा, अनिरुद्ध सिंह, जहीर कुरैशी, कुंवर बेचैन, वर्षा सिंह, चंद्रसेन विराट आदि के क्रम में आज भी गजलें लिखी जा रही है। इसी क्रम में एक नाम और आता है सत्य मोहन वर्मा का। जिन्होंने संख्यात्मक दृष्टि से तो गजलें कम लिखी हैं किंतु जो लिखी है वे सहज ही ध्यान आकर्षित करती हैं।
सत्य मोहन वर्मा का गजल संग्रह ‘‘कश्तियों वाला सफर’’ कोरोना जैसी आपदा के चलते तनिक विलंब से प्रकाशित हो पाया किंतु इससे इसमें संग्रहित गजलों की महत्व कम नहीं है। यह समकालीन गजलें हैं लेकिन उनके तेवर कोमल हैं, भावुकता पूर्ण हैं और प्रेम के आग्रह से भरे हुए हैं। मध्य प्रदेश के दमोह शहर में निवासरत सत्य मोहन वर्मा वहां प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं साथ ही उज्जैन से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘‘समावर्तन’’ के सलाहकार मंडल के सक्रिय सदस्य हैं। सन 1933 में जन्मे सत्य मोहन वर्मा विभिन्न विधाओं में सृजन किया है। गजल विधा में वे कैसे प्रवृत्त हुए, इस संबंध में उन्होंने अपने आत्मकथन ‘‘हम कबीराना रिवाजों के सिपाही हैं’’ में उल्लेख किया है कि ‘‘श्री सूर्य भानु गुप्त और श्री भवानी शंकर मालपाणी की गजलें मुझे बहुत अच्छी लगती थीं। फिर अभिन्न मित्र दुष्यन्त कुमार से सम्पर्क में आया और उनकी उद्वेलित करनेवाली गजलों को सुना और पढ़ा। यकायक देखा-देखी मैंने भी गजलें लिखना शुरू किया। भाई महेश ‘‘अनघ’’ के प्रोत्साहन ने मुझे आगे बढ़ाया और फिर यह क्रम गति पकड़ता चला गया।”
गजल संग्रह ‘‘कश्तियों वाला सफर’’ की भूमिका लिखते हुए कुंवर बेचैन ने ‘‘एक सजग दृष्टि भी चाहिए’’ शीर्षक से बहुत डॉ कुंवर बेचैन की गजलों के संबंध में अच्छी बात लिखी है कि “उनका छन्द-विधान, उनकी बहर, उनके रदीफ, उनके काफिये, उनकी भाषा, उनकी शेरियत, उनकी कहन, उनकी प्रस्तुति, उनका मिजाज ये सब मिलकर उन्हें एक बड़ा गजलकार सिद्ध करते हैं।“
वहीं जयप्रकाश चौकसे ने “सत्य की गजलें’’ शीर्षक से भूमिका लिखते हुए बड़ी रोचक शैली में चुटकी ली है,‘“कविता सत्यमोहन वर्मा का कवच है और साथ ही कमजोरी भी है कि कहे बिना रहा ना जाये। इस तरह संकलन का शीर्षक ‘कश्मकश’ भी हो सकता था। ज्ञातव्य है कि गुरुदत्त ने ‘कश्मकश’ नामक कथा लिखी थी जिससे प्रेरित रही उनकी फिल्म ‘प्यासा’। ईश्वर करे कि सत्यमोहन की प्यास बनी रहे और वह काले कौऐ के काटने से डरते हुए सत्य बयाँ करते रहें।”
दुर्भाग्यवश डॉ. कुंवर बेचैन ने कोरोना संक्रमण के कारण तथा उसके बाद जयप्रकाश चौकसे ने कैंसर के कारण इस दुनिया से विदा ले ली। ये दोनों वरिष्ठ कलमकार इस पुस्तक को प्रकाशित रूप में नहीं देख पाए किंतु उनके द्वारा लिखी गई भूमिकाएं एक सनद के रूप में इस गजल संग्रह में सदा सुरक्षित रहेंगी।
सत्य मोहन वर्मा की गजलों में दुष्यंत या दुष्यंत की परंपरा के गजलकारों जैसा खुरदुरापन नहीं है। यह गजलें कोमल हैं, मधुर हैं और समय से संवाद करने में भी सक्षम हैं। प्रेम की बुनियादी संवेदना को वर्मा जी ने अपनी गजलों में बड़ी सुंदरता से सहेजा है। इनमें संयोग के भाव भी हैं और वियोग के भी। लेकिन इसके साथ ही वह परिवेश और परिस्थितियों को भी लक्ष्य करके चलते हैं जैसे संग्रह की पहली गजल के यह शेर देखिए-
कश्तियों वाला सफर था और हम थे।
नाख़ुदाओं का भी डर था और हम थे।
सोच में डूबे हुए थे और गुमसुम
धड़ के ऊपर एक सर था और हम थे।
इसी तरह गजलकार ने अपने जीवन के अनुभवों की बात की है। वे मानते हैं कि उन्होंने सैद्धांतिक मार्ग नहीं वरन व्यवहारिक मार्ग चुना। उन्होंने लिखा है-
जब भी मानी ख़्वाबों की बात मानी है।
हमने कब किताबों की बात मानी है।
अभी भी मुंतजिर है एक ख़ुशबू के लिए
उसने कब गुलाबों की बात मानी है।
शुभ-लाभ के व्यापार की इस महफिल में
