बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
होरी के आए हुरियारे, खोल किवरियां दुआरे
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
होरी को नाम लेतई जी में गुदगुदी सी होन लगत आए। अपने बुंदेलखण्ड की होरी की तो बातई कछु और आए। ऐसो लगन लगत आए मनो इतई मथुरा, बृंदाबन आ गओ होए। बाकी इते लट्ठमार होरी कोऊ नई खेलत, इते तो गालन पे गुलाल औ कपड़न पे पिचकारी की धार चलत आए। हां, जे जरूर आए के भौत पैले टेसू औ गेंदा के फूलन के रस से बनाए गए रंगों से होली खेली जात रई। फेर जेसे-जेसे बाजार को प्रभाव, औ वा बी चाईनीज बाजार को हल्ला बढ़न लगो तो केमिकल वारे रंग बनन लगे। देखबे में नोने, बाकी लगाबे पे भौतई नुकसान वारे। जे ठीक आए के, अब लोगन खों समझ में आन लगो आए के जे केमिकल वारे रंग छोड़ के पेड़-पौधा और फूलन वारे रंग से होली खेलनी चाइए। ई दफा तो ई बारे में सोसल मीडिया पे बी जागरूकता फैलाई जा रई, मनो ई पे अमल करने बी जरूरी आए।
होरी में संगवारे गले मिलत आएं औ सबरे बैर-भाव बिसरा दए जात आएं। काए से के होरी तो आए ही प्रेम ब्यौहार वारो त्योहार। जबे होरी के हुरियारे दुआरे पे आत आएं तो बे जेई गाऊत आएं ‘‘खोल किवरियां दुआरे’’ -
होरी के आए हुरियारे
खोल किवरियां दुआरे
उड़त गुलाल लाल भओ अंबर
रंग खेलें कान्हा प्यारे
कान्हा औ होरी को संग तो इत्तो घनो आए के होरी आतई साथ कान्हा औ गोपियन की होरी याद आन लगत आए-
कौना के भींजे रंग चुनरिया,
कौना की पचरंग पाग
राधा की भीगे रंग चुनरिया,
कान्हा की पचरंग पाग
होरी के मौका पे फागें गाई जात आएं औ स्वांग धरे जात आएं। कऊं-कऊं तो होरी से पंचमी लौं ‘राई’ सोई होत आए। किसम-किसम की मिठाइयां बनत आएं। घरे-घरे गुझा, पपड़ियां बनाई जात आएं औ कोऊ-कोऊ के घरे भांग के लड़ुवा सोई बनत आएं। औ जो कोनोऊं के घरे नई दुलैया आई होय तो होरी कछु ऐसी होत आए के सैंया सो मूठा भर-भर के होरी को रंग लगात आएं औ नई दुलैया को लगत आए के जा सब देख के कऊं सास औ ननदी ऊको गारी ने देन लगें के ससुरालें आ के अत्ते मचा रईं -
सास, ननद देहें गारी, मारो न रंग पिचकारी
सबरी चूनर रंग भई कारी, भींज गई तन सारी
हेर-फेर तक मुख पे मारत, रंग भरी पिचकारी
कहां भाग के जाऊं मुरारी .....
औ जोन के पिया परदेस में होत आएं, उनके लाने होरी को रंग को कोनऊं मोल नई रैत। ऊनखों कछु नई सुहात। होरी को त्योहार ई उनको बैरी लगन लगत आए -
पिया गए परदेस
पिया बिन बैरन होरी आई
लगे जिया में ठेस
पिया बिन बैरन होरी आई....
काए खों आई, नास मिटाएं
हुरियारे सोई जिया जराएं
होत जिया में कलेस
पिया बिन बैरन होरी आई....
जेई लाने होरी को त्योहार आतई साथ सबई के मन में जेई बिचार आत है के अपने वारे सबई जने घरे आ जाएं औ हिलमिल के रंग बरसाएं, गुलाल उड़ाएं -
अबकी बरस आ जइयो
गाल गुलाल मल जइयो
मां को लाल, बहन को वीरा
भौजी को मन होए अधीरा
दद्दा खों सुख दइयो...
फागुन मईना आतई साथ खेतन में सोई फसलें पकन लगत आएं। अब जे बात औ आए के जे मोसन में आत जा रए बदलाव के मारे कऊं-कंऊ फसलें देरी से पकन लगी आएं, मनो त्योहर सो अपने टेम पे ई आऊत आए, तिथि महूरत के हिसाब से। लेकन भौत सी फसल पक जात आएं औ जेई लाने किसान हरें सोई फगुआ गाऊत आएं औ रंग खेलत आएं। अपने बुंदेलखंड में तो ऊंसई फाग गाबे को रिवाज आए। ऊपे दुलैया पैलई कैन लगत आए के होरी के बाद जो पिसी मने गेंहू बिकहे तो हमें सोना की करधनी चाउनें, चाए कछू हो जाए। मनो मांग के संगे धमकी संगे-
होरी तो खेल लेबी पैन्ह के पुरानी धुतिया औ छौनी
मनो बिकहे पिसी सो सोना की लेबी करधौनी
जे नइयां खाली बतकाव
सुनहौं ने फेर कोनऊं दांवए गांठ बांध लेओ....
सो जे आए अपने बुंदेलखंड की होरी, जीमें रंग आए, उमंग आए, खुसिया आएं। बस, अब ईमें फेर के आ जाओ चाइए बा असली वारो हबल रंग जोन घरे बनाओ जात्तो। जीसें कोनऊं खों कोऊं नुकसान ने पौंचे औ खुसियां होली के बाद बी बनी रएं। सो, गूझा के लाने सोई असली खोवा लाइयो, नकली वारो नईं औ होली खेलत समै तनक सहूरी राखियो, मने खेलत समै कोनऊं को परेसान ने करियो। बस, जा सब से जरूर कहियो के हैप्पी होली ! होली मुबारक ! होली की हल्ला होने देओ!!
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