उँगली वाले हिसाबों की बात मानी है।
ग़ज़लकार ने यथार्थ से मुंह नहीं मोड़ा है वरन उसे स्वीकार एवं आत्मसात किया है। जिस प्रकार आयु बढ़ने के साथ चेहरे पर झुर्रियां आने लगती हैं, ठीक उसी प्रकार जीवन के अनुभव बढ़ने के साथ भावनाओं में भी परिवर्तन होने लगता है। मन की रूमानियत धीरे-धीरे अव्यवस्था के विरुद्ध आक्रोश में ढलने लगती है। ये शेर इसका बेहतरीन उदाहरण हैं-
अब उमर के पैरहन पर धारियाँ आने लगीं।
और दिल में वक़्त की मक्कारियाँ आने लगीं।
जिस चमन के फूल गुलदस्तों में हैं ताजा अभी
उस चमन की रूबरू सब क्यारियाँ आने लगीं।
था सलामत जिनकी आँखों में जमाने का जमाल
अब उसी चितवन में क्यों चिन्गारियाँ आने लगीं।
जिस कोमल भाव की चर्चा वर्मा जी की गजलों के तारतम्य में उद्धृत की जा सकती है उसकी बानगी इन शेरों में देखी जा सकती है -
शख़्स वो संगीत-सा लगने लगा।
बिनमिले मनमीत-सा लगने लगा।
कोई भी इसको न समझा पायेगा
क्यों मुझे विपरीत-सा लगने लगा।
इश्क की जादूगरी का क्या कहूँ
संगदिल नवनीत-सा लगने लगा।
जीवन में हमेशा उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी एक सी स्थितियां नहीं रहती हैं। उस पर जब विपरीत परिस्थितियों में कुछ ऐसी स्मृतियां कौन सी जाती हैं जो मन को आलोड़ित करने लगती हैं तो खुशी गम के हवाले हो जाती है। गजल के यह शेर देखें -
हर खुशी गम से निपटकर रह गई है जिन्दगी।
एक कमरे में सिमटकर रह गई है जिन्दगी।
धड़कनों का इस कदर सैलाब आया क्या कहें
इक सफीने सी उलटकर रह गई है जिन्दगी।
संग्रह की गजलें जैसे-जैसे आखिरी पृष्ठ की ओर बढ़ती है वैसे उनकी गहन में एक उदासी भरी गंभीरता आने लगती है गोया इस दुनिया के रिवाज को भांप कर उसे उकता चुकी हैं क्योंकि दुनिया की चलन में बनावटीपन अधिक है। हर चेहरे पर एक मुखौटा लगा दिखाई देता है। इसीलिए संग्रह की आखिरी गजल में तमाम बनावटीपन से दूर हो जाने की बलवती इच्छा दिखाई देती है-
सबका चुका दिया है मैंने हिसाब यारो।
अब बन्द कर रहा हूँ अपनी किताब यारो।
मुझको तुम्हारी दुनिया बिलकुल नहीं जँची
पल पल पे माँगती है मुझसे जवाब यारो।
चेहरे छुपा के जीना फितरत-सी बन गई
सबने पहने रखे हैं दिलकश नकाब यारो।
सत्य मोहन वर्मा की गजलों में संवेदनशील हृदय की पारदर्शी अभिव्यक्ति है। संग्रह की गजलों में अपना ही एक सौंदर्य है और साथ ही वर्तमान के दोहरेपन पर गहरा कटाक्ष भी। सभी गजलें पूरी सहजता से कही गई हैं। आम बोलचाल के सामान्य शब्दों में भी भावनाओं का गाढ़ा रंग घुला है। पुस्तक के बैक कव्हर पर एक गजल दी गई है जिसमें गजलकार ने साहित्यकारों से अपनी क्षमता को पहचानने का आग्रह किया है और याद दिलाया है कि यदि साहित्य की शक्ति को पहचान लिया जाए तो उसके द्वारा सब कुछ बदला जा सकता है शेर देखिए-
बिगड़े हुए हालात दिखायेंगे हमीं तो।
और जलते सवालात उठायेंगे हमीं तो।
तूफाने समन्दर से बच जाओगे फिर भी
इस घर के बवंडर से बचायेंगे हमीं तो।
जो मानकर के बैठ गया खुद को मसीहा
उसको सही औकात दिखायेंगे हमीं तो।
आज गजल एक लोकप्रिय विधा है। “कश्ती वाला सफर” गजल संग्रह थी लोकप्रियता के तत्व समेटे हुए हैं। यह उसे कैनवास की तरह है जिसमें प्राकृतिक रंगों की छटा से आंतरिक भावों को चित्रित कर दिया गया हो। सत्य मोहन वर्मा एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं उनके जीवन के अनुभव का निचोड़ भी इन गजलों में अनुभव किया जा सकता है। यह अनुभव व्यष्टि और समष्टि दोनों के हैं। इसीलिए इनका संसार वृहद है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह गजल संग्रह पाठकों को पसंद आएगा तथा इसकी गजलें मन मस्तिष्क पर अपनी गहरी छाप छोड़ेंगी।
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